प्लास्टिक हमारी जीवन-शैली में रच-बस गया है। हम प्लास्टिक से बने खाने-पीने के बर्तनों जैसे चम्मच, कटोरी व बोतल का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं। इनमें मौजूद रसायन हमारी सेहत के लिए घातक हैं। फिर भी हम इन्हें इस्तेमाल करने से खुद को रोक नहीं पाए हैं। हालांकि इनके प्रयोग को कुछ कम करने की कई कोशिशें जरूर हुई हैं। इनमें से एक कोशिश नारायण पीसापति की भी है। वह अपने स्टार्टअप ‘बेकीस’ के जरिये ऐसे बर्तन बनाते हैं, जिनसे खाया ही नहीं जाता, उन्हें भी खाया जा सकता है। वह मुख्य रूप से ज्वार, चावल और गेहूं से बनी खायी जा सकने वाली चम्मचें बनाते हैं, जिनकी विदेशों में बहुत मांग है।
कैसे हुए प्रेरित
नारायण पीसापति ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट से पढ़ाई की है। वह एक एंटरप्रिन्योर होने के साथ कृषि वैज्ञानिक भी हैं। उन्हें कृषि, बागवानी, जंगल और जंगल पर आधारित कपास उद्योग में विशेषज्ञता हासिल है। वह एक खोजकर्ता व एंटरप्रिन्योर के तौर पर फसल के तरीकों में सुधार करने का सपना देखा करते थे।
इसी सिलसिले से जब वह एक बार तेलंगाना के सूखा-ग्रस्त जिले महबूबनगर में थे, उन्होंने अपने दोपहर के भोजन के लिए ज्वार की रोटी मंगवाई। खाने में देरी होने से ज्वार की रोटियां ठंडी और कड़ी हो चुकी थीं। वह दाल-सब्जी के साथ खाने पर कुरकुरा रही थीं और कड़ा होने की वजह से रोटी के टुकड़े एक चम्मच की तरह काम कर रहे थे।
तब उन्होंने सोचा कि यह दो आयामी रोटी का टुकड़ा एक चम्मच की तरह काम कर सकता है, तो इसे तीन आयामी चम्मच की तरह इस्तेमाल करने लायक क्यों न बनाया जाए। उन्हें इसमें दो फायदे नजर आए। पहला, यह खाने के लिए इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक चम्मचों का बेहतर विकल्प बन सकता है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण घटाने में मदद मिलेगी। दूसरा, इससे ज्यादा बड़े क्षेत्र में चावल की खेती करने की जरूरत कम होगी। वह यह जानने में लग गए कि इस्तेमाल के बाद प्लास्टिक की चम्मचों का होता क्या है। खोज के बाद उन्हें पता लगा कि लोग इनको दोबारा इस्तेमाल करते हैं। और यह आदत स्वास्थ्य के लिए बिलकुल भी ठीक नहीं है।
वह घर पर ही अपनी किचन में प्रयोग करने लगे। चम्मच बनाने का सही मिश्रण तो उन्होंने खोज लिया, पर इन्हें सांचे में ढालने वालों और निवेशकों को खोजने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। वह समय उनके लिए काफी कठिन था। तब उन्हें अपनी योजना के लिए रकम जुटाने के लिए अपनी संपत्ति बेचनी पड़ी। इस दौरान उन्हें अपने परिवार का काफी सहयोग मिला।
साल 2010 में उन्होंने हैदराबाद में अपने स्टार्टअप ‘बेकीस’ को शुरू किया। प्लास्टिक की एक चम्मच को बनाने में जितनी ऊर्जा की खपत होती है, उतने में उनका यह स्टार्टअप सौ चम्मच बना लेता है। जब लोगों को उनके स्टार्टअप की खासियतों का पता चला तो लोग भी मदद को आगे आए। आज उनकी बनाई चम्मचों और प्लेटों के लिए देश-विदेश से सैकड़ों ऑर्डर आते हैं।
सीख
कुछ भी नया करने में जोखिम होता ही है। जोखिम कम रहे, इसके लिए किसी योजना को शुरू करने से पहले उसके प्रभावों को लेकर अच्छी तरह सोच-विचार कर लें।