-‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ को महातपस्वी महाश्रमण ने पहुंचाया त्रिपृष्ठ भव में
-परिमित, दोषरहित व विचारपूर्वक वाणी का प्रयोग करने की आचार्यश्री दी पावन प्रेरणा
-गीत और व्याख्यान के माध्यम से श्रद्धालुओं ने जाना लाघव और सत्य धर्म
-भगवान मल्लिनाथ की जीवनवृत्त श्रवण का भी श्रद्धालुओं को मिला लाभ
30.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): पर्युषण महापर्व जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में सोत्साह मनाया जा रहा है। श्रद्धालुओं की संख्या इस उत्साह का द्योतक बन रही है। विशाल कन्वेंशन हाॅल भी पूरी तरह से श्रद्धालुओं से जनाकीर्ण बन जाता है। आत्मकल्याण के इस महापर्व को महातपस्वी के सन्निधि में मानने का सुअवसर का मानों दक्षिणवासी व विशेष रूप से बेंगलुरुवासी पूर्ण रूपेण लाभ ले रहे हैं। सूर्योदय से पूर्व ही आचार्यश्री का प्रवास स्थल श्रद्धालुओं से पट जाता है। फिर आरम्भ होता है विभिन्न धार्मिक आयोजनों का क्रम। सभी कार्यक्रमों में श्रद्धालुओं की सोत्साह उपस्थिति ने आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र को कुम्भनगरी के रूप में स्थापित कर दिया है।
उल्लासमय वातावरण में मनाए जा रहे पर्युषण महापर्व का चतुर्थ दिवस ‘वाणी संयम दिवस’ के रूप में समायोजित हुआ। नित्य की भांति प्रातः नौ बजे आचार्यश्री महाश्रमणजी अपने प्रवास स्थल से कुछ सौ मीटर की दूरी पर स्थित विशाल कन्वेंशन हाॅल में पधारे। आचार्यश्री ने महामंत्रोच्चार कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। कार्यक्रम के आरम्भ में साध्वी काव्यलताजी ने भगवान मल्लिनाथ के जीवनवृत्त का वर्णन किया। लाघव व सत्य धर्म पर साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने ‘सत्य के खातिर समर्पित प्राण है’ गीत का सुमधुर संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने लाघव व सत्य धर्म को विवेचित करते हुए श्रद्धालुओं को आहार, विहार और निहार के माध्यम से लाघवता को प्राप्त करने तथा सत्य के मार्ग पर आने बढ़ने को उत्प्रेरित किया।
साध्वी प्रियवंदाजी, साध्वी प्रेरणाश्रीजी व साध्वी मृदुयशाजी ने ‘वाणी संयम दिवस’ के संदर्भ में गीत का संगान किया। महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा साध्वी कनकप्रभाजी ने ‘वाणी संयम दिवस’ पर श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित करते हुए कहा कि पर्युषण महापर्व का चैथा दिन ‘वाणी संयम दिवस’ के आयोजित हो रहा है। एक है मौन और दूसरा है वाणी संयम। साधु को तो सावद्य और निरवद्य भाषा का ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए। सामुदायिक जीवन जीने के लिए तो भाषा मानों सेतु का कार्य करती है। आदमी अप्रिय, अहितकर और अनावश्यक नहीं बोले तो वाणी का संयम हो सकता है। आचार्यश्री महाश्रमणजी की वाणी संयम को देखकर श्रद्धालुओं को प्रेरणा लेने का प्रयास करना चाहिए और अपनी वाणी का संयम करने का प्रयास करना चाहिए।
भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भगवान ऋषभ के समवसरण में चक्रवर्ती भरत ने प्रश्न पूछा कि आपकी सभा में कोई ऐसा है जो वर्तमान अवसर्पिणी में तीर्थंकर बन सकता है। इस पर भगवान ऋषभ ने कहा कि इस सभा में तो नहीं बाहर तुम्हारा पुत्र मरिची इस अवसर्पिणी का अंतिम चैबीसवां तीर्थंकर बनेगा। मरिची को यह सूचना मिली तो उसे अपने कुल पर बड़ा गर्व हुआ। मरिची ने त्रिदण्डी साधु के रूप में अपनी साधना की तथा अंत में आयुष्य पूर्ण कर पांचवें देवलोक में उत्पन्न हुआ। अनेक भवों का वर्णन करते हुए आचार्यश्री ने सोलहवें भव का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान महावीर की आत्मा अपने इस भव में पोतनपुर के राजा के पुत्र त्रिपृष्ठ के रूप में उत्पन्न हुई। त्रिपृष्ठ ने एक बार अश्वग्रीव नामक राजा के दूत चंडवेग का अपमान कर दिया। अश्वग्रीव को ज्योतिष ने बताया था कि जो तुम्हारे दूत का अपमान करेगा वह तुम्हारा नाश करने वाला होगा।
आचार्यश्री ने वाणी संयम दिवस के संदर्भ में भी पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि परिमितभाषी, दोषरहित तथा विचारपूर्वक बोलने वाला प्रशंसा को प्राप्त कर सकता है। वाणी की शक्ति प्राप्त होना भी बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। कितने प्राणी इस शक्ति को नहीं प्राप्त कर पाते। इसलिए आदमी को अपनी वाणी का संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी झूठ नहीं बोलने और कटु नहीं बोलने का संकल्प कर ले तो उसका वाणी संयम सिद्ध हो सकता है। आदमी वाणी संयम का अभ्यास बढ़ा सके, यह उसके लिए श्रेयस्कर हो सकता है।
श्री अर्पित मोदी ने 38, श्रीमती पिस्ताबाई संचेती ने 35 व श्रीमती पुष्पा पारख ने आचार्यश्री से 57 की तपस्या का प्रत्याख्यान कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। साथ ही अनेकानेक लोगों ने अपनी-अपनी धारणानुसार तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया।