जिंदगी में हर किसी को मौका मिलता है, अपने आपको साबित करने का। जिसने इस मौके का फायदा उठा लिया, उसे सही राह मिल जाती है, दूसरों को जिंदगी भर का अफसोस। अपने आपको मौकों के लिए कैसे करें तैयार।
प्रसिद्ध समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक सलाहकार एरिच फ्रोम ने अपनी किताब ‘टु हेव और टु बी’ में कहा है, ‘जब आप जिंदगी के दोराहे पर खड़े हों, पीछे मुड़ कर देखते हुए अगर आपको लगता है कि आज आप यहां इसलिए हैं क्योंकि आपने गुजरे कल में मिले मौकों का सही इस्तेमाल नहीं किया, तो इसका मतलब है आपने जिंदगी से कोई सबक नहीं लिया।’ एरिच एक बार ऐसे व्यक्ति से मिले, जिसका आत्मविश्वास लगभग चकनाचूर था। बात करने के बाद उन्होंने पाया कि एक समय ऐसा भी था जब वह व्यक्ति अपनी यूनिवर्सिटी का छात्र नेता था और काफी दबंग माना जाता था। यूनिवर्सिटी में अश्वेतों के खिलाफ दंगे शुरू होने पर उस व्यक्ति ने उसमें शामिल होने और सही पक्ष का साथ देने की जगह छुट्टियों में बाहर जाने का विकल्प चुना। बाद के सालों में वह व्यक्ति अपना कोईकाम ठीक से नहीं कर पाया। जब एरिच ने उससे बात की, काउंसलिंग की तो मन में छिपी यह गांठ की गिरह खुली। वह व्यक्ति अपने आप से नाखुश था और यूनिवर्सिटी में हुए दंगों की वजह खुद को मानने लगा था। उसे लगता था, अगर उस दिन वह वहां होता तो स्थितियां इतनी खराब न होतीं। ऐसी स्थिति सबकी जिंदगी में आती है, कभी छोटी तो कभी बड़ी। हम उस जगह और उस मकाम पर होते हैं जब निर्णय लेना हमारे हाथ में होता है। मन का एक कोना हमेशा हमें भाग जाने की सलाह देता है। वह आसान भी है।
ओशो कहते हैं, ‘हमारा दिल और दिमाग हमेशा आसान रास्ता खोजता है। अगर सारी मुसीबतों से लड़ने का इलाज मुंह ढांप कर सोने में है, तो अस्सी प्रतिशत लोगों की सभी दिक्कतें दूर हो जाएंगी।’ आसान रास्ता या मुसीबत से हट कर दूर खड़े हो जाना कभी भी सही उपाय नहीं हो सकता। हो सकता है, आज जो समस्या आपके सामने हो, वह आपकी न हो। लेकिन अगर आप उस समस्या से वाकिफ हैं और उसे हल करने में आपका सामने आना और लड़ना जरूरी है, तो आप भले इस समय अपने चारों ओर सांत्वना के चादर ओढ़ कर दूर हो जाएं, जिंदगी में कभी न कभी आपको इसका सामना जरूर करना पड़ेगा। उस समय तक कई चीजें और स्थितियां बदल चुकी होंगी। आप या तो अपने उस निर्णय के कारण कहीं आगे निकल चुके होंगे, मजबूत हो गए होंगे या इस गिल्ट में जीते हुए कि आपने हार मान ली थी, अपने अंदर कोई गांठ पाल ली होगी। हॉलीवुड के प्रसिद्ध एक्टर विल वीटन ने अपने एक टेड टॉक में कहा था- मैंने अपनी जिंदगी में जो कुछ भी किया, जो निर्णय लिए, चाहे वे सही हों या गलत, मैं उनको लेकर कभी शर्मिंदा नहीं रहा। यही वजह है कि बचपन से एक्यूट डिप्रेशन का मरीज होने के बावजूद मैं अपने लिए एक सफल करियर बना पाया।’ विल वीटन ऐसे लोगों में से हैं जो अपनी कमियां और खामियां खुल कर कहते हैं और दूर करने की कोशिश भी करते हैं। क्या मन में अफसोस की गांठ ले कर जीना मुश्किल है?इस सवाल का जवाब समाजशास्त्री एंड्रिया एकलमैन के पास है। वह कहती हैं, ‘मन में गांठ चाहे कोई भी हो, शारीरिक और मानसिक तौर पर नुकसान पहुंचाती है। समय रहते इसे अपने सिस्टम से निकालना ही उचित रहता है।’ अगर मौका है तो वापस उन स्थितियों की ओर लौटकर उन्हें ठीक करने की कोशिश करें, इससे आपका आत्मबल भी बढ़ेगा और खलिश भी कम हो जाएगी।
ताकि कोई खलिश न रह जाए
– अपने आपको कभी कम मत आंकिए। आपके अंदर जबरदस्त शक्ति है कि आप किसी भी परिस्थिति का मुकाबला कर सकते हैं।
– यह ठान कर चलिए कि आपको सही लोगों का और सही बात का समर्थन देना है, उनके लिए लड़ना है। अगर आपकी नीयत सही है तो आपको पीछे मुड़ कर देखने पर कभी अपने ऊपर अफसोस नहीं होगा।
– कई बार आपके काम बहुत कोशिशों के बाद भी पूरे नहीं होते, ऐसे में आपका हताश होना लाजिमी है। पर जो चीज आपके हाथ में नहीं है, उसे लेकर बहुत ज्यादा अफसोस ना करें। सफलता-असफलता से ज्यादा महत्वपूर्ण आपका सच के साथ खड़े होना और लड़ना है।