मुंबई। आ. रविशेखरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में नेमानी वाड़ी, ठाकुरद्वार के प्रांगण में आज पं. ललितशेखरविजयजी म. सा. ने ‘पाप के प्रकार’ विषय पर प्रवचन दिया।
पहले दुष्कृत की निंदा, फिर सुकृत की अनुमोदना करना चाहिए। पाप का प्रायश्चित तुरंत करना चाहिए, समय जाने के साथ पाप विराट बन जाता हैं फिर उसका क्षय करना लगभग नामुमकिन हो जाता हैं। दुख से दूर भागोगे तो भी दुख आएगा पर दुख नहीं चाहिए तो पाप से दूर भागना चाहिए। दुख से बचने के लिए धर्म नहीं भी करो पर पाप का त्याग अवश्य करो। 18 पाप स्थानकों में पहले 5 महा पाप हैं, फिर 12 अधिकरण (पाप के साधन) हैं और 18वां मिथ्यात्व (गलत या विपरीत धारणा)। पाप को छोड़ना निश्चित चारित्र हैं, पाप को पाप मानना वास्तविक सम्यकत्व हैं, पाप को पाप नहीं मानना मिथ्यात्व हैं। समकीती आत्मा संसार में हो सके उतना कम पाप करती हैं और मजबूरी में पछतावा करते हुए पाप करती हैं।
हम पर्व दिनों में पाप क्रिया नहीं करते तो रोज क्यों करते हैं ? नरक में 10 तरह की क्षेत्र वेदना हैं जो 1 क्षण के लिए भी सुख अनुभव होने नहीं देती। धर्म करना सरल है पर पाप का त्याग करना कठीन हैं। पाप का पक्षपात टूटना चाहिए, रोते हुए पाप करने से पाप का बंध होता हैं और हस्ते हुए पाप करने से पाप का अनुबंध (पाप की परंपरा) होता हैं, सिर्फ बंध होगा तो परभव में पाप के साधन मिलेंगे, पर अनुबंध होगा तो परभव में पाप के साधन के साथ पाप करने के लिए दुर्बुद्धि भी मिलेगी तो दुर्गति निश्चित हैं। पाप का भय, खेद, पश्चताप, आदि होना चाहिए। पाप के प्रति आकर्षण हो तो शासन भी नहीं मिलता।
किशन सिंघवी और कुणाल शाह के अनुसार आज प्रवचन पश्चात साधारण फंड के मुख्य लाभार्थियों का बहुमान किया गया, और ‘ऋषभ महा-विद्या तप’ के बीसवें दिन के एकासणे की भी अच्छे से व्यवस्था हुई। आज पू. आ. श्री रविशेखरसूरिजी म. सा. की निश्रा में श्री अम्बे माताजी ट्रस्ट गाँवगुडा (मेवाड़) की मीटिंग में श्री अम्बे माताजी मंदिर की प्रतिष्ठा पू. गुरुदेवश्री की निश्रा में ता. 2 मई 2020 को करवाने का निर्णय लिया गया हैं। इन सभी मौकों पर ठाकुरद्वार संघ के पदाधिकारी और समर्पण ग्रुप के कार्यकर्ताओं के अलावा सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं और गाँवगुड़ा के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे।
पहले दुष्कृत की निंदा, फिर सुकृत की अनुमोदना करना चाहिए: ललितशेखरविजयजी म. सा.
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