गुरुवार, 1 अगस्त को अमावस्या है। सावन माह की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहा जाता है। उज्जैन के ज्योतिषविद् अमर डिब्बावाला के अनुसार गुरुवार की अमावस्या श्रेष्ठ मानी जाती है। इस तिथि पर पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्ध योग, नाग करण और कर्क राशि का चंद्रमा रहेगा, ये सभी शुभ योग अमावस्या को प्रभावशाली बना रहे हैं। इन योगों में प्रकृति का पूजन किया जाता है। हरियाली अमावस्या पर बीजारोपण और पौधारोपण करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है।
- पितरों की याद में पौधारोपण करना चाहिए
इस तिथि पर पितरों के लिए पूजा-पाठ, श्राद्ध-तर्पण किया जाता है। पितरों को चढ़ाने वाले फूल सेवंती, अगस्त, तुलसी, भृंगराज, शमी, आंवला, श्वेत-पुष्प आदि के पौधे लगा सकते हैं। इनका रोपण करें और आगामी श्राद्धपक्ष में पितरों को अर्पित करें। इससे घर-परिवार में सुख बढ़ सकता है। पौधों के रूप में पूर्वजों की याद भी बनी रहेगी।
- वैदिक साधना यानी पंच महाभूतों के संरक्षण का दिन
पं. डिब्बावाला के अनुसार हरियाली अमावस्या वेदिक साधना में प्रकृति संरक्षण के लिए प्रेरित करने का पर्व है। इस दौरान प्रकृति के पांच प्रमुख तत्व जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी और आकाश का संरक्षण करने और इन्हें आगे बढ़ाने के लिए संकल्प लिया जाता है। यही कारण है कि भगवान शिव की इस माह में आराधना होती है। जल, पुष्प, बिल्व पत्र, फल आदि अर्पित किए जाता है। ये सब प्रकृति से प्राप्त चीजें हैं। ये हमें प्रकृति से जुड़े रहने का और संरक्षण करने का संदेश देती हैं।
- जलवायु में परिवर्तन से होगी अच्छी बारिश
जलवायु में परिवर्तन का कारक बुध ग्रह है। अमावस्या पर सुबह 9.42 बजे से बुध ग्रह मार्गी होगा। इससे अच्छी बारिश की संभावना बनेगी। मान्यता है कि बुध अन्य ग्रहों की ऊर्जा को संरक्षित कर जलवायु में परिवर्तन करता है। वर्तमान में गुरु वक्री चल रहा है। वक्री रहते हुए कर्क राशि स्थित सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध और शुक्र से नवम-पंचम दृष्टि संबंध बनेगा। इसका असर भी मौसम पर दिखाई देगा।