मुंबई। आचार्य रविशेखर सुरिश्वर मासा. की निश्रा में ठाकुर द्वार संघ में ललितशेखरविजयजी म. सा. ने आज प्रवचन के दौरान ‘मोह’ के बारे में बताया और कहा कि आठ कर्मो में मोह ही सबसे खतरनाक है । जब हम सपना देखते हैं तब हमें वो सच लगता है पर नींद खुलने पर पता चलता है के वो सपना था ठीक वैसे ही इस जगत का सच हमें तभी पता चलेगा जब मोह की नींद खुलेगी । आग सबको जलाती है और पानी आग को बुझाता है, पर आग के ऊपर बर्तन में पानी रखा जाए तो आग पानी की जला देता है । ठीक वैसे ही हमारी आत्मा में अनंत शक्ति है पर बीच मे मोह रूपी बर्तन पड़ा है । जहा मैं और मेरा आता है वह मोह होता है । जो साथ में ले जा सकते है सिर्फ वही अपना है और जो यह छोड़कर जाना है वो अपना नही है । सिर्फ पाप-पुण्य साथ में आता है । मोह खत्म होने से हृदय परिवर्तन होता है, बुरे से अच्छा, विचारों का बदलना हृदय परिवर्तन है और आचार का बदलना जीवन परिवर्तन है ।
दर्शन मोहनीय के क्षोपक्षम से विचार अच्छे होते है और चारित्र मोहनीय के क्षोपक्षम से आचार अच्छे होते है । मोहनीय कर्म बुद्धि पे हमला करता है, संसार अच्छा नही है पर हमें मोह के कारण अच्छा लगता है । ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अंतराय ये 4 घाती कर्म है जो आत्मा के गुणों का सर्वनाश कर देते है, मोह खत्म तो इनका भी खात्मा और नाम, गौत्र, आयुष्य और वेदनीय ये 4 अघाती कर्म है मोह की वजह से चोर और साहूकार की भूमिका निभाते है, मोह इन सबकी जड़ है । राग हमें परवश कराता है, द्वेष हमें पापी बनाता है और मोह पागल बना देता है ।
मोह को शराब की उपमा दी गयी है जैसे शराब पीने के बाद इंसान ये भूल जाता है के वो कौन है, कहा है और क्या कर रहा है ठीक वैसे ही मोह भी काम करता है, शराब का नशा तो कुछ घंटों में उतर जाता है पर मोह का नशा अनंत जन्मों तक नही उतरता । मोह से अगर लड़ोगे तो थक जाओगे या हार जाओगे और मोह से दोस्ती करोगे तो बर्बाद हो जाओगे । एक कथा के माध्यम से समझाया के 1 साधु काउसग्ग में खड़े थे और उन्हें अवधिज्ञान हो गया, काउसग्ग में खड़े खड़े ही उन्होंने अवधिज्ञान में पहले देवलोक में 1 घटना देखी और मोह के कारण हँसे और उनका अवधिज्ञान तभी वापिस चला गया ।
आगे बताया के मन बंदर जैसा चंचल है, मन को अच्छा-बुरा दोनों अच्छा लगता है । मन एक नादान बच्चे की तरह होता है जैसे नादान बच्चे के हाथ में अच्छी वस्तु आएगी तो भी वो उसे मुह में डालेगा और गंदी वस्तु आएगी तो भी वो उसे मुह में डालेगा, मन कुछ ना कुछ ग्रहण करना चाहता है उसे अच्छा या बुरा जो हम ग्रहण करवाएंगे वो करेगा । तन और वचन से हम सिर्फ कुछ पाप कर सकते है क्योंकि थक जाते है पर मन से नही थकते और अनंत पाप करते ही रहते है ।
किशन सिंघवी के अनुसार प्रवचन में ठाकुरद्वार संघ के पदाधिकारियों में अध्यक्ष वसंत भंसाली, पूर्व अध्यक्ष चंदनमल संघवी, पंकज मेहता, रसिक पालरेचा, देवीलाल संघवी, ललित जैन, कमलेश गांधी, आदि मौजूद रहे और समर्पण ग्रुप, ठाकुरद्वार के कुणाल शाह, राहुल जैन, अमित जैन, जुगल जैन, मेहुल जैन, भरत पोरवाल, अनुज जैन, अमित गांधी, आशीष जैन, रौनक निसार, मेहुल जोधावत,चांद मल सिंघवी प्रवीण राजावत देवीलाल सिंघवी हस्ती सिंघवी चिराग सिंघवी खुबिलाल सिंघवी चंदू पामेचा मनसुख पामेचा अर्जुन लाल पामेचा बक्षी लाल पामेचा आदि भी मौजूद रहे
आठ कर्मो में मोह ही सबसे खतरनाक: ललितशेखर विजय जी म.सा.
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