-आध्यात्मिक वातावरण में मनाया गया तेरापंथ का 260वां स्थापना दिवस
-चतुर्विध धर्मसंघ ने अपने प्रणेता आचार्य को अर्पित की विनयांजलि
-असाधारण साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी का 60वां दीक्षा दिवस
-साधु-साध्वी और श्रावक-श्राविका समाज ने भी दी अपनी हर्षाभिव्यक्ति
16.07.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): मंगलवार को आध्यात्मिक वातावरण में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ का 260वां स्थापना दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। चतुर्विध धर्मसंघ ने अपने वर्तमान अनुशास्ता महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में उपस्थित होकर अपने धर्मसंघ के प्रणेता, आद्य प्रवर्तक, संस्थापक आचार्यश्री भिक्षु को अपने भावों की विनयांजलि अर्पित की। मंगलवार को प्रातः आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ सेवा केन्द्र में बने भव्य महाश्रमण समवसरण में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के 260वें स्थापना दिवस का आयोजन हुआ। कार्यक्रम का शुभारम्भ अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार से हुआ। साध्वीवृंद व मुनिवृंद ने पृथक-पृथक गीतों का संगान किया। साध्वीवर्याजी ने कहा कि आज के दिन मैं उस महामानव आचार्यश्री भिक्षु की अभ्यर्थना करना चाहती हूं कि जिनमें धैर्य की पराकाष्ठा थी। कितने विरोधों के बाद भी उनका धैर्य डिगा नहीं। इस अवसर पर उन्होंने आचार्यश्री द्वारा रचित गीत का आंशिक संगान भी किया।
तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित करते हुए कहा कि आज का दिन ऐतिहासिक निर्णय वाला दिन है। आज का दिन महामना आचार्यश्री भिक्षु के जीवन को प्रकाश से भरने वाला है। साध्वीप्रमुखाजी ने आचार्य भिक्षु के जीवन की प्रेरणादायी घटना प्रसंगों का वर्णन करते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु कंफर्ट जोन से बाहर निकले और एक बड़ी क्रांति घटित की। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने कहा कि आज के दिन एक महान गुरु और एक महान धर्मसंघ हमें प्राप्त हुआ। आचार्य भिक्षु के लिए भगवान महावीर की वाणी ही सबकुछ थी। इस अवसर पर मुख्यमुनिश्री ने अपने सुमधुर स्वरों में आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा रचित गीत का संगान किया।
आचार्य भिक्षु के परंपर पट्टधर, वर्तमान के आचार्य भिक्षु आचार्यश्री महाश्रमणजी ने चतुर्विध धर्मसंघ को इस सुअवसर पर पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में सच्चाई की आराधना का परम महत्त्वपूर्ण स्थान है, किन्तु सच्चाई के राह पर चलना बहुत ही मुश्किल कार्य होता है। सच्चाई की राह पर चलने के लिए आदमी में साहस की आवश्यकता होती है। जिस आदमी के भीतर किसी चीज के प्रति आस्था जाग जाए और आस्था मजबूत हो जाए तो फिर वह किसी भी प्रकार के कष्ट का परवाह नहीं करता। परम पूज्य आचार्य भिक्षु में विशेष बल था। उनके इस विशेष बल की पृष्ठभूमि में उनके पिछले जन्म से जुड़ा हुआ है। आचार्य भिक्षु एक विशिष्ट व्यक्ति थे। क्रांति करने वाले के मन में शांति को भी त्यागने की भावना हो तो विशेष क्रांति घटित हो सकती है और वैसी क्रान्ति आचार्य भिक्षु ने की। कुछ कठिनाईयों और उपसर्गों से युक्त केलवा का वह स्थान तेरापंथ की स्थापना का दिन रहा। हम सभी का सौभाग्य है जो हमें ऐसा धर्मसंघ मिला है। हमारा धर्मसंघ गतिमान रहे, मतिमान रहे और धृतिमान रहे।
आज गुरु पूर्णिमा का भी अवसर है तो हम सभी आचार्य भिक्षु का स्मरण करें और हमारा धर्मसंघ खूब अच्छा विकास करता रहे। आचार्यश्री ने साध्वीप्रमुखाजी के 60वें दीक्षा दिवस पर मंगलकामना प्रदान करते हुए कहा कि आज आपका दीक्षा दिवस है तो आप भी क्रांति की प्रेरणा देने वाली बनी रहें।
आचार्यश्री ने चतुर्विध धर्मसंघ को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जहां अपेक्षा हो शांति का त्याग कर क्रान्ति की लौ जलाई जा सकती है। हमें स्वयं की चित्त समाधि को गौण कर दूसरों को चित्त समाधि में स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। जहां संघ की अपेक्षा हो वहां जाने की भावना हो, प्रतिकूल भाव वाले लोगों के साथ भी शांति के साथ रहना, वृद्धों की सेवा करने की क्रान्ति भी की जा सकती है। इसके उपरान्त आचार्यश्री ने चतुर्मास के उपरान्त अपने आगे की यात्रा का पथ का कुछ विवरण प्रस्तुत किया।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री हंसराज बैताला ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। के.जी.एफ. महिला मण्डल ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम के अंत में आचार्यश्री के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने अपने स्थान पर खड़े होकर संघगान का संगान किया तो पूरे प्रवचन पंडाल का दृश्य ही बदला हुआ नजर आ रहा था। संघगान के उपरान्त आचार्यश्री ने जयघोष लगवाए तो उपस्थित श्रद्धालुओं के जयनिंनादों से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।