चतुर्विध धर्मसंघ की साक्षी से चातुर्मास के लिए किया मंगल प्रवेश
सम्प्रदाय एक लिफाफा है धर्म एक पत्र : आचार्य श्री महाश्रमण
बैंगलोर। सम्प्रदाय की अपनी उपयोगिता है। परंतु एक दृष्टि से सम्प्रदाय एक शरीर है और धर्म आत्मा हैं। आदमी है, आत्मा निकल गई, तो शरीर हलन चलन नहीं कर सकता, शरीर में आत्मा है तो वह सब क्रिया कर सकता हैं। सम्प्रदाय एक लिफ़ाफ़ा हैं, धर्म एक पत्र। कोरा लिफाफा किसी काम का नहीं। एक फल हैं, ऊपर छिलका है, अंदर गुदा हैं, तो सम्प्रदाय छिलका हैं, गुदा धर्म है।
लिफाफे, छिलके का महत्व है पर उनकी आत्मा तो पत्र है, गुदा हैं। सम्प्रदाय और धर्म में लिफाफा और पत्र, छिलके एवं गुदे में *सबसे मूल धर्म पत्र व गुदा हैं। उपरोक्त विचार बंगलूर स्थित तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केन्द्र में महाश्रमण समवसरण में चातुर्मासिक प्रवेश के अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए तेरापंथ धर्मसंघ के महासूर्य एकादशमाधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण ने कहे|
वृहद महा चातुर्मासिक प्रवेश रैली
इससे पुर्व महेन्द्र फर्नीचर कुम्बलगोडु औधोगिक क्षेत्र से प्रारम्भ वसुधैव कुटुम्बकम् की थीम पर आधारित प्रवेश रैली में पंक्तिबद्ध केसरिया परिधान से सुसज्जित महिला मण्डल की बहने जय-जय ज्योतिचरण के जयकारों से बैंगलोर धरा को गुंजायमान कर रही थी। उनके साथ ही साथ अन्य महिलाएं भी अनुशासन का पालन करती हुई रैली की शान बढ़ा रही थी। जैन ध्वज प्रतीक रूप में जैनत्व को मुखर कर रहा था। पारम्परिक वेशभूषा में प्रत्येक प्रांतीय सैकड़ों युगल भारतीय परम्परा संस्कृति को दर्शा रहे थे। उसके बाद समणी वृंद, साध्वी प्रमुखाश्रीजी, साध्वी नियोजिकाजी, साध्वीवर्या जी पिछे साधु समुदाय के बीच तेरापंथ के महासूर्य एकादशमाधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी चल रहे थे तो मानों जन समुदाय धवल सेना के सैलाब को देख अपने आप को महाविदेह में अवस्थित समझ रहे थे। अपने आराध्य को निहार धन्यता का अनुभव कर रहे थे। पीछे पीछे पक्ति बद्ध तेरापंथ युवक परिषद्, तेरापंथ सभा, एवं अन्य श्रद्धालुओं से पूरा मैसूर रोड महाश्रमण मय बन गया।
त्याग, तप, ध्यान रूपी आध्यात्मिक साधना का हो विकास
मंगल प्रवेश पर आचार्य श्री महाश्रमण ने भगवान महावीर, तेरापंथ की उत्तरवर्तीय आचार्य परम्परा को वन्दन, असाधारण साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी का अभिवादन करते हुए कहा कि हम जैन श्वेतांबर तेरापंथ परंपरा के अनुयायी हैं। जैन धर्म के अनुसार इस अवसर्पिणी काल में भगवान ऋषभ प्रथम और भगवान महावीर अन्तिम चौबीसवें तीर्थंकर हुए। हम उन्हीं के पद् चिन्हों पर चलते हैं। आज से 258 वर्ष पूर्व आचार्य श्री भिक्षु ने तेरापंथ का प्रादुर्भाव किया। उनकी गुरु परम्परा आगे बढ़ी, आचार्य श्री तुलसी नवमें आचार्य हुए। उन्होंने आज से पच्चास वर्षों पुर्व बेंगलोर में चातुर्मासिक प्रवास किया था, धर्म की अलख जगाई थी। आज हम उनके शिष्य बैंगलोर में “आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ संस्थान” में चातुर्मास के उद्देश्य से आए हैं। आज मंगल प्रवेश है, बैंगलोर चातुर्मास में लोगों में त्याग, तप, ध्यान रूपी आध्यात्मिक साधना का विकास हो।
योगक्षेम वर्ष के बाद सर्वाधिक साधु साध्वी चातुर्मास हेतु एक साथ
आचार्य श्री ने आगे कहा कि साध्वी प्रमुखाश्री जी दूसरी बार बैंगलोर आयी हैं। 500 से ज्यादा साध्वियों की प्रमुखा हमारे साथ हैं। साध्वी नियोजिकाजी, साध्वीवर्याजी, मुख्य मुनि सहित 177 साधु-साध्वी वृंद का प्रवेश हुआ। इतनी संख्या योगक्षेम वर्ष को छोड़कर कभी नही हुई। इतनी बड़ी संख्या में आना अपने आप में विशेष बात है।
सबसे उत्कृष्ट मंगल – धर्म
आचार्य श्री ने कहा कि आदमी के मन में मंगल की कामना होती हैं| व्यक्ति दूसरों के लिए मंगल की कामना करता हैं, स्वयं के लिए भी मंगल की अपेक्षा रहती हैं| कार्य मंगल हो, सफल हो, इसके लिए प्रयास भी करता हैं| प्रवेश के लिए मुहूर्त देखना, मंगलकारी पदार्थ का उपयोग यानी गुड का उपयोग करता है। आचार्य श्री ने कहा कि शास्त्रकार कहते हैं *सबसे बड़ा मंगल धर्म है, धर्म से बड़ा कोई मंगल नहीं, उत्कृष्ट मंगल धर्म हैं।* “सनातन – सिख, ईसाई, इस्लाम, जैन, बौद्ध ये सम्प्रदाय हैं।” धर्म की परिभाषा बताते हुए आचार्य श्री ने कहा कि *अहिंसा संजमो तवों – अहिंसा, संयम, तप धर्म हैं।
सब प्राणियों को समझे अपने समान
आचार्य श्री ने आगे कहा कि सांसारिक कार्य लौकिक प्रवृति है, पर जिसके जीवन में धर्म हैं, देवता भी उसे नमस्कार करते हैं। अहिंसा संयम तप मयी यात्रा अवस्थित ऐसे मनुष्य देवों के लिए भी नमस्करनिय हैं। मंगल हेतु अहिंसा की साधना करनी चाहिए, सब प्राणियों को अपने समान मानना चाहिए, किसी को कष्ट – अपमान – दुःख नही देना चाहिए। जो व्यवहार हमारे लिए प्रतिकूल है, वैसा व्यवहार दूसरों के लिए न हो छोटे से छोटे जीव को दुःख न दे। “अहिंसा परमो धर्म” अहिंसा परम धर्म है, सब प्राणी के साथ मैत्री की भावना हो।
अहिंसा यात्रा के अन्तर्गत 5वॉ चातुर्मास
आचार्य श्री ने कहा कि 9 नवम्बर 2014 को दिल्ली से प्रारम्भ इस अहिंसा यात्रा का यह 5वॉ वर्ष चल रहा हैं, बंगलूर का चातुर्मास अहिंसा यात्रा का 5वॉ चातुर्मासिक प्रवास हैं| अहिंसा यात्रा के त्रिसूत्रीय आयामों की व्याख्या करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि व्यक्ति के जीवन में सबके प्रति अच्छी सौहार्द की भावना हाई सद्भावना है, किसी से घृणा ना करे, नैतिकता, ईमानदारी से कार्य करे, कार्य में पारदर्शिता हो, नशा मुक्ति – शराब, बीड़ी, सिगरेट, गुटका आदि का सेवन नही हो|
ब्रम्हाण्ड का हर कण पूज्यप्रवर की यात्रा में सहयोगी
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने इस मंगलमय अवसर पर कहा कि ब्रम्हाण्ड का हर कण पूज्यप्रवर की यात्रा में सहयोग कर रहा हैं। प्रभावकारी हस्तक्षेप से तत्कालीन सारी परिस्थितियाँ अनुकूल हो जाती है और पूज्यप्रवर आगे बढ़ते रह रहे हैं।
साध्वी प्रमुखाश्री ने आगे कहा कि चंदन और फूलों की महक से भरे बंगलूर में अचार्यप्रवर अध्यात्म की महक से बंगलूर को सुवासित करने पधारे है। इस अवसर पर केवल तेरापंथी ही नही अपितु जैन जैनेतर सभी में प्रसन्नता है। साध्वी प्रमुखाश्री ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि बंगलूर वासी ज्ञान दर्शन चरित्र की धाराओं में अभीस्नात हो आचार्य प्रवर की आध्यात्मिक वाणी का पूरा पूरा लाभ उठाएं।
स्वागत स्वर
तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केंद्र के अध्यक्ष श्री सोहनलाल जी मांडोत ने *चतुर्विध धर्मसंघ का स्वागत अभिनंदन करते हुए कहा कि गुरुदेव आपने हम सबको धन्य कर दिया। आप श्री से वरदान माँगा था की बिना कोई पद प्रतिष्ठा के सेवा का कार्य करूँ और गुरु आशीष से सक्रियता से संघ सेवा के कार्य में योगभूत बनता रहूँ| आपकी करुणा हम सब पर बरसती रहे। आपके इंगित से हम हर जनकल्याण का कार्य करते रहे।
मुख्य अतिथि पूर्व न्यायाधीश, पूर्व लोकायुक्त अणुव्रती श्री संतोष हेगड़े ने कहा कि जिनके चरण स्पर्श से पूरी बेंगलोर धरा पावन हुई उनके अभिनंदन हेतु मुझे आमंत्रित किया यह मैं अपना सौभाग्य मानता हूं। गुरुदेव की अनेक पुस्तकों का मैंने वाचन किया हैं, उन पुस्तकों को विधालय के पाठ्यक्रम में जोड़ा जाए तो बच्चों का सर्वागीण विकास हो सकता हैं।
विशिष्ट अतिथि आई पी एस पुलिस जनरल श्री मेघरिक ने कहा कि बाल्यकाल से राजस्थान में चातुर्मास काल में भाग लेता, प्रवचन सुनने को लालायित रहता, शायद इसी कारण मुझे आज कर्मभूमि में यह मौका मिला। श्री मेघरिक ने कहा कि किसी भी क्षेत्र में त्याग बहुत जरूरी हैं। पुलिस विभाग में भी अहिंसा की बहुत ज़रूरत हैं। 32 वर्षों के कार्यकाल में मेरे बचपन के आदर्श धर्म की परिभाषा को ही ध्योतक मानता आ रहा हूं।
अतिथि प्रोफ़ेसर लेखक श्री राधाकृष्णन ने कहा कि मेरा अहोभाग्य मुझे आपश्री के सेवा, दर्शन का सुअवसर मिला। प्रोफेसर ने कहा कि आत्मा शरीर को नियंत्रित करे, यही धर्मवाणी गुरु महाश्रमण ने आज हमको बतायी। आपकी अहिंसा यात्रा में महात्मा गांधी की भाँति हमें मैत्री और अहिंसा का स्वरूप मिल रहा हैं। हर मानव के जीवन में ज्योति फैले इसी सद्भावना के उद्देश्य को लेकर गुरु आज हमारे द्वार पधारे हैं।
ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी ने सुन्दर प्रस्तुति “प्रभु हमें कुछ नही चाहिए, जीने का अवकास दे दो, केवल हमें हृदय में विश्वास दे दो” की प्रस्तुति के साथ आचार्य प्रवर ने ज्ञानार्थीयों को संकल्प दिलाए। आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर ने गागर में सागर भरते हुए संक्षिप्त सारगर्भित भावना रखी। स्वागताध्यक्ष श्री नरपतसिंह चोरडिया ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया।
चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री दीपचन्द नाहर, राष्ट्रीय एवं प्रशासनिक समिति से श्री अमृतलाल जी भंसाली, श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के पुर्वाध्यक्ष श्री हीरालाल मालू, अभातेयुप राष्ट्रीय सहमंत्री श्री पवन मांडोत, ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाएँ, श्री बहादूर सेठिया, सिवाणंची मालाणी की बहनें, श्री धर्मचन्द धोका, श्री कन्हैयालाल चिप्पड, श्री अमित नाहटा, श्री मदनलाल बरमेचा, श्री प्रकाश लोढ़ा ने गीत वक्तव्य के साथ अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए मुनि श्री दिनेश कुमार ने चातुर्मास में पुज्य प्रवर के आशीर्वचनों को सुन आत्मसात करने की प्रेरणा दी। अतिथियों का व्यवस्था समिति की तरफ से स्मृति चिन्ह द्वारा सम्मान किया गया।