– ‘भारत के सिलिकाॅन वैली’ बेंगलुरु में महातपस्वी महाश्रमण का नव्य-भव्य मंगल प्रवेश
-उमड़ा, आस्था, उत्साह, उल्लास, और आनंद का ज्वार, जनाकीर्ण बन गया राष्ट्रीय राजमार्ग
-सुहावने मौसम में बेंगलुरुवासियों की मुराद हुई पूरी, महानगर की सीमा में गतिमान हुए ज्योतिचरण
-विराट और ऐतिहासिक स्वागत जुलूस के साथ बेंगलुरुवासियों ने अपने आराध्य का किया अभिनन्दन
-सुशीलधाम से प्रथम उद्बोधन में आचार्यश्री ने पढ़ाया कर्तव्य बोध का पाठ
-शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के स्वागत में प्रवाहित होती रही श्रद्धालुओं के भावों की धारा
20.06.2019 सुशीलधाम, बेंगलुरु (कर्नाटक): विश्व के शीर्ष प्रौद्योगिकी केन्द्रों में एक, 47.2 बिलियन अमेरिकी डाॅलर की अर्थव्यवस्था के साथ भारत का प्रमुख आर्थिक केन्द्र, विश्व स्तरीय, केन्द्रीय व राज्य स्तरीय अनुसंधान और विकास संस्थानों का शहर, सबसे ज्यादा एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) आकर्षित करने वाला महानगर, सूचना प्रौद्योगिकी निर्यातों का अग्रणी स्रोत के कारण भारत के ‘सिलिकाॅन वैली’ से प्रसिद्ध दक्कन के पठारी भाग में बसा कर्नाटक राज्य की राजधानी के रूप म प्रतिष्ठित बेंगलुरु महानगर में गुरुवार को विश्व में शांति के संवाहक के रूप में प्रतिष्ठित, मानवता के मसीहा कहे जाने वाले, अपनी अखंड परिव्राजकता के द्वारा जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले, प्रत्यक्ष रूप से भाषा, संस्कृति, जाति, धर्म की सीमाओं के परे मानवता को स्थापित करने वाले, चरित्र को उन्नत बनाने की प्रेरणा प्रदान करने वाले, लगभग एक करोड़ से अधिक लोगों को नशामुक्ति का संकल्प कराने वाले, भारत के शीर्ष पर स्थित हिमालय से भारत ही बल्कि धरती के अंतिम छोर कहे जाने वाले कन्याकुमारी तक की धरा को अपने ज्योतिचरण से पावन बनाने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम महासूर्य, मानवता का मसीहा महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अहिंसा यात्रा के साथ नव्य-भव्य और ऐतिहासिक मंगल प्रवेश किया तो ऐसा लगा मानों प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अग्रणी भारत के इस महानगर को मानवता, अध्यात्म, शांति, सौहार्द, नैतिकता जैसे जनकल्याणी संदेशों से उन्नत बनाने के लिए पधारे हों।
ऐसे महामानव के अभिनन्दन में मानों यह प्रौद्योगिकी महानगरी बिछी-सी गई थी। गुरुवार को प्रातः की मंगल बेला में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने तमिलनाडु राज्य के कृष्णागिरि जिले के होसूर से मंगल प्रस्थान किया। प्रस्थान से पूर्व ही बेंगलुरु के सैकड़ों श्रद्धालु आचार्यश्री की अगवानी में पहुंच चुके थे। आज का मौसम भी सुहावना बना हुआ था। आसमान में तेजी दौड़ते बादल भी मानों महातपस्वी के दक्षिण की धरती पर दूसरे चतुर्मास वाले शहर बेंगलुरु में स्वागत करने के लिए पहुंच रहे थे। बहती शीतल बयार लोगों को आनंदित करने वाली थी। जैसे-जैसे आचार्यश्री अपनी अहिंसा यात्रा के साथ बेंगलुरु के निकट होते जा रहे थे, वैसे-वैसे श्रद्धालुओं की संख्या और उनका उत्साह भी बढ़ता जा रहा था। कुछ किलोमीटर पश्चात ही आचार्यश्री कर्नाटक राज्य की सीमा में प्रविष्ट हुए और देखते ही देखते बेंगलुरु महानगर की सीमा के सन्निकट पधार गए। वर्षों से अपने आराध्य के शुभागमन की प्रतीक्षा कर रहे तेरापंथी श्रद्धालुओं का आज मानों मनोरथ कुछ ही क्षणों में पूर्ण होने वाला था। इसके साथ अन्य जैन एवं जैनेतर श्रद्धालुओं की संख्या और उनका बढ़ता उत्साह आचार्यश्री महाश्रमणजी को केवल तेरापंथ के ही नहीं, अपितु संपूर्ण राष्ट्र के संत कहे जाने की गाथा गाए जा रहा था। आज यह फर्क नहीं किया जा सकता था कि कौन तेरापंथी और कौन अन्य समाज का है। सभी के उत्साह अपने चरम पर था। प्रत्येक निगाहें उस महामानव के दर्शन को लालायित थीं। हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालु विभिन्न वेश-भूषा में सजे-धजे नजर आ रहे थे। किसी के हाथ में आचार्यश्री के विचारों की तख्ती थी तो कोई वेलकम की तख्ती लिए खड़ा था। अनेक वाहनों पर कर्नाटक, बेंगलुरु की संस्कृति को दर्शाती मोहक झांकियां थीं, तो कई वाहनों पर तेरापंथ धर्मसंघ, अहिंसा यात्रा, सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति को दर्शाने वाली झांकियां थीं। कर्नाटक की पारंपरिक परिधानों से सजे-धजे कलाकार विभिन्न वाद्ययंत्रों और मुखौटों के साथ यहां की सभ्यता और संस्कृति की झलक प्रस्तुत कर रहे थे। ऐसा स्वागत का नजारा शायद बेंगलुरु महानगर के लिए ऐतिहासिक था। ऐतिहासिक हो भी क्यों न आखिर आचार्य महाश्रमणरूपी महामानव का मंगल शुभागमन जो होने जा रहा था।
महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जैसे ही बेंगलुरु की सीमा में कदम रखे तो पूरा वातावरण जयकारों से गुंजायमान हो उठा और कुछ समय के लिए ऐसा लगा मानों पूरा क्षेत्र ही महाश्रमणमय बन गया। इसके साथ ही आरम्भ हुआ भव्य और विराट जुलूस। शांतिदूत के पदचिन्हों का अनुगमन करते हुए जुलूस राजमार्ग पर चल पड़ा। श्रद्धालुओं की विराट उपस्थिति के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग भी जनाकीर्ण बना हुआ था। आचार्यश्री राजमार्ग के किनारे स्थित सुसवाणी माता मंदिर परिसर में पधारे। वहां कुछ क्षण रुकने के उपरान्त आचार्यश्री आज के आयोजन स्थल सुशील धाम में पधारे।
यहां आयोजित कार्यक्रम में सर्वप्रथम महाश्रमणजी साध्वीप्रमुखाजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान की। इसके उपरान्त आचार्यश्री प्रवचन पंडाल में पधारे। आचार्यश्री के साथ ही वयोवृद्ध संत गच्छाधिपति अशोकरत्नसूरिश्वरजी भी पधारे। आचार्यश्री से मिलन और कुछ मंगल मंत्रोच्चार के पश्चात् वे पुनः पधार गए। इसके उपरान्त आचार्यश्री ने बेंगलुरु की धरती से प्रथम पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में कर्तव्य बोध का बहुत महत्त्व होता है। साधु, राजा, आम नागरिक, माता-पिता, संतान, व्यापारी, ग्राहक आदि का अपना-अपना कर्तव्य होता है। जिसका जो कर्तव्य है, यदि उससे कोई च्यूत होता है तो अच्छा नहीं होता। जो अपने कर्तव्य और अकर्तव्य को नहीं जानता, उसका बहुत अनिष्ट भी हो सकता है। आदमी को अपने कर्तव्य का ज्ञान और उसकी सुरक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी के 23वें महाप्रयाण दिवस के अवसर पर उनको स्मरण कर उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। आचार्यश्री ने बेंगलुरु प्रवेश के संदर्भ में उपस्थित जनमेदिनी को पावन संबोध प्रदान करते हुए सभी में धर्मोल्लास बने रहने का मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
आचार्यश्री के आह्वान पर उपस्थित जनमेदिनी ने सहर्ष अहिंसा यात्रा के संकल्प स्वीकार किए। आचार्यश्री के दर्शन, प्रवचन और पावन आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त पद्मभूषण प्राप्त भारत के प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डाॅ. देविप्रसाद शेट्टी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि गुरुदेव! इतने वर्षों के कार्य क्षेत्र में एक हृदय की सर्जरी करने में तीन से चार घंटे का समय लगा है और आज आपके दर्शनार्थ उपस्थित होना था तो एक सर्जरी एक घंटे में ही पूर्ण हो गई, यह शायद आपकी कृपा का ही प्रसाद है। वहीं आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष श्री दिनेश गुंडुराव ने आचार्यश्री से सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की।
साध्वीवृंद द्वारा इस अवसर पर गीत का संगान किया गया। इसके उपरान्त बेंगलुरु चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर, महामंत्री श्री दीपचंद नाहर, स्वागताध्यक्ष श्री नरपतसिंह चोरड़िया, श्री पाश्र्व सुशीलधाम से संबंधित सुरणा परिवार के श्री आनंद सुराणा, श्री दिलीप सुराणा, तुलसी चेतना केन्द्र के श्री सोहनलाल मांडोत, भिक्षु भारती और भिक्षु धाम के अध्यक्ष श्री धर्मीचंद धोका, अभातेयुप के अध्यक्ष श्री विमल कटारिया, टीपीएफ-बेंगलुरु के अध्यक्ष श्री विमल मांडोत व अणुव्रत समिति के अध्यक्ष श्री कन्हैयालाल चिप्पड़ ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। श्री पाश्र्व सुशील धाम के पारिवारिक जनों, समस्त महिला मण्डल-बेंगलुरु, समस्त युवक परिषद-बेंगलुरु व समस्त कन्या मण्डल-बेंगलुरु द्वारा स्वागत गीत का संगान किया गया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावूपर्ण प्रस्तुति माध्यम से अपने आराध्य के श्रीचरणों की अभ्यर्थना की और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।