चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड में स्थित है। बद्रीनाथ धाम का उल्लेख भगवत पुराण, स्कंद पुराण और महाभारत में भी है। इस धाम की स्थापना सतयुग के समय से मानी जाती है। बेर के घने वन होने के कारण इस क्षेत्र का नाम बदरी वन पड़ा। मान्यता है कि जब गंगा मां, पृथ्वी पर अवतरित हुईं तो पृथ्वी उनका प्रबल वेग सहन न कर सकी। गंगा मां की धारा बारह जल मार्गों में विभक्त हुई। उसमें से एक है अलकनंदा का उद्गम। यही स्थल भगवान विष्णु का निवास स्थान बना और बद्रीनाथ कहलाया। मान्यता है कि यहीं किसी गुफा में महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की और पांडवों के स्वर्ग जाने से पहले यही उनका अंतिम पड़ाव था।
माना जाता है कि बद्रीनाथ धाम में मूर्ति की स्थापना स्वयं देवताओं ने की। यह मूर्ति शालीग्राम से निर्मित है और पद्मासन में विराजमान है। यह मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में स्थित है। महारानी अहिल्याबाई ने यहां स्वर्ण कलश का छत्र चढ़ाया था। मान्यता है कि धाम में स्थित मूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ उसी रूप में दिखाई देती है जैसा भक्त देखना चाहते हैं। भगवान बद्रीनाथ को बद्री विशाल नाम से पुकारते हैं। बद्रीनाथ मंदिर का मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल से होता है। कहते हैं जब भगवान विष्णु यहां तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। यह देख माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के समीप बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने तप पूर्ण किया तो उन्होंने माता लक्ष्मी को कहा कि तुमने भी मेरे बराबर तप किया है, इसलिए आज से इस धाम में मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जाएगा। कहते हैं कि यहां मांगी हुई मुराद भगवान अवश्य पूरी करते हैं।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।