रूद्रपुर:मां का हौसला गजब का था। हार न मानने की जिद और विपरीत परिस्थितियों में ‘एकलव्य’ की तरह हौसले से पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन जैसी कई खूबियां थीं मेरी मां में। मां के हौसले के दम पर मैंने खेल को जारी रखा और बेहतर प्रदर्शन करते हुए ‘अर्जुन’ पुरस्कार’ हासिल किया। यह बात अर्जुन अवार्डी मनोज सरकार ने कही।
आदर्श बंगाली कालोनी निवासी मनोज सरकार का बचपन बेहद गरीबी में बीता। उनकी मां जमुना सरकार बीड़ी बनाने और मटर तोड़ने का काम करती थीं। आर्थिक तंगी में दिन गुजरे लेकिन मां ने खुद के साथ ही परिवार का हौसला कम न होने दिया। सरकार ने बताया कि उनकी ज्वाइंट फैमिली थी तो एक बार चचेरे भाइयों के लिए रैकेट लाया गया था। जब उन्हें रैकेट नहीं मिला तो वह रूठ गए लेकिन मां ने अपनी मजदूरी से 10 रुपये दिए और कहा ले आ रैकेट। इसके बाद मैंने एक सेकेंड हैंड रैकेट खरीदा। वहीं से बैडमिंटन से जुड़ाव हो गया।
गलत उपचार से दिव्यांग हुए
मनोज के भाई मनमोहन सरकार ने बताया कि जब उनके बड़े भाई मनोज डेढ़ साल के थे तो उन्हें तेज बुखार आया था। गलत दवा खाने के बाद से उसके एक पैर में कमजोरी आ गई थी।
शुक्र हैं, मां के साथ साझा किया अर्जुन अवॉर्ड:
कनाडा में एक प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर रहे मनोज ने बताया कि उनकी मां का कहना था कि मेहनत के दम पर अच्छे खिलाड़ी तो बन जाओगे, लेकिन हमेशा एक अच्छे इंसान भी बने रहना। उन्होंने बताया कि जब उन्हें अर्जुन अवॉर्ड मिला तो उन्होंने अपनी मां के साथ साझा किया तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। मनोज ने बताया कि अगर ओलंपिक में उनका चयन होता है तो वह देश के लिए तो जरूर खेलेंगे ही लेकिन इससे पहले वह ओलंपिक मां के लिए खेलेंगे।.
मां के जाने के बाद घर हुआ सूना :
मनोज के मुताबिक, मां के देहांत के बाद से उन्हें घर की इच्छा भी कम ही रहती है। मां के देहांत के बाद दुबई में आयोजित प्रतियोगिता में भाग लिया।