सुरभि सलोनी/मुंबई। मुंबई में 29 अप्रैल को चुनाव होने हैं लेकिन यहां का चुनावी गणित हर दिन बनता-बिगड़ता दिखाई दे रहा है। पिछली बार मुंबई की सभी सीटें गंवा चुकी कांग्रेस को इस बार मुंबई से बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहा है, उसके सपनों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। हालांकि स्थिति 2014 से बेहतर होने की उम्मीद है, बावजूद इसके कांग्रेस के कई दिग्गजों की हालत खस्ता होती नजर आ रही है। सूत्रों की मानें तो मुंबई में संजय निरूपम तथा एकनाथ गायकवाड़ की गिनती सबसे कमजोर उम्मीदवारों में की जा रही है, जबकि इसका मुख्य कारण बसपा व सपा के उम्मीदवारों का मजबूती से लड़ना बताया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार, मुंबई उत्तर पश्चिम लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार संजय निरूपम मराठी फिल्मों की एक्ट्रेस, जाने माने पहलवान नरसिंह यादव को चुनाव प्रचार में लाकर मराठी एवं उत्तर भारतीय यादव मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उनका यह हथकंडा सिर्फ लोगों की भीड़ खींचने में ही कामयाब हो रहा है। क्षेत्र की गणित, पांच सालों में निरूपम के साथ जनता की कनेक्टिविटी, कांग्रेस के दिवंगत नेता गुरुदास कामत के समर्थकों की नाराजगी, अध्यक्ष रहने के दौरान जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ दोहरा बर्ताव आज भी उन पर भारी पड़ रहा है, जो लगातार निरूपम को नुकासान पहुंचाने का ही काम कर रहा है। रही-सही कसर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुभाष की उपस्थित ने पूरा कर दिया है। यहां अच्छी खासी मुस्लिम आबादी, साथ ही एससी/एसटी/ओबीसी वोटर्स हैं जो सपा-बसपा के साथ जा सकते हैं। इसका मुख्य कारण उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा साथ लड़ते हुए महाराष्ट्र में भी गठबंधन को जारी रखा है और यूपी में उनका यह गठबंधन काफी मजबूत है। जिसके चलते इस बार उन्हें लग रहा है कि पासी जीतने में कामयाब होंगे, और मुंबई में सपा-बसपा की एक और सीट मायावती-अखिलेश की झाली में आ सकती है। शिवसेना-भाजपा ने यहां से फिर से वर्तमान सांसद गजानन कीर्तिकर को चुनाव मैदान में उतारा है। जो मराठी और उत्तर भारतीय वोटों का अच्छा हिस्सा अपनी तरफ खींचने में कामयाब होते नजर आ रहे हैं। फिलहाल इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला दिखाई दे रहा है।
अगर दक्षिण मध्य मुंबई लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां से कांग्रेस उम्मीदवार एकनाथ गायकवाड़ अपने प्रचार में भी भीड़ खींचने में नाकाम साबित हो रहे हैं, क्योंकि उनके क्षेत्र की जनता आज भी उनसे खासी नाराज नजर आ रही है। लोगों का मानना है कि खुद मंत्री, सांसद रह चुके हैं जबकि उनकी बेटी भी विधायक व मंत्री रह चुकी हैं बावजूद इसके धारावी की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है। इसके लिए लोग सबसे ज्यादा गायकवाड़ को ही जिम्मेदार मानते हैं। हालांकि गायकवाड़ कहते हैं कि वे हमेशा जनता के बीच रहने वाले नेता हैं, हारने के बाद भी वे जन समस्याओं को लेकर संघर्ष करते रहे हैं, बावजूद इसके वे जनता के बीच अपनी पैठ बनाने में कमजोर साबित हो रहे हैं। इसकी वजहों पर गौर करें तो एससी/एसटी/ओबीसी इस बार बसपा प्रत्याशी शकील शेख को एकमुश्त वोट देने का मन बना चुके हैं तथा पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी की वजह उनके आधार वोट में भी सेंध लग सकती है। दूसरी सबसे बड़ी बात कि वर्तमान सांसद राहुल शेवाले की छवि अभी भी लोगों के बीच बेहतर है। हालांकि शिवसेन-भाजपा के बीच हुए खींचतान, आरोप-प्रत्यारोपों के चलते वोटर्स कन्फ्यूज तो हैं लेकिन उन्हें इसका उतना नुकसान नहीं होगा, जितना एससी/एसटी/ओबीसी के खिसकने से कांग्रेस प्रत्याशी एकनाथ गायकवाड़ को होने जा रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि इस सीट पर भी बड़ी संख्या में एससी/एसटी/ओबीसी के मतादाता हैं, जिनमें मराठी, दक्षिण भारतीय व उत्तर भारतीयों का समावेश है।
उल्लेखनीय है कि 2014 में बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार गणेश अय्यर 14,762 मत प्राप्त हुए थे, जबकि शिवसेना के राहुल शेवाले 3,81008 मत पाकर विजयी घोषित हुए थे। एकनाथ गायकवाड़ दूसरे नंबर थे और उन्हें 2,42,828 वोट मिले थे, जो लगभग डेढ़ लाख वोटों का अंतर था। ऐसे में डेढ़ लाख वोटों के अंतर को कम कर पाना गायकवाड़ के लिए बेहद मुश्किल है। हालांकि जीत का फैसला जनता के वोटों से होगा, जिसकी घोषणा 23 मई को होना है। (अगली स्टोरी में अन्य विश्लेषण भी पढ़ें शीघ्र…)
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