मुंबई। मंगलवार 9 अप्रैल को मुंबई में लोकतांत्रित मूल्यों के लिए काम कर रही संस्था प्रजा फाउंडेशन ने एक रिपोर्ट जारी करके कहा कि आज भी बीएमसी नागरिकों की समस्याओं को लेकर संवेदनशील नहीं है, क्योंकि दिनोंदिन बढ़ती जा रही शिकायतों के निपटारे के लिए औसतन डेढ़ महीने का समय लग जाता है।
प्रजा फाउंडेशन द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई के नागरिक एमसीजीएम से अधिक दुखी होते जा रहे हैं। देखने में आया है कि वर्ष 2016 में जहां नागरिक शिकायतों की संख्या 81,555 थी, वह वर्ष 2018 में बढ़कर 1,16,658 हो गई। समयबद्ध सेवा वितरण भी गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। उदाहरण के लिए, 2018 में शिकायतों को हल करने के लिए लगाए गए 46 दिनों की औसत संख्या चौंकाने वाली है।
“जहां तक अच्छी गुणवत्ता वाली सेवा प्राप्त होने और शिकायतों के लिए किसी प्रभावी प्रतिसाद प्रणाली मौजूद होने का संबंध है, तो नागरिकों के लिए यही बातें सबसे अधिक मायने रखती हैं। अपने पास मौजूद डेटा पर नजर डालते हुए हम कह सकते हैं कि नागरिकों और उनके मुद्दों की चिंता पूरी तरह से नदारद है; ऐसा लगता है जैसे कि नागरिक कोई मायने ही नहीं रखते!- कहना है प्रजा फाउंडेशन के संस्थापक और प्रबंध ट्रस्टी निताई मेहता का। उदाहरण के लिए, जनवरी 18-दिसंबर 18 के दौरान एमसीजीएम को मिलीं 12% शिकायतें सड़कों से संबंधित थीं और वार्ड समितियों में उठाए गए 15% प्रश्न सड़कों व चौराहों के नामकरण/पुनर्नामकरण को लेकर थे।
यहां तक कि जब शिकायतें दर्ज की गईं, तो काउंसलर कोड, जो नगर पार्षद के साथ-साथ प्रशासन को भी समस्या के समाधान के लिए जिम्मेदार ठहराता है, भरा ही नहीं गया। वर्ष 2018 में 76%, 2017 में 77% और 2016 में 69% मामलों में इसे नहीं भरा गया। इसके चलते एमसीजीएम की शिकायत प्रबंधन प्रणाली के प्रभावी होने पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है।
“एमसीजीएम से प्राप्त कर्मचारियों के आंकड़ों के अनुसार, सिटी गवर्नमेंट द्वारा आवश्यक पदों की संख्या को मंजूरी देने के बावजूद पुल विभाग 40% कर्मचारियों की कमी दिखाता है। एमसीजीएम के सभी विभागों में कर्मचारियों की कमी कुल मिलाकर 34% है।”- बताते हैं प्रजा फाउंडेशन के निदेशक मिलिंद म्हस्के।
प्रजा की रिपोर्ट ने ग्रेटर मुंबई के सार्वजनिक शौचालयों में उपलब्ध टॉयलेट सीटों की संख्या का भी विश्लेषण किया है। विश्लेषण से संकेत मिला कि पुरुषों और महिलाओं के लिए उपलब्ध शौचालयों की संख्या में 66% का बड़ा अंतर है। ऐतिहासिक रूप से विशाल प्रवासी आबादी वाले ‘सी ‘वार्ड (मरीन लाइन्स) में यह अंतर सबसे अधिक (85%) दिखी। सुरक्षित एवं स्वच्छ सैनिटेशन इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के चलते महिलाओं पर जो व्यापक सामाजिक आर्थिक असर पढता है, उसके मद्देनजर ये बेहद चौंकाने वाले आंकड़े हैं। पार्षदों द्वारा पूछे गए सवालों के बारे में किया गया प्रजा का विश्लेषण एक और दिलचस्प खोज को सामने लाता है। मार्च 2017 और दिसंबर 2018 के बीच वार्ड समिति की बैठकों में 12 नगर पार्षदों ने कोई सवाल ही नहीं पूछा।
“वार्ड समिति की बैठकों में वर्ष 2017 के दौरान 82% उपस्थिति दर्ज कराने के बाद एमसीजीएम के नगर पार्षद 2018 में 79% ही मौजूद रहे, 2018 में पार्षदों ने 1,046 प्रश्न पूछे। उन्होंने 2018 में बैठकें भी अधिक आयोजित कीं, जिससे संकेत मिलता है कि हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि प्रशासन से अधिक प्रश्न पूछने के लिए अधिक बैठकें संचालित कर रहे हैं। हालांकि, वार्ड समिति की बैठकों में कोई भी सवाल न पूछने वाले नगर पार्षदों की चौंका देने वाली संख्या अभी भी 31 है, जो उनके निर्वाचन क्षेत्रों के नागरिकों की निराशा को बढ़ा रही है।”
– म्हस्के ने बताया।