फिल्मः नोटबुक डायरेक्टरः नितिन कक्कड़
कलाकारः जहीर इकबाल, प्रनूतन बहल व अन्य
स्टारः 3.5
सलमान खान द्वारा निर्मित व जहीर इकबाल व प्रनूतन बहल स्टारर फिल्म ‘नोटबुक’ कश्मीर की खूबसूरत वादियों में पनपी एक खूबसूरत प्रेम कहानी है। इस फिल्म में कश्मीर की मुख्य समस्या को इंगित करते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि ‘अंधेरे को अंधेरे से नहीं खत्म किया जा सकता, इसके लिए उजाले की जरूरत है’। कश्मीर की वादियों और ट्रैक से हटकर अलग तरह की प्रेम कहानी और कश्मीर के भाई-चारे की अलग दास्तां को फिल्म के माध्यम से पेश किया गया है।
कहानीः ‘नोटबुक’ ऐसे स्कूल की कहानी है जहां कुल 7 बच्चे पढ़ते हैं। इसकी स्थापना कश्मीर विस्थापित होने से पहले एक कश्मीरी पंडित ने की है जबकि इसकी देखरेख एक कश्मीरी मुस्लिम बुजुर्ग द्वारा किया जाता है जो उनके घर की भी देख-रेख हैं। दोनों परिवारों के बीच बातचीत होती रहती है, जिनमें पंडितजी के घर पर सिर्फ उनका बेटा कबीर (जहीर इकबाल) है जो फौज की नौकरी छोड़कर घर आ जाता है। जबकि यहां वही एक बुजुर्ग। कश्मीर में रहकर कबीर के घर की देखरेख कर रहे बुजुर्ग का एक दिन अचानक कबीर को फोन आता है और उसे कश्मीर बुला लेते हैं और बताते हैं कि उस स्कूल में कोई टीचर नहीं है जिसकी स्थापना कबीर के पिताजी ने की थी। अगर कोई वहां पढ़ाने न आया तो स्कूल बंद हो जाएगा। वे चाहते हैं कि कबीर वहां पढ़ाए लेकिन कबीर इसमें असमर्थता जाहिर करता है, क्योंकि वह पढ़ाई में कमजोर था, लेकिन फिर अपने चाचा के कहने पर मान जाता है और हाउसबोट पर बने उस स्कूल में पढ़ाने जाता है जहां उसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इधर-उधर देखने के बाद ड्रावर में उसे एक डायरी मिलती है जो इससे पूर्व यहां पढ़ा रही अध्यापिका फिरदौस (प्रनूतन बहल) की है। इसमें वह अपने अनुभव लिखती थी। वह डायरी देखकर उसे एकतरफा प्यार हो जाता है। डायरी से उसे एक बात और पता चलती है कि एक बच्चा जो पढ़ने में बहुत अच्छा है लेकिन उसका पिता उसे पढ़ने नहीं देता क्योंकि उसे लगता है कि घाटी में पढ़ाई का कोई मतलब नहीं है, उसे मजहबी तालीम लेकर बंदूक उठाना चाहिए। कबीर उसके घर जाकर उसकी मां से स्कूल भेजने की बात कहता है और कहता है कि अंधेरे को अंधेरे से नहीं खत्म किया जा सकता, उसे उजाले की जरूरत होती है। जिससे प्रभावित उसकी मां उसे स्कूल भेजने लगती है। अब डायरी में कबीर भी अपनी कहानी भी लिखने लगता है। पूरे साल पढ़ाने के बाद बच्चों के मार्क्स अच्छे नहीं आते, इस बीच फिरदौस किसी और स्कूल में पढ़ाती है और उसकी शादी तय हो जाती है। वह स्कूल में पढ़ाना छोड़ देता है और फिर से स्कूल में फिरदौस आ जाती है और वह अपनी डायरी देखती है, जिसमें कबीर की भी कहानी लिखी होती है और उसके एकतरफा प्यार का इजहार भी। फिरदौस कबीर को ढ़ूढ़ने जाती है…। फिल्म में ‘अंधेरे को अंधेरे से नहीं खत्म किया जा सकता, उसे उजाले की जरूरत होती है’ का मतलब जानने और कबीर-फिरदौस की प्रेम कहानी में क्या मोड़ आता है, यह जानने के लिए थिएटर जाकर फिल्म जरूर देखें। फिल्म आपको भी अच्छी लगेगी साथ ही कश्मीर की खूबसूरत वादियों में आप भी खो जाएंगे।
एक्टिंगः फिल्म में जहीर इकबाल और प्रनूतन बहल दोनों ही बहुत खूबसूरत लगे हैं। बढ़िया एक्टिंग भी की है। उनका एक्सप्रेशन देखकर प्रभावित होंगे। बच्चों की बहुत अच्छी जुगलबंदी है। उनकी मासूमियत काफी प्रभावित करती है। बाकी कलाकारों ने भी अच्छा अभिनय किया है।
डायरेक्शनः नितन कक्कड़ का डायरेक्शन अच्छा बन पड़ा है। हर सीन बन पड़ा है। फिल्म में कोई भी सीन अनावश्यक नहीं लगता। कुल मिलाकर अच्छी फिल्म बन गई है। समय निकालकर एक बार जरूर देखें।
संगीतः जरूरत के हिसाब से संगीत ठीक-ठाक है।
- दिनेश कुमार/[email protected]