विरार। आचार्य श्री महाश्रमण जी की शुशिष्या समणी डॉ श्री निर्वानप्रज्ञा जी के सानिध्य में होली चातुर्मास का आयोजन विरार तेरापंथ भवन में किया गया । कार्यक्रम की शुरुआत समणी जी द्वारा नमस्कार महामंत्र से हुआ। मयूरी सोलंकी ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। महिला मंडल, ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओ, तेयुप, सभा द्वारा विभिन्न गितिकाओ की प्रस्तुति दी गयी।
सभा अध्यक्ष तेजराज हिरण ने सभी का स्वागत किया। जीवराज सांखला ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कन्यामण्डल द्वारा टेंशन फ्री कौन है नाटक की प्रस्तुती दी। समणी प्रगति प्रज्ञा जी ने बताया जीवन मे पवित्रता बढ़ाने के लिए भक्ति को महत्व दे, अवगुणों व बुराइयों को बहिस्कार करे,समर्पण को महत्त्व दे इसी के साथ होलिका और प्रह्लाद की कहानी के माध्यम से संदेश दिया कि जीवन मे भक्ति,समर्पण का कितना महत्व है।
समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी ने अपनी बात उदाहरण द्वारा प्रस्तुत करते हुए कहा कि गार्डन में विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे होते है सभी एक ही जमीन पर है,सभी एक ही पानी लेते है फिर भी अलग अलग होते है इस का कारण है जैसा बीज होता है वैसा ही वृक्ष होगा। प्रश्न है मनुष्य इतने भिन्न क्यों है कोई राम है कोई रावण,कोई कृष्ण है कोई कंश,कोई महावीर है कोई गोशालक इसका मुख्य कारण है हमारे चरित्र की पवित्रता। व्यक्ति अपनी पवित्रता के कारण ऊपर जाता है और उसी से महान बनता है । जंहा सरलता है वंहा पवित्रता है । समणी जी ने ध्यान का प्रयोग करवाते हुए पवित्रता का एहसास कराया।
समणी निर्वानप्रज्ञा जी ने अपने प्रवचन में कहा हिन्दुओ के प्रमुख त्योहार है होली,दीवाली व राखी और इसमें होली का त्यौहार मनुष्य के साथ जुड़ कर अपवित्र होता जा रहा है क्योंकि मनुष्य के विचार ही अपवित्र है ,अपने विचारों में जो होगा वो ही बाहर आएगा। प्रहलाद की कहानी बताते हुए कहा कि धर्म की विजय अधर्म पर होती है धर्म का पेड़ कभी नही सुखता, धर्म की जड़ मजबूत होती है, अधर्म का नाश होता है। भगवती सूत्र में कहा है जब तक एक भी साधु जिंदा रहेगा छठा आरा नही आएगा। ईमानदारी का एक रूपया हजार का काम करता है व बेईमानी का हज़ार रुपया एक रुपया का काम करता है। हमारे मन की अपवित्रता रोग का कारण है। मन की अस्वस्थता छोड़कर स्वस्थ्य बनाने की जरूरत है। होली के समय को होली चातुर्मास कहते है क्योंकि इसके आसपास के चार महीने में लोग धर्म आराधना कम होती है । हमारे जीवन मे पवित्रता बढ़ेगी तो आचार,विचार,व्यवहार में पवित्रता बढ़ेगी,विचारों की पवित्रता में सात्विकता होगी तो पदार्थों के प्रति आसक्ती काम होगी, तन के रोगी के लिए डॉक्टर है मन के रोगी के लिए संत की आवश्यकता होती है। हमारा आचरण अच्छा बने। आचरण अच्छा होगा तो सम्मान बढेगा। आचार उच्च होगा तो व्यवहार स्वतः विनम्र होगा।
सभा मंत्री अजयराज जी ने सभी को होली की शुभकामनाएं प्रेषित की । वसई, नालासोपारा व आसपास के क्षेत्रों से श्रावकों की अच्छी उपस्थिति रही। कार्यक्रम को सफल बनाने में तेयुप अध्यक्ष विजय धाकड़,उपाध्यक्ष हेमंत धाकड़, नरेश बोहरा, रमेश जोठा, जीवन जी सांखला आदि का सहयोग रहा।कार्यक्रम का संचालन समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी ने किया। यह जानकारी सभा के मीडिया प्रभारी हेमंत धाकड़ ने दी।
होली चातुर्मास (विरार): कैसे बढ़ाएं पवित्रता – समणी निर्वाणप्रज्ञा जी
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