दिनेश चक्रवर्ती/सुरभि सलोनी ऑनलाइन
फिल्मः मणिकर्णिका, डायरेक्टरः कंगना राणावत, कृष कलाकारः कंगना राणावत, अंकिता लोखंडे, रिचर्ड कीप, जीशु गुप्ता, डैनी, सुरेश ओबेरॉय, अकुल कुलकर्णी, कुलभूषण खरबंदा आदि समयः 2 घंटे 28 मिनट, स्टारः 3.5
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कंगना राणावत अभिनीत व निर्देशित फिल्म ‘मणिकर्णिका’ की भव्यता, कंगना की अदाकारी, निर्देशन लाजवाब है, फिल्म को जरूर देखा जाना चाहिए हालांकि रानी लक्ष्मीबाई के विशाल व्यक्तित्व को लगभग ढाई घंटे की इस फिल्म में समेटने की कोशिश सफल नहीं हुई है। बावजूद इसके कंगना एक बार फिर अपने अभिनय का लोहा मनवाने में कामयाब रही हैं, साथ ही पहली बार निर्देशन करके उन्होंने यह साबित कर दिया है कि कंगना वाकई में ‘रील’ ही नहीं रीयल लाइफ में भी ‘हीरो’ हैं।
कहानीः जैसा कि पहले से ही सबको पता है कि यह फिल्म झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर आधारित है सो, काफी रिसर्च भी की गई है, बावजूद इसके रानी लक्ष्मी बाई के जीवन के प्रमुख अंश ही इसमें समाहित किए गए हैं। रानी का जन्म, पालन-पोषण, बचपन से ही हथियारों का शौक, पढ़ाई में रुचि, सामान्य लड़कियों से अलग शौक, शादी, पिता, पति, पुत्र और अंत में वीरगति को प्राप्त होने की कहानी बखूबी फिल्माया गया है। कोशिश यह भी रही है कि उनके जीवन की अधिकतम घटनाओं, स्थितियों को शामिल किया जाए लेकिन फिल्ममेकर्स को इसमें कामयाबी नहीं मिली है। हालांकि जिन घटनाओं को फिल्म में शामिल किया गया है, उसे बखूबी परदे पर उतारा गया है। कुल मिलाकर ‘मणिकर्णिका’ के जरिए जो संदेश देना था, रानी लक्ष्मी बाई की जिस वीरता, न्यायप्रियता, वीर मां, वीर पत्नी, वीर पुत्री को परदे पर उतारना था, उसमें फिल्म कामयाब तो रही है लेकिन रानी लक्ष्मीबाई जैसी विशाल व्यक्तित्व वाली बलिदानी वीरांगना की कहानी को तीन घंटे में समेटने में नाकाम रही है। हालांकि देखने के बाद दर्शकों को निराशा नहीं होगी, क्योंकि फिल्म की कसी हुई कहानी दर्शकों को अपने से जोड़े रखने में सफल रही है।
अभिनयः झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के रूप में कंगना का अभिनय बेजोड़ है। किरदार के हर उतार चढ़ाव के एक्सप्रेशन, डायलॉग डिलीवरी और अंत में रणभूमि में शेरनी की तरह दहाड़कर रानी लक्ष्मीबाई के व्यक्तित्व को परदे पर पूरी तरह उतार दिया है। साथ ही अंकिता लोखंडे ने भी झलकारी बाई के किरदार को जीवंत बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। जनरल रोज के रोल में रिचर्ड कीप का अभिनय भी यादगार है। गंगाधर के किरदार में जीशु सेनगुप्ता, डैनी (गुलाम मुहम्मद उर्फ गौस बाबा), सुरेश ओबेरॉय (पेशवा बाजीराव), अतुल कुलकर्णी (तात्या टोपे) व राजगुरु बने कुलभूषण खरबंदा के अलावा मोहम्मद जीशान व अन्य कलाकारों ने भी अपने किरदार के साथ पूरी तरह न्याय किया है।
निर्देशनः मुख्य किरदार के साथ पहली बार निर्देशन का बागडोर संभालने वाली कंगना राणावत ने कमाल कर दिया है। हालांकि उनके साथ सहायक निर्देशकों का भी योगदान महत्वपूर्ण है। कुल मिलाकर फिल्म के हर सीन को बेहतर बनाने के लिए निर्देशकों ने भरपूर मेहनत की है। यही वजह है कि फिल्म इतनी शानदार बन पाई है।
संगीतः फिल्म में संगीत देखें तो शंकर एहसान लॉय ने बिल्कुल फिल्म के हिसाब से बनाए हैं। प्रसून जोशी ने बिल्कुल फिल्म के अनुरूप ही शब्दों का गढ़ा है। शंकर महादेवन व सुखविंदर सिंह की आवाज देशभक्ति के जज्बे को झोकझोरने में कामयाब रही है।
कुल मिलाकर गणतंत्र दिवस के मौके पर कंगना ने दर्शकों को सही फिल्म दी है। इसे जरूर देखनी चाहिए। टिकट का पैसा वसूल तो होगा ही गणतंत्र दिवस पर थिएटर से नई स्फूर्ति लेकर निकलेंगे।
सुरभि सलोनी ऑनलाइन की तरफ से 3.5/5 स्टार।