नई दिल्ली:सामान्य वर्ग के लिए लाया गया दस फीसदी आरक्षण का कानून निजी शिक्षण संस्थानों में भी लागू होगा। संसद में पेश किए गए विधेयक में यह प्रावधान किया गया है। ‘शिक्षा के अधिकार’ कानून (आरटीई) के बाद यह दूसरा मौका है जब निजी संस्थानों के लिए इस प्रकार के आरक्षण का प्रावधान अनिवार्य किया जा रहा है। संसद में पेश 124वें संविधान संशोधन विधेयक के तहत दो अहम बदलाव किए गए हैं। एक शिक्षण संस्थानों में आरक्षण को लेकर तथा दूसरे रोजगार को लेकर। संविधान के अनुच्छेद 15 में शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान है। लेकिन अब तक जो आरक्षण मिलते रहे हैं, वह सिर्फ सरकारी और सरकार से सहायता प्राप्त संस्थानों के लिए होते हैं। लेकिन इस विधेयक में निजी संस्थानों को भी स्पष्ट तौर पर लिखा गया है। हालांकि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।
इससे पहले केंद्र सरकार द्वारा 2009 में पारित शिक्षा के अधिकार कानून में 25 फीसदी सीटें आर्थिक रूप से कमजोर और उपेक्षित वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है। आठवीं तक के निजी स्कूलों में यह नियम लागू किया गया है। मौजूदा कानूनों के तहत एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण निजी संस्थानों पर लागू नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में एक फैसले में स्पष्ट किया है कि सरकार निजी संस्थानों पर यह आरक्षण नहीं थोप सकती। लेकिन संविधान संशोधन विधेयक में अब नए सिरे से यह प्रावधान किया जा रहा है।
हर धर्म के गरीबों को लाभ
केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत ने बिल पर चर्चा के दौरान कहा कि जो भी जाति एससी, एसटी और ओबीसी में नहीं आती है, उन्हें सामान्य वर्ग आरक्षण का लाभ मिलेगा। साथ ही हर धर्म के गरीबों को सामान्य आरक्षण वर्ग में लाभ मिलेगा। गहलोत ने कहा कि एससी-एसटी और ओबीसी के 49.5 फीसदी आरक्षण में कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी।