भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री पहुंचे आंचलिया परिवार के निवास स्थान
सिरकाली, नागापत्तिनम (तमिलनाडु): नित नए गांवों, कस्बों, क्षेत्रों, शहरों और नगरों को अपने ज्योतिचरण से पावन बनाने वाले, सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति रूपी मानवीय त्रिवेणी को प्रवाहित करने वाले, लोगों को सत्पथ दिखाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए तमिलनाडु के एक और नए जिले नागापत्तिनम में पावन प्रवेश किया। इतना ही नहीं ज्योतिचरण से इस जिले का सिरकाली नगर को सर्वप्रथम ज्योतित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस सुनहरे अवसर को प्राप्त कर सिरकाली का जन-जन हर्षित था, उत्साहित था, उत्कंठित था, आह्लादित था। उनके आंतरिक भावों को उनके प्रसन्नता से खिले हुए चेहरे पर देखा जा सकता था।
रविवार को प्रातः महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अयांगुडीपल्लम से मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री ने कुछ किलोमीटर की दूरी तय की थी कि कडलूर जिले की सीमा ने आचार्यश्री के चरणरज लेकर विदा हुई तो महातपस्वी के ज्योतिचरण को पाकर तमिलनाडु का एक नया जिला नागपत्तिनम हर्षित हो उठा। आज आचार्यश्री का शुभागमन सिरकाली नगर में होने वाला था। अपने आराध्य के स्वागत में सूर्योदय से पूर्व ही सिरकाली का समाज तत्पर दिखाई दे रहा था। सबकी आंखें उस रास्ते पर टिकी हुई थीं, जिस रास्ते महातपस्वी, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी का शुभागमन होना था। जन-जन को अपना मंगल आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री जैसे ही सिरकाली नगर की सीमा के निकट पहुंचे तो सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं व सैंकड़ों विद्यार्थियों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। पारंपरिक वाद्य यंत्रों सहित सिरकाली के विभिन्न सामाजिक संगठनों आदि के अनेकानेक लोग भी आचार्यश्री के स्वागतार्थ उपस्थित थे। आचार्यश्री की एक झलक पाने को प्रत्येक नयन लालायित नजर आ रहा था। आचार्यश्री के पधारते ही लोगों के जयघोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा। भव्य जुलूस के साथ आचार्यश्री नगर के लोगों को पावन आशीष प्रदान करते हुए नगर स्थित सुगनकुंज आंचलिया परिवार के निवास स्थान में पधारे। अपने आराध्य को अपने आंगन में पाकर आंचलिया परिवार हर्षाभिभूत बना हुआ था।
प्रवास स्थल से लगभग सौ मीटर की दूसरी पर स्थित श्री जैन संघ के स्थानक में आयोजित मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन का परम लक्ष्य होना चाहिए सर्वदुःख मुक्त बनना। सर्वदुःखमुक्त बनने के लिए हमेशा के लिए पूर्णतया छुटकारा प्राप्त करना होता है। दुःख आदमी के लिए अप्रिय होता है। दुनिया का कोई भी प्राणी हो, वह दुःख से दूर रहने की कोशिश करता है। दुःख शारीरिक और मानसिक भी हो सकता है। आत्मा का संयम करना अर्थात् आत्मानुशासन को दुःख से मुक्त होने का साधन बताया गया है। आदमी दूसरों पर अनुशासन करता है अथवा करने की सोचता है, लेकिन आदमी को अपने स्वयं पर अनुशासन करने का प्रयास करना चाहिए। अपने शरीर, वाणी और मन पर अनुशासन कर लेने का परिणाम ही आत्मानुशासन होता है। भोजन में मनोज्ञ पदार्थों के प्राप्त होने पर भी संयम रखना, वाणी का संयम रखना और आदमी को मन का गुलाम नहीं, बल्कि मन को अपना गुलाम बनाकर रखने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी स्वयं पर अनुशासन (आत्मानुशासन) की सर्वदुःखमुक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के पश्चात् सिरकालीवासियों को अहिंसा यात्रा के संकल्प स्वीकार कराए तो उसके साथ ही सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) की करवाई। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने भी सिरकालीवासियों को पावन संबोध प्रदान करते उन्हें सौभाग्य से प्राप्त इस सुअवसर का आध्यात्मिक लाभ उठाने की पावन प्रेरणा प्रदान की।
इसके उपरान्त महासभा के ट्रस्टी तथा वर्तमान में अहिंसा यात्रा के प्रभारी श्री ज्ञानचंद आंचलिया, श्री एस.एस. जैन संघ की ओर से श्री हरकचंद बोहरा, श्री धनराज चैधरी, श्री हरिश आंचलिया, सुश्री पूजा माली व श्रीमती संगीता खींवेसरा ने अपनी आस्थासिक्त हृदयोद्गार व्यक्त की। स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल और श्रीमती हर्षा आंचलिया ने पृथक-पृथक स्वागत गीत का संगान किया। श्री टी.जी. वेंकटरमण ने संस्कृत भाषा में आचार्यश्री की अभिवन्दना की। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति के माध्यम से अपने आराध्य की अभिवन्दना की। दो नन्हें बालक दिव्यांश और लक्ष्य ने बालमना भावों को श्रीचरणों में समर्पित कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। मुनि कौशलकुमारजी तथा साध्वीश्री तेजस्वीप्रभाजी ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी।