गिरमिटिया पलायन के वास्तविक दर्द व हालात को किया बयां किया राज मोहन सूरीनाम ने
मुंबई। मुंबई प्रेस क्लब में परमानन्द फाउंडेशन ट्रस्ट द्वारा सूरीनाम के प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय गायक राज मोहन और रग्गा मेनो का एक कार्यक्रम “ एक शाम गिरमिटिया” के नाम आयोजित किया गया. राज मोहन सूरीनाम ने उनका सबसे चर्चित गाना “दुई मुट्ठी और एक दिन के मजूरी” ने ब्रिटिश काल में गिरमिटिया पलायन के वास्तविक दर्द व हालात को बयां किया।
इस कार्यक्रम के संयोजक मुंबई के प्रसिद्ध चार्टर्ड अकाउंटेंट पंकज जायसवाल और विमल वर्मा थे और प्रायोजक भारत की प्रथम लिट्टी चोखा ऑनलाइन फ़ूड चेन लिटटो थी और अतिथियों का स्वागत आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल गलगली ने किया।
राज मोहन सूरीनाम जो दक्षिण अमेरिकी देशों और यूरोप, मॉरिशस में अपनी खुद की शैली में भोजपुरी के महान गायक हैं. इन्होने भोजपुरी के अपने बैंड के माध्यम से अमेरिकी और यूरोप में धूम मचा रखी है. इनके साथ आये गायक रग्गा मेनो भोजपुरी में रैप गाते हैं. दोनों कलाकार भारत “हनुमान चालीसा” पर एक एल्बम की शूटिंग के सिलसिले में भारत आये हैं और इसकी शूटिंग अभी उन्होंने कर्नाटक में हनुमान जी के जन्मस्थली में की है और यह अल्बम जल्द ही बाजार में आने वाला है. राज मोहन भोजपुरी में गीत-गजल, पॉप, रैप, लोक-गीत एवं बैठक गाने के लिए प्रसिद्ध हैं। भारत से गिरमिटिया के पलायन पर इनका गाना “दुई मुट्ठी और एक दिन के मजूरी” अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गाना है और ब्रिटिश काल में गिरमिटिया पलायन के वास्तविक दर्द व हालात को बयां करता है।
इस कार्यक्रम में उन्होंने सूरीनाम में भारत से पलायन के बाद उनके पूर्वजों ने कैसे संस्कृति और परंपरा को संजोये रखा और कैसे राजमोहन ने इस यात्रा को अपने गायन और संगीत के माध्यम से आगे बढाया इसे बताया। बातचीत में उन्होंने बताया कि ब्रिटिश भारत में यहाँ से गिरमिटिया मजदूर सुरीनाम (डच गुयाना) में 5 जून 1873 को जहाज पहुंचे, और इसी की याद में वहां सूरीनाम और नीदरलैंड में हिंदुस्तान द्वारा इमिग्रेशन दिवस मनाया जाता है। अनुबंध की अवधि 1873 से 1916 तक चली और 35,000 से अधिक हिंदुस्तानी ब्रिटिश भारत से सूरीनाम पहुंचे। उनके अनुबंध समाप्त होने के बाद उनमें से लगभग एक तिहाई अपने घर लौट आये। बाकी सुरीनाम में बने रहे। आज उनके वंशज अब सुरीनाम में 300,000 और नीदरलैंड में 150,000 की संख्या में हैं। सरनामी लोगों ने 145 साल तक अपनी संस्कृति और उनकी भाषा को जीवित रखा है। राज मोहन सरनामी-भोजपुरी भाषा, सरनामी गीत और पॉप स्टाइल में गीतों की एक पूरी तरह से नई और अपनी शैली का परिचय देते हैं, जो सुरीनाम के बैठक गाना और लोक संगीत से न केवल अलग-अलग हैं, बल्कि संगीत के हिसाब से भी अलग हैं. इन्होंने अपनी मातृभाषा में गीत और पॉप गीतों के साथ पहले से ही 3 एल्बम क्रांतिकारी (2005), दायरा (2011) और दुई मुट्ठी (2013) को पेश किया हैं। इस कार्यक्रम में मेहमानों को खांटी भोजपुरी खाना लिट्टी भी खिलाया गया।