आदर्श तिवारी।।
1984 के सिख नरसंहार के इंसाफ की कड़ी में 17 दिसंबर का दिन बेहद महत्वपूर्ण माना जाएगा। दिल्ली हाईकोर्ट ने कांग्रेस के पूर्व वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद सज्जन कुमार को दोषी बताते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। गौरतलब है कि इंदिरा गांधी की हत्या के पश्चात दिल्ली सहित देश भर में सिखों पर भारी जुल्म किया गया था। उस नरसंहार के पीछे इंदिरा गांधी की हत्या का बदला लेने की भावना थी। जो इस तरह भड़की कि हजारों सिखों की बलि लिए बगैर शांत नहीं हुई। यह घटना आजाद भारत के इतिहास में सबसे क्रूरतम घटनाओं में सबसे प्रमुख है।
सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग किस तरह नियम, कानून का बेजा इस्तेमाल कर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर सकते हैं सिख विरोधी दंगा इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। आज 34 साल बाद भी अगर सिख समुदाय को अब जाकर इंसाफ की राह आसान हो रही है तो यह समझना आवश्यक है कि सिखों के न्याय के अधिकार में बाधा बनने वाली शक्तियां कितनी मजबूत थीं। सिखों के जख्मों पर कांग्रेस समय-समय पर नमक छिड़कने काम भी करती आई है। मसलन सज्जन कुमार को सांसद बनाना हो अथवा जगदीश टाइटलर को मंत्री बनाने से लेकर इस्तीफे तक का सिलसिला, कांग्रेस कई बार दो तरफा राजनीति करके अपनी फजीहत करा चुकी है।
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले ने कांग्रेस को एक बार फिर सवालों के घेरे में लाकर खड़ा किया है। गौरतलब है कि दंगे में एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या के आरोप में पूर्व कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार को निचली अदालत ने दोष मुक्त कर दिया था, किंतु अब उच्च न्यायालय ने इस फैसले को पलटते हुए सज्जन कुमार को दोषी मानते हुए उम्र कैद की सजा मुकर्रर की है। कोर्ट ने फैसले में कहा है कि अभियुक्तों ने राजनीतिक संरक्षण का फायदा लिया और मुकदमे से बचते रहे। क्या यह बताने की आवश्कयता है कि इन लोगों को किसका राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा है?
देश में एक नहीं कई ऐसे मामले हैं जहां राजनीतिक शक्ति का लाभ अपराधियों को मिलता रहता है, लेकिन न्याय का तकाजा यही कहता है कि कोर्ट उन राजनीतिक शक्तियों को भी चिन्हित करे जिनके हस्तक्षेप के कारण इस बड़े नरसंहार के दोषी बचते रहे।1984 में हुए दंगों में हताहत सिखों के परिवारों के लिए यह फैसला संतोष देने वाला है, लेकिन इसे अधूरा न्याय ही कहेंगे, क्योंकि अभी कई मामलों की सुनवाई लंबित है और कई गुनहगार आजाद हैं। हजारों सिखों की हत्या करने वाले दोषियों को सजा मिले इसके लिए सबसे ठोस प्रयास अटल बिहारी वाजपेयी ने नानावती आयोग का गठन करके किया था, परंतु कहा जाता है कि अटल सरकार जाने के बाद आई कांग्रेस की सरकार ने इसे दबाने की पूरी कोशिश की। फिर मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद 2015 में न्याय के लिए दर-दर भटक रहे सिखों की पीड़ा को समझते हुए एसआइटी का गठन किया।
गठित एसआइटी ने पुराने केसों की छानबीन शुरू की है, जिससे सिखों को पूरा न्याय प्राप्त होने की आस जाग उठी है। अभी पिछले ही महीने इन्हीं दंगों के मामले में दो लोगों, जिन्हें सुबूतों के अभाव में पहले बरी कर दिया गया था, को एसआइटी की जांच से निकले नए तथ्यों के आधार पर सजा सुनाई गई है।बहरहाल दिल्ली उच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद सिख दंगों की लपटों से कांग्रेस झुलसती हुई नजर आ रही है। कोर्ट की ‘राजनीतिक संरक्षण’ संबंधी टिप्पणी ने कांग्रेस पर कई सवाल खड़े किए हैं।
संयोग ही है कि यह फैसला उसी वक्त आया जब कांग्रेस अपने तीन विजित राज्यों में मुख्यमंत्रियों का शपथ-ग्रहण समारोह कर रही थी। कहीं न कहीं इस फैसले ने उसके लिए रंग में भंग डालने का काम किया है, क्योंकि मध्य प्रदेश में जिन कमलनाथ को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाया है, उन्हें भी सिख समुदाय दंगों का एक प्रमुख आरोपी मानता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) Thanks:-www.jagran.com