- ज्योतिचरण की चरणरज को पाकर पावन हुआ शेरे
- आचार्यश्री के आह्वान पर विद्यार्थियों ने स्वीकार की संकल्पत्रयी
20.03.2024, बुधवार, शेरे , पुणे (महाराष्ट्र)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी सद्भावना एवं अहिंसा के मिशन के साथ पुणे शहर की ओर सानंद गतिमान है। आज प्रातः आचार्यश्री ने गोणवाड़ी ग्राम से प्रस्थान किया। चाहे ऊंचे पर्वत शिखर हो या पथरीले, विकट पथ युगप्रधान आचार्य श्री निर्बाध रूप से पदयात्रा करते हुए जनकल्याण के लिए यात्रायित रहते है। विहार के दौरान आज भी मुलशी झील का मनोरम दृश्य शुरू में दिखाई देता रहा। प्रायः उतार से युक्त मार्ग पर लगभग 11 किमी विहार कर आचार्यश्री शेरे गांव के श्री मामासाहेब मोहोल विध्यालय में प्रवास हेतु पधारे।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित विद्यार्थियों व जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अपने आपको विशेष प्रसन्न बनाने का शास्त्रों में उपाय बताया गया कि आदमी समता की साधना करे। अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियां जीवन में आ सकती हैं। उन परिस्थितियों में भी आदमी को समता रखने का प्रयास करना चाहिए। कभी लाभ हो जाए, कभी अलाभ रह जाए, कभी निंदा हो अथवा कभी खूब प्रशंसा भी प्राप्त हो जाए। ऐसे में ज्यादा लाभ हो जाए तो ज्यादा खुशी नहीं और अलाभ भी प्राप्त हो जाए तो आदमी को ज्यादा निराश नहीं होना चाहिए। इसी प्रकार कभी खूब सुख मिल गया तो ज्यादा खुशी नहीं मनाना चाहिए और कभी जीवन में दुःख भी आ जाए तो दुःखी भी नहीं बनना चाहिए। आदमी को दोनों ही परिस्थितियों में समभाव में रहने का प्रयास करना चाहिए।
यहां तक जीवन में कभी मृत्यु निकट भी दिखाई दे तो भी आदमी को शांति में रखने का प्रयास करना चाहिए। कभी आदमी की प्रशंसा हो, कभी खूब सम्मान की प्राप्ति हो तो भी आदमी अपने मन में शांति रखे और कभी अपमान की परिस्थिति में शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। समता की साधना जीवन को विशेष प्रसन्न बनाने का सूत्र है। रामचन्द्रजी की जीवन से प्रेरणा लें कि उनके जीवन में वनवास की स्थिति भी आई और राजा बनने की स्थिति भी आई, वे कैसे दोनों परिस्थितियों में समता भाव में रहे।
विद्यार्थियों में विषयों के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी आएं तो जीवन की बगिया सुन्दर बन सकती है। जीवन में अच्छे संस्कारों की सुगंध हो और ज्ञान का प्रकाश हो मानव का जीवन सुन्दर बगिया के समान बन सकती है। अच्छी शिक्षा के साथ अच्छे संस्कारों को भी विद्यार्थियों को मिले तो बच्चे अपने जीवन में पक्के हो सकते हैं। सद्भावना, अहिंसा, नैतिकता, नशामुक्ति, समता, सेवा रूपी संस्कार हों तो विद्यार्थियों की जीवन बगिया सुन्दर बन सकती है।
आचार्यश्री ने उपस्थित विद्यार्थियों को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्प भी स्वीकार कराए। आचार्यश्री के स्वागत में विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री जिगले सर ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी व स्कूल शिक्षिका श्रीमती गायकवाड़जी ने अणुव्रत गीत का संगान किया।