- खड़ी चढ़ाई पर 14 कि.मी. का विहार कर गोल्ड वैली में पधारे ज्योतिचरण
- सत्संगति से बदल सकती है जीवन की दशा व दिशा : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण
15.03.2024, शुक्रवार, सांसवाड़ी, रायगड (महाराष्ट्र) । कोंकण में श्रद्धालुओं से युक्त क्षेत्रों की यात्रा के उपरान्त जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पूणे के लिए गतिमान हैं। यह मार्ग पहाड़ों और जंगलों से आच्छादित है। पहाड़ी मार्ग होने के कारण तीखे आरोह और अवरोह के साथ किन्हीं-किन्हीं स्थानों पर ऐसी घाटियां भी दृश्यमान होने लगी हैं, जो काफी खतरनाक हैं। ऐसे दुर्गम मार्ग पर भी महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के चरणकमल गतिमान हैं।
शुक्रवार को निजामपूर से महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रस्थान किया। प्रातःकाल सूर्योदय के कुछ समय तक पहाड़ों से आनी हवा वातावरण को और शीतल बना रही थी। आज का विहार मार्ग लगभग चौदह किलोमीटर की पलम्ब दूरी वाला और तीखे आरोहणों से युक्त था। इन पर चढ़ने वाले वाहन के इंजन अपनी पूरी शक्ति लगाकर तीव्र ध्वनि उत्पन्न कर रहे थे तो नीचे उतरने वाले वाहनों के पहियों पर लग रहा ब्रेक का अंकुश जंगलों में गूंजा रहा था। ऐसे में अखण्ड परिव्राजक समभाव से चरण बढ़ा रहे थे। पहाड़ों की खड़ी चढाई और सूर्य किरणों की बढ़ती तीव्रता दोनों मानों आदमी का दम निकाल दे, किन्तु जनकल्याण को गतिमान महातपस्वी महाश्रमणजी के कदम बढ़ते जा रहे थे। ऐसे मार्ग पर लगभग चौदह कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री तमहिनी घाट रोड पर सांसवाड़ी में स्थित गोल्ड वैली कोंकण रिसार्ट में पधारे।
इस परिसर में उपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि दुनिया में आदमी संगति करता है। वह संगति सुसंगति भी हो सकती है और कुसंगति भी हो सकती है। सुसंगति हो यदि भले की अथवा किसी सज्जन व सच्चे साधक, साधु व साहित्य से हो जाए तो सुसंगति हो जाती है और किसी बुरे व्यक्ति, बुरे साहित्य आदि से कुसंगति भी हो सकती है। संगति का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। आदमी जिस तरह की संगति करता है, जैसा देखता है, सुनता है, वैसा उसके जीवन पर असर पड़ता है। जैसे कभी किसी के आराध्य की तस्वीर सामने आती है तो श्रद्धा की भावना जागृत हो जाती है और किसी बुरे व्यक्तित्व की छवि देखकर बुरा विचार भी आ सकता है।
आदमी को प्रयास करना चाहिए कि वह अच्छा देखे, अच्छा सुने, अच्छा बोले, अच्छा काम करे और बुरा देखने, बोलने, सुनने व करने से बचे। इसमें भी सत्संगति की बात कही गई कि यदि जीवन में सच्चे साधु की संगति हो जाए तो जीवन की दशा और दिशा भी बदल सकती है। साधु की संगति तो एक घड़ी, आधी घड़ी अथवा और भी कम की हो, पापों का क्षय करने वाली होती है। सत्संगति से अच्छा सुनने को मिल सकता है और उससे जीवन का कल्याण हो सकता है। यही नहीं, सत्संगति तो आदमी को मोक्ष तक पहुंचाने वाली भी बन सकती है। त्यागी साधुओं की संगति हो जाए, फिर ज्ञान हो जाए, आचार का विकास हो जाए, फिर संयम और वैराग्य की चेतना का विकास हो जाए तो मोक्ष की दिशा में भी गति हो सकती है और जीवन का कल्याण हो सकता है।