- समता है परम सुख की प्राप्ति का मार्ग : समत्वयोगी आचार्यश्री महाश्रमण
- आचार्यश्री ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी स्वयं को सुखी बनाने का बताया मंत्र
20.01.2024, शनिवार, ठाणे (वेस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र)। ठाणे प्रवास के अंतिम दिन शनिवार को निलगिरी उद्यान में बने प्रवचन पण्डाल में उपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में द्वन्द्वात्मक स्थितियां पैदा होती रहती हैं। जैसे- सुख-दुःख, निंदा-प्रशंसा, लाभ-अलाभ, जीवन-मरण, मान-अपमान। ऐसी विरोधी स्थितियां अर्थात् अनुकूल और प्रतिकूल स्थितियां जीवन में आ सकती हैं। ऐसी स्थितियां सामान्य आदमी के जीवन में भी और बड़े तथा किसी महापुरुष के जीवन में भी विरोधी परिस्थितियां स्थान ग्रहण कर सकती हैं। अध्यात्म की साधना आत्मकल्याण की साधना इसके द्वारा जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति की साधना होती है। इसके लिए मनुष्य को अनुकूलता में ज्यादा हर्ष नहीं और प्रतिकूलता में ज्यादा न मुरझाए नहीं, पुष्प रूपी मन म्लान न हो, मनुष्य को समभाव में रहने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी के जीवन में समता धर्म का होना आवश्यक होता है। परिस्थितियां तो किसी के जीवन में आ सकती है। एक साधु गोचरी के लिए निकलने वाला हो और बरसात आ जाए जो घंटों तक चले, ऐसे साधु भूख को समता भाव से सहने का प्रयास करे और यह विचार रखे कि सहज रूप में तपस्या हो रही है। साधु को भोजन मिल भी जाए और कभी भोजन न भी मिले तो भी ठीक है। मिला तो शरीर को पोषण मिल गया और नहीं मिला तो सहज रूप में तपस्या हो गयी, ऐसी कामना रखने का प्रयास होना चाहिए। इसी प्रकार आदमी के जीवन में सुख आए या दुःख समता रखने का प्रयास करना चाहिए। सुख, प्रशंसा में ज्यादा खुशी नहीं और दुःख और निंदा की स्थिति में समता का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए।
साधु को तो समता का साधक होना ही चाहिए, सामान्य आदमी को भी अपने जीवन में समता की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अभय का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। जितना अभय का भाव होता है तो आदमी कितना सुखी हो सकता है। राग, भय, आक्रोश न हो तो आदमी बहुत सुखी हो सकता है। समता को परम धर्म कहा गया है। समता परम सुख की प्राप्ति का मार्ग है। आदमी को इस दिशा में गति करने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त तेरापंथ युवक परिषद- ठाणे, सिटी सेण्ट्रल, वागले व कोपरी के सदस्यों ने गीत का संगान किया। ठाणे ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भी अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने भी स्वागत गीत का संगान किया। टीपीएफ के अध्यक्ष श्री कमलेश रांका ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अणुव्रत समिति के सदस्यों ने आचार्यश्री के समक्ष गीत का संगान किया।
सायं पांच बजे के आसपास युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रेमण्ड मिल कम्पाउण्ड से मंगल प्रस्थान किया। लगभग तीन किलोमीटर का सान्ध्यकालीन विहार कर आचार्यश्री ठाणे के तेरापंथ भवन में पधारे। जहां आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास हुआ।