- भौतिक संपदा ही नहीं, आध्यात्मिक संपदा भी हो वृद्धिंगत : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण
- आचार्यश्री ने गणी के संपदाओं का वर्णन
- राजस्थान के पूर्व सासंद तथा वर्धमान विधायक भी पहुंचे पूज्य सन्निधि में
17.01.2024, बुधवार, ठाणे (वेस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र) । जन-जन में सद्भावना का जागरण करने, जन-जन को नैतिकता का पाठ पढ़ाने और जन-जन को नशामुक्ति की ओर ले जाने के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ निरंतर गतिमान हैं। सात वर्षों से अधिक की अहिंसा यात्रा की गौरवमयी सम्पन्नता के उपरान्त वर्तमान में आचार्यश्री अणुव्रत यात्रा लेकर गतिमान हैं। इस जनकल्याणकारी यात्रा के दौरान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में भारत के महाराष्ट्र राज्य की राजधानी, भारत देश की आर्थिक राजधानी के रूप में सुविख्यात मुम्बई महानगर की उपनगरीय यात्रा व प्रवास कर रहे हैं। जन-जन के कल्याण की भावना रखने वाले राष्ट्रसंत के दर्शन और मंगल मार्गदर्शन को प्राप्त करने के लिए तेरापंथी जैन ही नहीं, अपितु अन्य सभी वर्गों की जनता ही नहीं, वरन अपने-अपने क्षेत्रों के विशिष्ट गणमान्य भी उपस्थित होते रहते हैं। इस समय युगप्रधान आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ ठाणे में स्थित रेमण्ड मिल कम्पाउण्ड के कम्युनिटी हॉल में पंचदिवसीय प्रवास कर रहे हैं।
प्रवास के दूसरे दिन बुधवार को प्रातःकाल आचार्यश्री महाश्रमणजी जनकल्याण के लिए भ्रमण पर निकले तो अनेक क्षेत्र के श्रद्धालुओं को अपने दर्शन और आशीर्वाद से लाभान्वित किया। कई घंटों के मंगलकारी भ्रमण के उपरान्त आचार्यश्री पुनः प्रवास स्थल में लौटे। तदुपरान्त कुछ ही समय पश्चात आचार्यश्री निलगिरी उद्यान में बने प्रवचन पण्डाल में उपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि वर्तमान समय में जैन साधु परंपरा में पांच महाव्रत बताए गए हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान महावीर की वर्तमान परंपरा में पांच महाव्रत रूपी धर्म की अनुपालना साधु करते हैं, किन्तु भगवान पार्श्वनाथ से लेकर पूर्ववर्ती 21 तीर्थंकरों के काल में चार महाव्रत धर्म ही था। दुनिया में भौतिक संपदाओं की बात होती है। रुपया, पैसा, धन, दौलत, जमीन, मकान, गाड़ी, वस्तु, सत्ता आदि अनेको पदार्थों का संग्रहण की गिनती भौतिक संपदाओं के रूप में की जाती है। इस संसार में आध्यात्मिक संपदाएं भी होती हैं, जिनका महत्त्व के समक्ष भौतिक संपदाओं का मूल्य नाकुछ के बराबर होता है।
एक ओर दुनिया में समस्त भौतिक संपदाएं हों और दूसरी ओर साधु के पांच महाव्रत रूपी संपदा रख दी जाए, पंच महाव्रत रूपी संपदा का पलड़ा ही भारी हो जाएगा, क्योंकि भौतिक संपदाएं तो वर्तमान जन्म तक ही काम में आ सकती हैं, किन्तु आध्यात्मिक संपदाओं का प्रभाव आगे के जीवन में भी अपना प्रभाव रखता है। इस प्रकार आध्यात्मिक संपदाओं का महत्त्व वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में भी होता है।
आचार्यश्री ने गणी गणी अर्थात आचार्यों की आध्यात्मिक संपदाओं का वर्णन करते हुए कहा कि आचार्य की सबसे प्रथम संपदा आचार संपदा होती है। आचार रूपी संपदा अक्षुण्ण बनी रहती है तो समस्त संपदाएं नगण्य-सी होती हैं। दूसरी संपदा है- श्रुत संपदा। आचार्य के पास जिना ज्ञान, विज्ञान होता है तो वह अपने शिष्यों को भी अच्छा बनाता है और अपने ज्ञान के माध्यम से कितने-कितने लोगों के जीवन का कल्याण भी कर सकता है। इसी प्रकार आचार्यश्री की एक संपदा है शरीर संपदा। शरीर निरोग, स्वस्थ और सक्षम हो तो परिश्रमपूर्ण जनकल्याण भी किया जा सकता है। गणी के पास वचन संपदा भी होनी चाहिए। उनके आदेश का अनुपालन, उनके प्रवचनों का जनता पर प्रभाव पड़ता है तो कितने-कितने अच्छे कार्य सिद्ध हो सकते हैं। आचार्य में वाचन संपदा भी होनी चाहिए। इसके माध्यम से गणी अपने शिष्यों को शास्त्र, आगम आदि का ज्ञान देता है। आचार्य के पास मति संपदा भी होती है। अपनी मति, बुद्धि और प्रतिभा से वह कितने संकटों को टाल सकता है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में भौतिक संपदा ही नहीं, आध्यात्मिक संपदा, धन की संपदा के साथ-साथ धर्म की संपदा का भी विकास करने का प्रयास हो, यह काम्य है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त राजस्थान के पाली से पूर्व सांसद श्री पुष्प जैन कहा कि मेरा परम सौभाग्य है कि आपके दर्शन का सुअवसर मिला। आपके दर्शन से ही कार्य सुफल हो जाते हैं। वहीं दूसरी ओर मारवाड़ जंक्शन के वर्तमान विधायक श्री केशाराम चौधरी ने कहा कि आपके दर्शन मात्र से ही मेरे जीवन में अद्भुत परिवर्तन आया है। आपका आशीर्वाद सदैव प्राप्त होता रहे। आचार्यश्री ने दोनों महानुभावों को मंगल आशीर्वाद के साथ पावन पथदर्शन भी प्रदान किया।
आचार्यश्री के स्वागत-अभिनंदन के क्रम में तेरापंथ किशोर मण्डल ने अपनी प्रस्तुति दी तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन प्रेरणा और पाथेय प्रदान किया। श्री भिक्षु महाप्रज्ञ ट्रस्ट की ओर से श्री निर्मल श्रीश्रीमाल, श्री विजयराज सोलंकी, उपासक श्रेणी के सदस्य श्री जितेन्द्र बरलोटा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल की कन्याओं ने पुराने तात्त्विक गीत के साथ-साथ अपनी प्रस्तुति दी तो आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद व प्रेरणा प्रदान की। ठाणे उपासक श्रेणी के सदस्यों ने भी स्वागत गीत का संगान किया। इस मौके पर ठाणे तेरापंथी सभा के अध्यक्ष रमेश सोनी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष मनोहर कच्छारा, पवन ओस्तवाल, सहित बड़ी संख्या में पदाधिकारी, श्रावक – श्राविकाएं एवं ठाणेवासियों की उपस्थिति रही।