- सत्संगति से बदल सकती है जीवन की दशा व दिशा : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
- मुलुण्डवासियों ने अपनी श्रद्धासिक्त भावनाओं की दी अभिव्यक्ति
15.01.2024, सोमवार, मुलुण्ड (वेस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र)। सत्संगत शब्द चलता है। सत्संगति बहुत प्रसिद्ध है। साधुजनों की संगति सत्संगति अर्थात् अच्छी संगति करना। साधु की पर्युपासना करना, उनके वचनों का श्रवण करना सत्संगति होती है। दूसरी बात कि साधु-महात्मा हमेशा मिलें या न मिलें तो अच्छी पुस्तकों के पठन से सत्संगति होती है। आज के समय में टेलीविजन, मीडिया आदि के द्वारा धर्मगुरुओं का प्रवचन श्रवण किया जाए तो वह किसी रूप में सत्संगत हो सकती है।
सत्संगति से कुछ अच्छा सुनने को मिल सकता है। जो आदमी साधुओं के पास आता ही नहीं तो उसे प्रत्यक्ष रूप से साधुओं के वचन को श्रवण करने का लाभ भला कैसे प्राप्त हो सकता है। साधु की पर्युपासना से जो अच्छा सुनने को मिलता है, वह श्रवण ज्ञान प्राप्ति का अच्छा माध्यम होता है। सुनकर आदमी पाप को भी जनता और पुण्य को भी जानता है। सुनने से ज्ञान की प्राप्ति भी होती है। पुस्तकों को पढ़ने से भी ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है, किन्तु किसी समय ज्ञान श्रवण करने से ही प्राप्त होता था। आज साहित्य की थोड़ी ज्यादा सुलभता हो गई है। सुनने से ज्ञान हो जाता है तो क्या हेय और उपादेय का विवेचन हो जाता है तो वह विशेष ज्ञान की बात हो जाती है। आदमी को जब विवेक हो जाता है तो वह त्याग करता है। संयम हो जाता है तो फिर आदमी त्याग की दिशा में आगे बढ़ सकता है। त्याग हो जाता है तो फिर संयम की प्राप्ति हो जाती है। संयम हो गया तो कर्मों के आने का रास्ता बंद हो जाता है। फिर तपस्या आदि से पूर्व कर्मों की निर्जरा होती है और स्थिति बढ़ते-बढ़ते मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है।
मुम्बई शहर में निवास स्थान की दूरी और फिर ट्रैफिक जाम के कारण प्रतिदिन साधुओं की संगति न भी हो तो भी आज के समय में यूट्यूब, सोश्यल मीडिया, टीवी आदि ऐसे सक्षम माध्यम हो गए हैं कि घर बैठे, गाड़ी में बैठे ही प्रवचन का श्रवण कर सकता है। दूर से दर्शन और दूर से श्रवण भी हो जाता है।
साधुओं के सम्मुख बैठकर प्रवचन श्रवण के अनेक लाभ प्राप्त हो सकते हैं। सामने बैठकर जितने देर श्रवण करने के दौरान सावद्य क्रियाओं से बचाव हो जाता है। इस दौरान यदि कोई सामायिक आदि करने वाले हों तो कितना धर्म का लाभ हो जाता है। सुनने से ज्ञान की वृद्धि होती है। कई बार सुनने से जीवन की किसी समस्या का समाधान भी प्रवचन श्रवण से प्राप्त हो सकता है। सुनने से कई बार मन में परिवर्तन आते ही जीवन की दिशा व दशा बदल सकती है। सुनने से कभी वैराग्य की प्राप्ति और आदमी संसार को छोड़ अपनी आत्मा के कल्याण में भी लग सकता है। सुनने से कोई अच्छा वक्ता भी बन सकता है। इस प्रकार सलक्ष्य श्रवण किया जाए तो सत्संगति का कितना लाभ प्राप्त हो सकता है।
वह क्षेत्र भी धन्य होता है, जहां इतनी संख्या मंे चारित्रात्माओं का प्रवास होता है। चारित्रात्माओं की पर्युपासना, प्रवचन श्रवण आदि का लाभ भी प्राप्त हो जाता है। साधुओं की संगति का लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। उक्त सत्संगति से जीवन का कल्याण करने की प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को अपने मुलुण्ड प्रवास के दौरान सोमवार को महाकवि कालीदास नाट्य मंदिर में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान कीं। आचार्यश्री की मंगलवाणी का साक्षात् श्रवण करने श्रद्धालु सत्संगति की महत्ता को जानकर स्वयं को बड़ा सौभाग्यशाली समझ रहे थे, क्योंकि वे दो दिनों से साक्षात् अध्यात्म जगत के महासूर्य की सत्संगति का लाभ प्राप्त कर रहे थे।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री अजरामर सम्प्रदाय की उपस्थित साधुओं को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि प्रतिकूल परिस्थितियों में मनोबल मजबूत रहे, आध्यात्मिक साधना की उन्नति होती रहे, खूब अच्छा विकास होता रहे। उपस्थित साध्वी मीराबाई, व साध्वी कृष्णाबाई ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। सकल मुलुण्ड समाज की ओर से श्री विजय पटवारी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथ युवक परिषद के सदस्यों ने गीत का संगान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल ने भी अपनी प्रस्तुति दी। जैन विश्व भारती के मंत्री श्री सलिल लोढ़ा ने भी अपनी भावनाओं को श्रीचरणों में अभिव्यक्ति दी। बालक नव्यान चोरड़िया ने अपनी कलाकृति पूज्यप्रवर के समक्ष प्रस्तुत कर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।