- पुज्यवर ने किया भगवती आगम सूत्रों को व्याख्यायित
06.11.2023, सोमवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र)। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की पावन ज्ञान वाणी की सरिता नंदनवन, मुंबई से प्रसारित होकर जन जन को जीवन में सात्विक परिवर्तन के लिए प्रेरित कर रही है। जहां सुदूर क्षेत्रों से श्रावक समाज का आचार्य श्री के दर्शन हेतु आवागमन जारी है वही इस परिसर में स्थित आवासीय कोठरी में सेवार्थी श्रद्धालुओं को भी गुरुदेव का कृपा प्रसाद प्राप्त हो रहा है। गत दिनों प्रातः भ्रमण के दौरान आचार्यश्री ने दर्शन विहार, चारित्र विहार, आगम विहार, अर्हम विहार, ज्ञान विहार, बोधि विहार, कलश विहार आदि में स्थित कोठरियों में पधार कर श्रद्धालुओं की भक्ति भावना को फलीभूत किया। आज के कार्यक्रम में साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने उद्बोधन प्रदान किया।
मंगल प्रवचन में धर्म देशना देते हुए आचार्य श्री ने कहा – हमारे जीवन में आत्मा महत्वपूर्ण व मूल तत्व है। शरीर है तो मन व वचन भी है। ऐसा नहीं जो सकता कि मन व वचन तो है लेकिन शरीर नहीं। आत्मा के बाद का स्थान शरीर का होता है। शरीर है तो इन्द्रियां भी है। आत्मा व शरीर के योग से जीवन निष्पन्न होता है। आत्मा का संयोग जीवन, आत्मा का वियोग मृत्यु। इन दोनों का अत्यान्तिक वियोग मोक्ष है। इस प्रकार तीन तत्व – आत्मा, शरीर व मोक्ष हो जाते है।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि जीवन में प्रवृति भी होती है। लोक में सबसे कम संख्या में मनोयोग वाले प्राणी होते है। ऊससे ज्यादा मन व वचन वाले प्राणी व सबसे अधिक शरीर वाले प्राणी होते है। सब संज्ञी मनुष्यों के साथ तीनों योग जुड़े रहते हैं। अतः मनुष्य सब जीवों के विकसित प्राणी माना जाता है। तीनों योगों की प्राप्ति हमारी शक्ति व उपलब्धि है। योग के दो प्रकार है– शुभ व अशुभ। योग अपने आप में न शुभ है न अशुभ। मोहनीय कर्म का जुड़ाव उसे अशुभ बना देता है और उसका अलगाव – शुभ। हमें मोहनीय कर्म से दूर रहने का प्रयास करना है व इसी लक्ष्य के साथ गतिमान रहना है।