- टीपीएफ द्वारा राष्ट्रीय कॉरपोरेट कॉन्फ्रेंस का हुआ आगाज
- आचार्यश्री ने दी मन, वचन, काया दुष्प्रयोग से बचने की प्रेरणा
14.10.2023, शनिवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र)। कानों में गूंजती शास्त्रों की वाणी, हर ओर नजर आते साधु–साध्वी एवं साधक जन, धार्मिक साहित्य पढ़ते श्रावक–श्राविकाएं, विशेष कर बच्चों के लिए किड जॉन में खेल–खेल में जीवन ज्ञान प्राप्त करते बच्चें, कुटीरों में सेवार्थ देश भर से आए हुए श्रद्धालु, और अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित म्यूजियम जिसमें युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण के 50 वर्षों की संयम यात्रा का रोचक वर्णन दर्शक प्राप्त कर रहे है। कुछ ऐसे ही दृश्यों से गुलजार हो रहा है घोड़बंदर रोड स्थित आचार्य महाश्रमण चातुर्मास स्थल परिसर, नंदनवन। आचार्यश्री एवं साधु–साध्वियों के सान्निध्य से यहां भक्त जन स्वयं को अध्यात्म ज्ञान राशि से भावित कर रहे है साथ ही सदाचार युक्त जीवन जीने की प्रेरणा प्राप्त कर रहे है। कल से नवरात्रि के साथ ही नवांहिक आध्यात्मिक अनुष्ठान का भी प्रारंभ होने जा रहा है। जिसमें आचार्यश्री स्वयं मुख्य प्रवचन शुरू होने से पूर्व विशिष्ट मंत्रों का पाठ कराएंगे साथ ही अनेक विषयों पर व्याख्यान का क्रम रहेगा। परिसर में साध्वी पावनप्रभा जी का संथारा भी उच्च भावों के साथ सानंद गतिमान है। पुज्यप्रवर द्वारा प्रतिदिन दर्शन प्राप्त कर वे भी धन्यता की अनुभूति कर रही है।
मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने आगम सूत्रों की व्याख्या करते हुए कहा– चेतना व आत्मा दो मूल तत्व है व जिनके साथ हमारा शरीर जुड़ा हुआ है। प्रश्न किया गया कि प्रणिधान कितने प्रकार के होते है ? प्रणिधान का मतलब होता है एक स्थान पर इस मन जो केन्द्रित कर देना, एकाग्र कर इसे समाधिस्त बना देना। प्रणिधान तीन प्रकार के होते हैं – मन प्रणिधान, वचन प्रणिधान व काया प्रणिधान। हमारे पास तीनों प्रणिधान होते है जबकि तिर्यंच में द्वेन्द्रिय से असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक शरीर और वाणी दो ही प्रणिधान होते है। हमारे पास मन, वचन व काया तीनों चीजें है। मन का सदुपयोग इसका सम्यक प्रणिधान है। मन, वचन व काया का दुरूपयोग दुष्प्रणिधान होता है।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि किसी का बुरा सोचना व अहित सोचना इस मन का दुरूपयोग व दुष्प्रयोग होता है। मन से हर एक के लिए अच्छा चिंतन करने वाला मन सुमन होता है। हम सदा सुमन रहें व दुर्मन से बचें। मन से सुख व दुःख दोनों की अनुभूति हो सकती है। मन सदा सदुपयोग से सम्पन्न रहे। कभी कभी प्रिय के वियोग व अप्रिय का संयोग से भी मन से मन दुखी बन जाता है ऐसे में समता व शांति से दुःख दूर हो जाता है। मन प्रमाद-मुक्त व प्रसन्नता-युक्त रहे। मन में यदि नकारात्मक विचारों का प्रवेश हो तो सोचे ये विचार मेरे नहीं हैं। अपने मन को उन विचारों से अलग करले व अच्छे संकल्पों को मन में धारण कर ले जिससे मन सुमन बन सके।
टीपीएफ द्वारा राष्ट्रीय कॉरपोरेट कॉन्फ्रेंस
शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में आज तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के तत्वावधान में एवं टीपीएफ मुम्बई के आयोजकत्व में दो दिवसीय राष्ट्रीय कॉरपोरेट कॉन्फ्रेंस का भी आगाज हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री मोफतराज मुणोत (चेयरमेन – कल्पतरु ग्रुप), विशिष्ट अतिथि श्री केवलचंद पी. जैन (चेयरमेन एवं मैनेजिंग डाइरेक्टर – केवल किरण क्लोथिंग लिमिटेड) ने अपने विचार व्यक्त किए।