राजनीतिक गलियारों में जाति का एजेंडा अभी भी काम करता है, शायद अब भाजपा को भी पता चले कि राजनीतिक हथकंडा अपनाना सिर्फ उनको ही नहीं आता। दूसरी पार्टियो के नेता और पार्टियां भी बेहतर तरीके से इसका उपयोग कर सकती हैं। फिलहाल मनोज झा का बयान हिंदू समाज को भी दो खण्डों में बांट रहा है भाजपा यह भली-भांति जानती हैं पर उसके कुछ मुंह बोले नेता ओमप्रकाश वाल्मीकि के द्वारा लिखित 1981 की कविता “ठाकुर का कुआं” को काउंटर कर रहे हैं जिसके परिपेक्ष में वह लोग भी वैसे ही जवाब दे रहे हैं जैसा कि मनोज झा ने वाल्मीकि जी की कविता “ठाकुर का कुआं” को पढ़ा। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने मनोज झा के इस कविता की टिप्पणी नहीं की क्योंकि वह जानते हैं यदि टिप्पणी की गई तो इसका परिणाम आने वाले विधानसभा के पांच राज्यों के चुनाव के साथ-साथ लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। मनोज झा की चपलता भाजपा बखूबी समझती है लेकिन उनके छोट्ट भैया नेताओं के पास ऐसी दृष्टि नहीं। भाजपा जानती है कि बिहार में यादव और ठाकुरों का संघर्ष कई दशकों से होता चला आ रहा है यदि मनोज झा के बयान को हवा दिया गया तो हिंदू दो गुटों में बट जाएगा जिससे सीधा नुकसान भाजपा को ही होगा।
जाने माने बहुजन विचारक एवं वरिष्ठ पत्रकार प्रोफेसर दिलीप मंडल अपने ट्वीट में लिखते हैं कि “मनोज झा कह रहे हैं कि वे अपने अंदर के ठाकुर को मारना चाहते हैं। कह रहे हैं कि सबके अंदर ठाकुर हैं और सबको अपने अंदर के ठाकुर को मार देना चाहिए। सवाल ये है कि वे अपने अंदर के ठाकुर को ही क्यों मारना चाहते हैं? वे अपने अंदर के ब्राह्मण को क्यों नहीं मारना चाहते जातिवाद और जाति श्रेष्ठता का बेहतर प्रतीक तो ब्राह्मण ही हैं। वे सबसे ऊपर हैं। ग्रंथ लिखकर जाति उन्होंने बनाई है। वे इस व्यवस्था के सबसे बड़े लाभार्थी है। ठाकुर तो ब्राह्मण से पूछे बिना न शादी करता है न बच्चे का नाम रखता है। ठाकुर राजा भी पैर छूकर ब्राह्मण से आशीर्वाद लेता रहा है। ठाकुर तो जाति व्यवस्था का सेकेंड कटेगरी सिटिज़न है।” वहीं दूसरी तरफ लालू यादव ने कहा है, “मनोज झा जी विद्वान आदमी हैं. उन्होंने सही बात कही है. राजपूतों के ख़िलाफ़ उन्होंने कोई बात नहीं की है. जो सज्जन बयान दे रहे हैं वो जातिवाद के लिए कर रहे हैं, उन्हें परहेज़ करना चाहिए.” वास्तव में यह बयान सिर्फ लाल यादव के नहीं है लगभग सभी बुद्धिजीवी और सम्मानित नेता मनोज झा विरुद्ध नहीं जाते परंतु सवाल तो यह उठता है कि मनोज झा ने सिर्फ यही कविता क्यों पढ़ी, कविताएं तो और भी थे। जातिवाद का खंडन करना ही था तो और कई रूप हो सकते थे जैसा कि उपरोक्त पंक्तियों में दिलीप मंडल ने कहा है कि जातिवाद के सबसे शीर्ष पर बैठे ब्राह्मणवाद को क्या मनोज झा पोषित करने के लिए सिर्फ ठाकुरों पर आक्रमण कर रहे हैं.? अपने अंदर छिपे जातिवादी के सूत्रधर ब्राह्मण के बारे में सांसद मनोज झा के एक भी शब्द उद्गृत नहीं होते, उनके मुखारबिंदु से वैश्य और शूद्र क्यों पीछे रह गया यदि जातिवाद पर कुठाराघात करनी ही थी तो पूरे वर्ण व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह उठाना था लेकिन ऐसा नहीं आखिर क्यों?
जाहिर सी बात है चुनाव को मद्दे नजर रखते हुए भाजपा के शीर्ष नेता इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं कारण लगभग सबको पता ही होगा, लेकिन एक और आश्चर्यजनक बात है, बात सोचने वाली है की गोदी मीडिया इस मामले को लेकर ठाकुर बनाम ब्राह्मण की लड़ाई क्यों बता रही है.? आज तक में छपे एक आर्टिकल में हमने पढ़ा जिसका शीर्षक था “BJP या RJD… बिहार में किसे भारी पड़ेगी ठाकुर बनाम ब्राह्मण की लड़ाई? जानिए” ध्यान से अगर मूल्यांकन किया जाए तो इन गोदी मीडिया के शीर्षक का खंडन प्रतिछिन होता दिखता है। बिहार ही नहीं पूरे भारतवर्ष में अगर चार वर्णों की बात की जाए तो सबसे ज्यादा संख्या शूद्र वर्ण की है इनकी आबादी लगभग 75-80 फ़ीसदी होगी। इस हालत में यह कहा जा सकता है कि इस मामले को एक बहुत बड़ी आबादी से हटकर सीमित संकुचित करने की भाजपा की नीति है मान लीजिए यदि लगभग 15 से 20% सवर्णों में यह लड़ाई सीमित रह गई तो बाकी बचे 80 से 85% वोट भाजपा के खाते में जाएंगे ही साथ में इनका भी वोट मिलना तो पारंपरिक दृष्टिकोण से तय ही है इसीलिए यह सारे जद्दो जहद गोदी मीडिया कर रही है।
मनोज झा बनाम भाजपा व गोदी मीडिया
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