- प्रेक्षाध्यान दिवस पर आचार्यश्री ने जनता को कराया प्रेक्षाध्यान का प्रयोग
- निक्षेप भाव का भी आचार्यश्री ने किया वर्णन
30.09.2023, शनिवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। मायानगरी मुम्बई के पंचमासिक चतुर्मास का तीन महीने का समय पूर्ण हो चुका है। अभी भी दो महीने के चतुर्मासकाल प्रायः शेष है। अड़सठ वर्षों बाद सौभाग्य से प्राप्त इस चतुर्मास का मुम्बईवासी पूरा लाभ उठा रहे हैं। कितने श्रद्धालु स्थाई रूप से नन्दनवन में प्रवासित होकर इसका लाभ प्राप्त कर रहे हैं, कितने श्रद्धालु प्रतिदिन महानगर से अपने आराध्य की सन्निधि में उपस्थित होते हैं। इसके साथ देश के विभिन्न राज्यों व सुदूर स्थित क्षेत्रों से श्रद्धालुओं के आने का क्रम निरंतर जारी है। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अभी तक अनेकानेक महनीय कार्यक्रम समायोजित हो चुके हैं और अन्य भी कार्यक्रमों का समायोजन निर्धारित है। इस कारण नन्दनवन गुलजार बना हुआ है। चारों ओर हरे-भरे पहाड़ों से घिरा यह चतुर्मास स्थल प्रकृतिप्रेमियों को भी अपनी ओर आकृष्ट कर रहा है। प्राकृतिक सुषमा से सम्पन्न इस स्थान में आध्यात्मिक महागुरु से मंगल मार्गदर्शन और प्रेरणा प्राप्त कर श्रद्धालु जनता वास्तिक शांति का अनुभव करती है।
शनिवार को भी तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में प्रेक्षाध्यान दिवस का समायोजन हुआ। इस संदर्भ में तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर को नमस्कार किया जाता है तो प्रश्न हो सकता है कि किस महावीर को नमस्कार किया गया। जिसका नाम महावीर हो उसे, या कोई स्थापित हो उसे, या किसी पार्थिव शरीर को अथवा जो वर्तमान अवसर्पिणी के अंतिम तीर्थंकर हुए उन्हें। इसे जानने के लिए निक्षेप की चार अवस्थाएं बताई गईं हैं। नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव रूपी इन चार निक्षेपों के द्वारा किसको नमस्कार किया गया है, इसका निर्धारण किया जाता है।
प्रेक्षाध्यान दिवस के संदर्भ में आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आज प्रेक्षाध्यान दिवस है। इसका शुभारम्भ परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के समय में मुनि नथमलजी (टमकोर) जो आगे चलकर तेरापंथ धर्मसंघ के दसवें अनुशास्ता बने के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ था। चेतना की विकृत अवस्था को प्रेक्षाध्यान के द्वारा संस्कृत अवस्था में प्रवृत्त किया जा सकता है। मोहनीय कर्मों के कारण आदमी की चेतना विकृत हो जाती है। प्रेक्षाध्यान के माध्यम से विकृत चेतना को निर्मल बनाया जा सकता है। आत्मा को निर्मल बनाने के लिए ध्यान की आवश्यकता होती है। शरीर, वाणी और मन से स्थिर हो जाना ध्यान है। तेरापंथ की ध्यान परंपरा को प्रेक्षाध्यान नाम की संज्ञा प्राप्त है और यह उसकी पहचान भी है। सन् 1975 में जयपुर में इसका विधिवत रूप में शुभारम्भ हुआ था। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी जैन विश्व भारती में चतुर्मास प्रवास के दौरान तुलसी अध्यात्म निडम में स्वयं शिविरों में उपस्थित होकर कितना ध्यान का प्रयोग कराते थे। प्रेक्षाध्यान में भाग लेने के लिए कितने-कितने देशों के लोग आते थे। कितने-कितने प्रेक्षा प्रशिक्षक भी इससे जुड़े हुए हैं। देश-विदेश में कितनी कक्षाएं भी चलती हैं। प्रेक्षा इण्टरनेशनल के द्वारा इसका प्रसार भी हो रहा है। प्रेक्षाध्यान के 50 वर्ष की निकटता के संदर्भ में आचार्यश्री ने इस संदर्भ में ग्रंथ आदि के साथ प्रेक्षाध्यान वर्ष के समायोजन की भी प्रेरणा प्रदान की।
प्रेक्षाध्यान दिवस के अवसर पर आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को कुछ समय तक प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी कराया। प्रेक्षाध्यान टीम द्वारा गीत का संगान किया गया। प्रेक्षाध्यान के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमणजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। समणी रोहिणीप्रज्ञाजी द्वारा लिखित पुस्तक नेशन ऑफ शोल इन जैनिज्म को जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। समणी रोहिणीप्रज्ञाजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्रीमती वनिता बाफना ने आचार्यश्री से 92 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।