- स्वप्न संसार में स्वप्नों की संख्या और प्रकार को भी आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित
- भगवती सूत्र आगम के सूत्रों से लाभान्वित हो रहे श्रद्धालु
23.09.2023, शनिवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। मुम्बई महानगर के मीरा-भायंदर महानगरपालिका के नन्दनवन में पंच मासिक चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी मुम्बईवासियों को नित्य प्रति भगवती सूत्र आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं। भगवती सूत्र के सूत्रों को सहज और सरल रूप में व्याख्यायित कर आचार्यश्री लोगों को नित नवीन प्रेरणा प्रदान करते हैं। गुरुमुख से आगमवाणी और सरल रूप में व्याख्या का श्रवण कर श्रद्धालु निहाल हो रहे हैं।
शनिवार को युगप्रधान आचार्यश्री ने समुपस्थित जनता को भगवती सूत्र आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र में स्वप्न की चर्चा की गई है। आदमी किन अवस्था में स्वप्न देखता है आदि प्रश्नों के बाद एक और प्रश्न किया गया कि सारे स्वप्न कितने प्रकार के बताए गए हैं? भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए कहा कि कुल 72 स्वप्न बताए गए हैं। इन स्वप्नों के भी दो विभाग बताए गए हैं- पहला विभाग है महास्वप्न और दूसरा विभाग है सामान्य स्वप्न। महास्वप्नों की संख्या 30 है और 42 सामान्य स्वप्न बताए गए हैं।
हाथी का स्वप्न आना, मृगराज का स्वप्न, सिंह का स्वप्न, वृषभ का स्वप्न, अग्नि का स्वप्न आदि महा स्वप्न होते हैं। ये स्वप्न विशेष महा स्वप्न होते हैं। आगम में 54 उत्तम पुरुषों के संदर्भ में बताया गया है। धर्म के क्षेत्र में भी उत्तम पुरुष होते हैं तो भौतिकता के क्षेत्र में भी उत्तम पुरुष हो सकते हैं। धर्म के क्षेत्र में तीर्थंकर सबसे उत्तम पुरुष होते हैं तो भौतिकता के संदर्भ में चक्रवर्ती सर्वोच्च होते हैं। तीर्थंकरों में केवल ज्ञान, केवल दर्शन आदि के बाह्य ठाट-बाट भी होते हैं। तीर्थंकर उत्तम पुरुष होते हैं। धरती पर वासुदेव और बदलेव भी होते हैं। इन्हें भी उत्तम पुरुष की संख्या में गिना जाता है।
तीर्थंकरों की माताएं महास्वप्न देखती हैं। वे माताएं भी कितनी धन्य होती हैं जो तीर्थंकरों को जन्म देती हैं। एक प्रश्न किया गया कि माताएं कितने महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं? भगवान महावीर ने कहा कि माताएं 14 महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं। भगवान महावीर की माता ने 14 महास्वप्न देखे। तीर्थंकर अध्यात्म जगत में सर्वोच्च व्यक्तित्व होते हैं। तीर्थंकर के पास अध्यात्म की सर्वोच्च सत्ता होती है, चक्रवर्ती के पास भौतिक जगत की सर्वोच्च सत्ता होती है। चक्रवर्ती की माता भी 14 महास्वप्न देखकर ही प्रतिबद्ध होती हैं। वासुदेव की माता 7 महास्वप्न देखती हैं।
हमारे धर्मसंघ के आद्य अनुशास्ता आचार्यश्री भिक्षु की मां दीपांजी ने भी सिंह का स्वप्न देखा था। जब उनके दीक्षा की बात आई तो उन्होंने दीक्षा लेने से मना कर दिया कि मैंने सिंह का स्वप्न देखा है तो मेरा पुत्र तो राजा बनेगा, लेकिन उनके गुरु द्वारा समझाए जाने पर कि यह संत बनकर भी सिंह की तरह दहाड़ेगा। आगे चलकर किस प्रकार महामना आचार्यश्री भिक्षु ने तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना की। हमारे आद्य प्रणेता, अनुशास्ता बन गए। इस प्रकार स्वप्न आदि को आचार्यश्री से सरल भावों में वर्णन सुनकर श्रद्धालु अभिभूत थे।
मंगल प्रवचन के उपरान्त तेरापंथ कन्या मण्डल-मुम्बई की कन्याओं ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी प्रस्तुति दी।