- मोहनीय कर्म को कमजोर करने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
- साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री व साध्वीवर्याजी ने भी अर्पित की अपनी विनयांजलि
11.09.2023, सोमवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। भाद्रपद कृष्णा द्वादशी अर्थात् सोमवार को नन्दनवन परिसर में बने तीर्थंकर समवसरण में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस पर उनका स्मरण करते हुए जनता को पावन प्रेरणाएं प्रदान कीं।
सोमवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को वर्तमान अनुशास्ता ने भगवती सूत्राधारित अपने पावन प्रवचन में मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर से प्रश्न किया गया कि कर्म प्रकृतियां कितनी प्रज्ञप्त हैं? भगवान महावीर ने समाधान प्रदान करते हुए कहा कि आठ कर्म बताए गए हैं। सभी जीवों की स्थिति के अनुसार कर्म उनसे जुड़े हुए रहते हैं। इन आठ कर्मों का पर्याय के परिवर्तन में बड़ा सहयोग होता है। कोई ज्ञानी होता है, कोई अज्ञानी होता है, कोई धनवान तो कोई निर्धन, कोई बलवान तो कोई कमजोर होता है। यह सारी स्थितियां कर्मों के आधार पर होती हैं। भव्य को अभव्य बनाना या अभव्य को भव्य बनाना यह किसी के वश की बात नहीं होती। यहां पुरुषार्थ समाप्त हो जाता है। यह नियति पर निर्धारित होता है। भव्य अथवा अभव्य का होना पूर्णतया नियति पर आधारित है। जीव को अजीव और अजीव को जीव नहीं बना सकते, यह नियतिवाद है।
कर्म के बंधन में और कर्म को काटने में पुरुषार्थ किया जा सकता है, किन्तु जहां नियति की बात है, वहां पुरुषार्थ काम नहीं आता। कर्म और भाग्य को समझ लेने बात स्पष्ट हो सकती है। आदमी को अपने जीवन में मोहनीय कर्मों को काटने का पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए।
भगवती सूत्राधारित प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्यश्री श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस पर उनका स्मरण करते हुए कहा कि जयपुर में चतुर्मास के दौरान हमारे चतुर्थ आचार्यश्री का महाप्रयाण हुआ था। वे श्रुतधर और मनीषी आचार्य थे। उनके पास बुद्धि का भण्डार था। वे तत्त्ववेत्ता थे। उन्होंने कितने-कितने ग्रंथों का निर्माण किया। वे तत्त्ववेत्ता आचार्य थे। वे अध्यात्मवेत्ता भी थे। उनके समय में अनेक नए-नए आयाम भी धर्मसंघ में प्रारम्भ हुए तो उन्हें विधिवेत्ता भी कहा जा सकता है। इस प्रकार हम उन्हें तत्त्ववेत्ता, अध्यात्मवेत्ता व विधिवेत्ता के रूप में स्मरण करते हैं। उनकी जीवनशैली से सभी को प्रेरणा प्राप्त होती रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने गीत से अपने चतुर्थ आचार्य की अभिवंदना की। साध्वीप्रमुखाजी विश्रुतविभाजी व साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने भी चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्यश्री के प्रति अपनी विनयांजलि अर्पित की।
आचार्यश्री ने 12 सितम्बर से आरम्भ होने वाले पर्युषण महापर्व के संदर्भ में चतुर्विध धर्मसंघ के अनेक प्रेरणाएं, विधि, निषेध, नियम, व्यवस्था आदि की जानकारी भी दी। जैन विश्व भारती द्वारा शासन गौरव साध्वी कल्पलताजी द्वारा लिखित पुस्तक ‘तेरापंथ की 9 साध्वीप्रमुखाएं’ तथा डॉ. समणी मंजुलप्रज्ञाजी द्वारा लिखित पुस्तक ‘श्रीविद्या एवं प्रेक्षाध्यान’ आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की गई। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। डॉ. समणी मंजुलप्रज्ञाजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी।