- प्रायश्चित्त, आलोचना और प्रतिक्रमण को समय पर करने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
- कालूयशोविलास आख्यान में पूज्य कालूगणी की मेवाड़ यात्रा व स्वास्थ्य की चर्चा
12.08.2023, शनिवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। जन-जन को आगम के आधार पर सन्मार्ग दिखाने, मुम्बई में ज्ञानगंगा को प्रवाहित करने व लोगों को मानसिक संताप को हरने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की दर्शन-सेवा को मानों प्रतिदिन श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है। श्रद्धालुओं के आवागमन से नन्दनवन परिसर गुलजार बना हुआ है। मुम्बईवासी ही नहीं, महाराष्ट्र के आसपास के क्षेत्रों के अलावा भी देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालुओं के पहुंचने का क्रम निरंतर जारी है। गुरुदर्शन के साथ गुरुवाणी का लाभ प्राप्त कर श्रद्धालु हर्षविभोर नजर आ रहे हैं। प्रातःकाल के बृहद् मंगलपाठ के साथ अपने आराध्य की सेवा आराधना में जुटे भक्त देर रात तक सेवा, दर्शन व उपासना का अवसर प्राप्त रहे हैं।
शनिवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के आधार पर पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आराधना और विराधना के संदर्भ में चर्चा करते हुए बताया गया है कि एक साधु से कोई अकरणीय कार्य हो जाता है, कोई दोष लग जाता है। वह उन दोषों का प्रायश्चित्त, अलोचना और प्रतिक्रमण आदि नहीं करता और कालधर्म को प्राप्त हो जाता है तो वह विराधना को प्राप्त हो जाता है तथा जो साधु अकरणीय कार्य के सेवन का प्रायश्चित्त आलोचना और प्रतिक्रमण आदि कर लेता है और वह कालधर्म को प्राप्त करता है तो आराधना को प्राप्त करता है।
कोई साधु दोष लगने के बाद यह सोचे कि बाद में प्रायश्चित्त लूंगा। भावना रखी, किन्तु कालधर्म प्राप्त होने से पहले प्रायश्चित्त, आलोचना, प्रतिक्रमण आदि नहीं कर पाया तो भी वह विराधना को ही प्राप्त होता है, उसे आराधना की प्राप्ति नहीं हो सकती। यदि कोई गलती करने के बाद भी यह सोचे कि प्रायश्चित्त क्या लेना, साधु हूं तो देवगति में कहीं- कहीं स्थान तो प्राप्त हो ही जाएगा तो उसके भी विराधना हो जाती है।
इसमें चारित्रात्माओं को अच्छा दिशा-निर्देश दिया है कि साधु को ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए कि यदि कोई प्रतिसेवना अथवा अकरणीय का आसेवन हो जाए तो साधु को सरल मन से प्रायश्चित्त, आलोचना और प्रतिक्रमण कर लेने का प्रयास करना चाहिए। तत्काल आलोयणा और प्रतिक्रमण आदि से उसकी शुद्धि हो जाएगी और वह आराधना को प्राप्त हो जाएगा। चिन्तन ऐसा होना चाहिए कि जो भी कार्य है, वह समय पर पूरा हो जाए। दोषों को बाद पर नहीं छोड़ना चाहिए। दोष लग जाए तो अपने गुरु से सरल मन से अपने दोषों का प्रायश्चित्त लें, आलोचना और प्रतिक्रमण के द्वारा अपने साधुत्व को निर्मल बनाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास की अख्यान माला के क्रम को आगे बढ़ाते हुए पूज्य कालूगणी के मेवाड़ की यात्रा और उस दौरान उनके स्वास्थ्य हुए परेशानियों का वर्णन करते हुए आचार्यश्री कालूगणी की समताभाव से सहनशीलता को सरसशैली में व्याख्यायित किया। उपस्थित जनता को साध्वीवर्याजी ने भी उद्बोधित किया।
आचार्यश्री के दर्शन को राजस्थान के पूर्व सांसद श्री रघुवर मीणा ने कहा कि आज मेरा परम सौभाग्य है कि मुझे आपश्री के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपका आशीर्वाद प्राप्त कर मेरा जीवन धन्य हो गया।