- आचार्यश्री ने मनुष्य गति से उच्च गति में प्रस्थान करने को किया अभिप्रेरित
- कालूयशोविलास के आख्यान श्रवण का निरंतर लाभ उठा रहे श्रद्धालु
- श्रीमुख से आशीष प्राप्त कर प्रारम्भ हुआ सपादि कोटि जप अनुष्ठान
01.08.2023, मंगलवार, मीरा रोड (ईस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र)। भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई को आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध बनाने के लिए मुम्बई महानगर वर्ष 2023 का सवाया चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में निरंतर प्रवाहित होने वाली आध्यात्मिक ज्ञानगंगा में हजारों-हजारों श्रद्धालु गोते लगाकर अपने जीवन को आध्यात्मिकता से भावित बना रहे हैं। महातपस्वी महाश्रमणजी के मंगल शुभागमन से उल्लसित श्रद्धालु नित्य प्रति अपने महातपस्वी आराध्य के श्रीचरणों में तप, तप आदि की अनुपम भेंट भी समर्पित कर रहे हैं। मंगलवार को आचार्यश्री के मंगल प्रवचन का श्रवण करने के उपरान्त लगभग ग्यारह तपस्वियों ने मासखमण की तपस्या का प्रत्याख्यान किया तो दूसरी ओर मुम्बईवासियों की ओर से नमस्कार महामंत्र के सपादि कोटि जप अनुष्ठान का क्रम भी आरम्भ हुआ। आचार्यश्री ने श्रीमुख से नमस्कार महामंत्र का उच्चारण करते हुए इस जप के अनुष्ठान का शुभारम्भ कराया। इस जप का क्रम 31 अगस्त तक चलेगा।
मंगलवार को तीर्थंकर समवसरण से महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालु जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि भगवती सूत्र में देव गति आयुष्य बंध के चार कारणों का उल्लेख किया गया है- सराग संयम, संयमासंयम, बाल तपः कर्म और अकाम निर्जरा। चौदह गुणस्थानों में देखा जाए तो तीसरे गुणस्थान में आयुष्य कर्म का बंध नहीं होता। इसी प्रकार सातवें गुणस्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक बंध नहीं होता, क्योंकि उसके बाद तो आत्मा वीतराग बन जाती है और उसे वीतरागता प्राप्त होने के उपरान्त मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। इसलिए आयुष्य बंध होने की संभावना ही नहीं है। इसलिए छठे गुणस्थान में आयुष्य बंध होता है। इसमें भी देव गति आयुष्य बंध के चार कारणों में से एक सराग संयम प्रथम होता है। कोई साधु संयमी होने के भी सराग से युक्त होता है तो उसे देव गति आयुष्य का बंध हो सकता है। भीतर में राग हो तो फिर वीतरागता की ओर नहीं, अपितु देव गति आयुष्य का बंध हो सकता है। छठे गुणस्थान वाले साधु से एक सीमा तक प्रमाद भी हो सकता है। उस साधु में राग, छल, वंचना आदि प्रमाद भी देखने को मिल सकते हैं। देव गति आयुष्य बंध का दूसरा कारण संयमासंयम है। एक श्रावक जो गृहस्थ रहते हुए भी अनेक प्रकार से संयमी है तो वह संयमासंयमी होता है। ऐसी स्थिति में भी देव गति आयुष्य का बंध होता है। तीसरा कारण बाल तपः कर्म होता है। जिसमें ज्यादा न जानने वाला भी तपस्या आदि करता रहता है तो उसे भी देव गति का आयुष्य बंधता है। चौथा कारण अकाम निर्जरा से देव गति के आयुष्य का बंध होता है।
साधु की साधुता का सर्वोत्तम परिणाम तो मोक्ष प्राप्ति का हो, किन्तु मोक्ष की प्राप्ति न हो सके तो ऐसा प्रयास होना चाहिए कि अधोगति की ओर प्रस्थान न हो। इसलिए कभी कोई गलती अथवा प्रमाद हो भी जाए तो सरलमना रूप में प्रायश्चित्त करन लेने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने आगमाधारित मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास आख्यानमाला के क्रम को आगे बढ़ाया। एक अगस्त से 31 अगस्त तक होने वाले नमस्कार महामंत्र के सपादि कोटि जप का शुभारम्भ महातपस्वी आचार्यश्री के श्रीमुख से हुआ। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जुलाई का महीना इक्कीस रंगी तपस्या के नाम रहा तो अगस्त का यह महीना जप के लिए समर्पित हो रहा है।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में श्रीमती प्रीति रांका ने 27, श्री प्रवीण गेलड़ा ने 28, श्रीमती राजकुमारी दूगड़ ने 29, श्री नवरत्नमल दूगड़ 32, श्रीमती इंदिरा धींग 30, श्रीमती पिस्ता हिरण 31, सुश्री तन्वी हिरण 31, श्री गौतम बोहरा 32, श्री प्रकाश परमार 32, श्रीमती हिना बैंगानी 32 व श्रीमती संगीता सामोता ने 31 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।