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- बारह व्रत अहिंसक समाज की संचरना का प्रारूप है-मुनि दीप कुमार
विजय नगर। तेरापंथ युवक परिषद विजयनगर द्वारा त्रिदिवसीय “बारह व्रत स्वीकरण कार्यशाला” का आज त्रिदिवसीय शुभारंभ हुआ। विजयनगर स्थित तेरापंथ भवन में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनिश्री दीप कुमारजी ठाणा-२ के सान्निध्य में त्रिदिवसीय बारह व्रत स्वीकरण कार्यशाला का आज तेरापंथ युवक परिषद्-विजयनगर,द्वारा शुभारंभ हुआ।
मुनिश्री दीप कुमारजी ने कहा- बारह व्रत अहिंसक समाज की संचरना का एक विस्तृत प्रारूप है। इसे शोषणमुक्त स्वस्थ समाज रचना की आचार संहिता भी कहा जा सकता है। गृहस्थ के लिए संपूर्ण हिंसा का परिहार संभव नहीं है।उसके अनावश्यक हिंसा को छोड़ना ही अहिंसक समाज की संरचना में योगभूत बनना है। जीवन को प्रायोगिक बनाने की एक प्रक्रिया है- प्रत्याख्यान | इस विषय में भगवान महावीर ने श्रावक के लिए बारह व्रतों की व्यवस्था दी। प्रत्याख्यान के द्वारा जीवन को कैसे बदला जा सकता है? इसका निदर्शन है महावीर के बारह व्रतधारी श्रावक है।
मुनिश्री ने आगे कहा- दो शब्द है- श्रावक और अनुयायी । सामान्यत: इन्हें एकार्थक माना जाता है पर इनमें बड़ा अन्तर है। अनुयायी का अर्थ होता है-पीछे चलने वाला और श्रावक का अर्थ है- व्रत ग्रहण करने वाला। मुनिश्री ने विस्तार से अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य अणुव्रत के बारे में समझाया।
मुनिश्री काव्य कुमारजी ने समयक्तव के लक्षणों की चर्चा की तेरापंथ युवक परिषद् के अध्यक्ष राकेशजी पोखरणा ने बारह व्रत कार्यशाला की जानकारी देते हुए ‘व्रत दीक्षा’ पुस्तिका के बारे में बताया।