– आचार्यश्री ने ‘भगवान महावीर’ की स्तुति को किया व्याख्यायित
– गुरुमुख से तीर्थंकर अभ्यर्थना का श्रवण कर निहाल हुए श्रद्धालु
04.07.2023, मंगलवार, घोड़बंदर, मुम्बई (महाराष्ट्र)। मुम्बई के बाहरी भाग में स्थित नन्दनवन जो प्रायः पहाड़ों से घिरा हुआ है। वर्षाऋतु ने वृक्षों से ढंके पहाड़ों की हरियाली को वृद्धिंगत कर दिया है। उमड़ते बादल इन पहाड़ों पर मनोरम दृश्य उपस्थित करते हैं, जो किसी भी प्रकृति प्रेमी को अपनी ओर आकर्षित करता है। ऐसे सुरम्य स्थान में वर्तमान में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2023 का वर्षावास करने को विराजमान हैं। देश भर से श्रद्धालु अपने आराध्य की अभिवंदना में उपस्थित हो रहे हैं। आचार्यश्री के दर्शन, सेवा और प्रवचन का लाभ लेकर अपने जीवन को धर्म से भावित बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
मंगलवार को चतुर्मास प्रवास स्थल में बने भव्य एवं विशाल तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित जनता को भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने पावन प्रवचन में कहा कि भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी के 24वें और अंतिम तीर्थंकर हुए हैं। उनकी स्तुति अनेक प्रकार से की जाती है। कितनी-कितनी स्तुतियां संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी आदि-आदि में प्राप्त होती हैं। उनमें एक स्तुति है ‘महावीर तुम्हारे चरणों में, श्रद्धा के कुसुम चढ़ाएं हम’ गीत भी है। इसके पांच पद्य हैं। इसमें भगवान महावीर को श्रद्धा के सुमन चढ़ाने की बात कही गई है। सचित्त फूल का स्पर्श भी साधुचर्या के विरुद्ध है तो भगवान महावीर के चरणों में हमें अपने श्रद्धाभावों के सुमन को चढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। उनके बताए गए मार्ग पर आगे बढ़ने का प्रयास हो और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास हो, तो कल्याण हो सकता है। उनकी वाणी के प्रति श्रद्धा के साथ आदमी को अपने आचरण को भी अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए।
भगवान महावीर की वाणी के प्रति श्रद्धा हो और अच्छे आचरण हों तो सम्यक् भाव पुष्ट हो सकता है। ज्ञान के साथ आचार भी अच्छा हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। अपने आदर्शों को उच्च बनाते हुए भगवान महावीर के दिखाए गए मार्ग पर चलने का प्रयास हो। आदमी के भीतर लोलुपता न हो, निष्काम भाव से सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। विकृतियों से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए। अपने देव, गुरु और धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा हो और उनके द्वारा दिखाए गए सत्पथ पर चलने का प्रयास हो। जीवन में अहिंसा हो, सच्चाई हो, सभी प्राणियों के प्रति मैत्री की भावना का विकास हो। सभी प्राणियों के प्रति मैत्री के भाव पुष्ट होंगे तो आदमी हिंसा से बच सकता है।
आदमी के कथनी और करनी में एकरूपता हो। यह गीत भगवान महावीर की सुन्दर स्तुति की गई है। इससे आदमी को सद्कार्यों में लगे रहने की प्रेरणा लेने का प्रयास करना चाहिए। इस चतुर्मास का धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ उठाने का प्रयास हो। भगवान महावीर से सभी को प्रेरणा और पथदर्शन प्राप्त हो तो आदमी के जीवन का कल्याण हो सकता है।
एक जुलाई से मुम्बईवासियों की से आरम्भ की गई 21रंगी के तपस्वियों को आचार्यश्री ने आशीर्वाद प्रदान किया और उनकी धारणों के अनुसार व्रत का त्याग भी कराया।