– पालघर को पावन बना केलवे रोड पधारे ज्योतिचरण
– पूज्य प्रवर ने दी संघ, संघपति के प्रति निष्ठा रखने की प्रेरणा
03.06.2023, शनिवार, केलवे रोड, पालघर (महाराष्ट्र)। बृहत्तर मुंबई को पावन बनाने को अग्रसर जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज केलवे रोड पदार्पण हुआ। अपने पावन वचनों से महाराष्ट्र की जनता में सदाचार की शिक्षा प्रदान करते हुए अणुव्रत यात्रा के साथ आचार्य श्री निरंतर एक एक क्षेत्र को पावन बनाते हुए गतिमान है। प्रातः आचार्य श्री ने पालघर से मंगल विहार किया। मार्ग में श्रद्धालुओं के निवास एवं प्रतिष्ठानों के समक्ष आशीर्वाद प्रदान करते हुए शांतिदूत गंतव्य की ओर गतिमान हुए। आज का विहार मार्ग प्रायः रेलवे लाइन के निकट निर्माणाधीन सड़क पर था। एक ओर जहां दूर से नजर आते विशालकाय पर्वत, हरे भरे मैदान नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे वहीं रेलवे लाइन से गुजरती ट्रेनें कई बार पदयात्रियों के दृष्टि का विषय बनी। लगभग 09.5 किमी विहार कर आचार्य प्रवर केलवे रोड स्थित जिला परिषद पाठशाला में प्रवास हेतु पधारे। चतुर्दशी के अवसर पर आज गुरुदेव द्वारा हाजरी का भी वाचन किया गया।
धर्मसभा में मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में गुरुदेव ने कहा – मनुष्य जीवन को सबसे दुर्लभ कहा गया है। आत्मा के अनंत अनंत जन्मों के कर्म चिपके हुए है उन कर्मों का विपाक बड़ा गाढ़ होता है। इसलिए कहा गया समय मात्र भी प्रमाद मत करो। व्यक्ति समय मात्र भी प्रमाद ना करे और जागरूकता रखे। समय को साधारणतया टाइम के रूप में जाना जाता है, पर जैन दर्शन में समय को काल की लघुतम इकाई के रूप में उल्लेखित किया गया है। वर्तमान में अप्रमत्त संयत गुणस्थान एक बार में एक मुहूर्त से ज्यादा समय तक नहीं टिकता। कम से कम वह अवस्था बार बार आए ये तो प्रयास हो। समय का सम्यक उपयोग करे यह अपेक्षा है।
प्रसंगवश शांतिदूत ने आगे कहा कि उड़िसा में ट्रेन दुर्घटना हुई है। कितने–कितने लोग मृत्यु के शिकार भी हो गये। कितने ही उससे प्रभावित हुए है। मानव मात्र के प्रति करुणा व सेवा की भावना रहे। इसे समय में सरकार और भी ध्यान देती है और भी वर्ग ध्यान देते है। यह भी एक लौकिक सेवा है। सांसारिक संदर्भ में लौकिक सेवा का अपना महत्व है। हमारे साधु-साध्वियां भी एक दूसरे की सेवा करते रहें। हर एक के मन में सेवा के प्रति स्फुरणा का भाव होना चाहिए। की कही अवसर आजाएं, गुरु सेवा के लिए भेजें तो तैयार रहे। सेवा के सामने बाकी कार्य भी गौण है। यह सेवा की भावना सभी की भीतर में रहे। संघ के सभी सदस्य संघ की मर्यादाओं के प्रति जागरूक रहे। तीन चीजों से हमारा लगाव रहे – हमे अपने साधुपन से प्यार हो, संघ से प्यार हो और फिर गुरु से प्यार हो। इन तीनों के प्रति निष्ठा, श्रद्धा, समर्पण रहना चाहिए।
तत्पश्चात साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी का उद्बोधन हुआ। श्री विनोद पाटिल शिव सेना प्रवक्ता, श्री भगवती लाल राठौड़, श्रीमती पिंकी मांडोत, सुश्री खुशी कावडिया, सुश्री हनी मंडोत ने स्वागत में अपने विचार रखे।
दुर्लभ मनुष्य जीवन में करे समय का सदुपयोग – युगप्रधान आचार्य महाश्रमण
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