- आचार्य महाप्रज्ञ विद्या निधि फाउंडेशन के कॉलेज परिसर में शांतिदूत का भव्य पदार्पण
- आचार्यप्रवर ने दी संस्कारयुक्त ज्ञान की प्रेरणा
01.06.2023, गुरुवार, काम्बलगांव, बोईसर, पालघर (महाराष्ट्र)। अणुव्रत यात्रा द्वारा मानवीय मूल्यों का पुनरुत्थान करने वाले शांतिदूत युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ बृहत्तर मुंबई के विचरण हेतु गतिमान है। पुज्यप्रवर का यह पावन शुभागमन हर जन मानस के मन में अध्यात्म का एक नव उल्लास लेकर प्रकट हुआ है। आज प्रातः आचार्य श्री ने बोईसर स्थित यू. एस. ओस्तवाल इंग्लिश एकेडमी से मंगल प्रस्थान किया। इस दौरान आचार्यवर ने मार्ग में अनेकानेक श्रद्धालुओं के प्रतिष्ठानों, निवास स्थानों में समक्ष मंगलपाठ प्रदान किया। स्थानीय तेरापंथ समाज द्वारा तेरापंथ भवन हेतु निर्धारित भूमि पर भी गुरुदेव पधारे एवं समाज को अपने आशीर्वाद से अनुगृहित किया। आज का विहार सामान्य दिनों की अपेक्षा कम था। लगभग 05 किमी विहार कर गुरुदेव कुम्बलगांव (बेटेगांव) स्थित निर्माणाधीन आचार्य श्री महाप्रज्ञ विद्या निधि फाउंडेशन के कॉलेज परिसर में पधारे। मार्ग के दोनों ओर खड़े पंक्तिबद्ध श्रावक समाज जय जयकारों से अपने आराध्य का स्वागत कर रहा था। तेरापंथ किशोर मंडल मुंबई द्वारा लगाई गई सन् 2003 की झलकियो का गुरुदेव ने अवलोकन किया। नवनिर्माणाधीन कॉलेज परिसर में प्रवास हेतु गुरुदेव का पदार्पण हुआ। कार्यक्रम में संस्थान के अध्यक्ष श्री किशनलाल डागलिया ने आचार्य महाश्रमण दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में निर्माणाधीन कॉलेज का नाम आचार्य श्री महाश्रमण जी को समर्पित करने की घोषणा की।
मंगल धर्म देशना देते हुए गुरुदेव ने कहा– मनुष्य के शरीर में पांच ज्ञानेंद्रिया होती है और पांच कर्मेंद्रियां होती है। ये ज्ञानेंद्रिया भोग का साधन होती है व उनके विषयों को ग्रहण करती हैं। श्रोतेन्द्रिय से शब्द श्रवण का विषय ग्रहण होता है। शब्द अर्थ के संवाहक होते है। सुनने से प्रतिक्रिया भी हो सकती है पर राग-द्वेशात्मक प्रतिक्रिया से हमें बचना चाहिए। अपनी श्रवण शक्ति का उपयोग अच्छी बातों में करे। कानों से शास्त्रों की वाणी सुने, आगम की वाणी सुने व फालतू बातों व निंदा में समय बर्बाद न करें। आध्यात्मिक बातों में अपना समय लगायें | अच्छी ज्ञानवर्धक बातें सुनें व स्व-प्रशंसा में रस न लें तथा सब प्रवचन आदि सुनने में अपना समय लगायें तो श्रवण शक्ति को सार्थक किया जा सकता है। कान के बाद आँख का भी बड़ा महत्व है | कहीं कहीं कान से भी आँख का ज्यादा महत्व हो जाता है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आँखों का उपयोग अच्छा साहित्य पठन व साधु-संतों के दर्शन आदि में हो। इन आंखों से हर प्रकार का दृश्य देखा जा सकता है तो आँखों का उपयोग ध्यान व त्राटक करने में भी किया जा सकता है। अपनी दृष्टि का हम गुरुपयोग ना करे। गलत चीजें व गलत दृष्टि न रहे। अंतर्दृष्टि के अभाव में इन दो आँखों का दुरूपयोग हो सकता है। इसी प्रकार नासाग्र पर ध्यान के प्रयोग किए जा सकते है। रसना से वाणी संयम व खाने का संयम का व्यक्ति को विवेक रखना चाहिए। यह आवश्यक है कि व्यक्ति अपनी इंद्रियों का संयम करे एवं सदुपयोग करे।
प्रसंगवश आचार्यश्री ने कहा– आज यहां आचार्य महाप्रज्ञ विद्या निधि फाउंडेशन और महाप्रज्ञ पब्लिक स्कूल कालबा देवी से परिसर में आना हुआ है। मानों यह कॉलेज संस्थान के बेटे के समान है। कई बार बेटा बाप से भी संवाया काम कर जाता है। यहां ज्ञान के साथ–साथ संस्कारों के निर्माण पर भी ध्यान दिया जाए। संस्कार युक्त ज्ञान होता है तब पूर्णता होती है। फाउंडेशन से कार्यकर्ता भी खूब आध्यात्मिक कार्य करते रहे।
पूज्य गुरुदेव के उद्बोधन से पूर्व साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने सारगर्भित उद्बोधन प्रदान किया। इस अवसर पर आचार्य महाप्रज्ञ विद्या निधि फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री किशनलाल डागलिया, चातुर्मास व्यवस्था समिति मुंबई के अध्यक्ष श्री मदन तातेड, श्री जुगराज जैन ने अपने विचार रखे। ज्ञानशाला ने स्वागत में प्रस्तुति दी एवं महिला मंडल की बहनों ने स्वागत गीत का संगान किया।