बन्ध के कारण है जीव और अजीव का सम्बन्ध : महातपस्वी महाश्रमण

  • मुम्बई की ओर गतिमान महातपस्वी ने किया 14 कि.मी. का विहार
  • नानापोंढ़ा में स्थित श्री स्वामीनारायण स्कूल में हुआ पावन प्रवास

19.05.2023, शुक्रवार, नानापोंढ़ा, वलसाड (गुजरात)। वर्ष 2023 के चतुर्मास सहित कई महीनों के प्रवास के लिए भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई की ओर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी शुक्रवार को नानापोंढ़ा में स्थित श्री स्वामीनारायण स्कूल में पधारे तो श्री स्वामीनारायण एजुकेशन ट्रस्ट व स्कूल से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत-अभिनंदन किया। मुम्बई प्रवेश से पूर्व आचार्यश्री वापी को भी अपने चरणों से पावन करेंगे।
शुक्रवार को प्रातः मालनपाड़ा में स्थित मॉडल स्कूल से महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रस्थान किया। लोगों को अपने आशीष से आच्छादित करते हुए आचार्यश्री गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे। आचार्यश्री के बढ़ते कदमों के साथ ही आसमान में सूर्य भी तेजी से बढ़ता जा रहा था, जिसकी प्रखर किरणें भूमि को तवे की भांति तप्त कर रही थीं। प्राकृतिक प्रतिकूलताओं से अप्रभावी आचार्यश्री अपनी अणुव्रत यात्रा के साथ गतिमान थे। मार्ग में मुम्बई से सेवा में आने वाले श्रद्धालु आचार्यश्री के दर्शन व आशीष से लाभान्वित हो रहे थे। लगभग 14 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री नानापोंढ़ा स्थित श्री स्वामीनारायण एजुकेशन ट्रस्ट द्वारा संचालित श्री स्वामीनारायण स्कूल में पधारे तो मैनेजिंग ट्रस्टी श्री हरिवल्लभदासजी आदि स्कूल से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत किया।
स्कूल प्रांगण में आयोजित मंगल प्रवचन में समुपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि प्रश्न किया गया कि यह लोक क्या है? इसका शास्त्र में उत्तर देते हुए बताया गया कि यह लोक छह द्रव्यों वाला है। इसके सिवाय इस लोक में कुछ भी नहीं है। जैन दर्शन के अनुसार दुनिया छह द्रव्यों वाली है। दुनिया ज्ञात हो गई तो इस दुनिया में क्या करना चाहिए? इस प्रश्न का समाधान देते हुए कहा गया कि नौ तत्त्वों को जानने का प्रयास करना चाहिए। अध्यात्म और आत्मकल्याण के लिए नौ तत्त्वों की बात होती है।
इन नौ तत्त्वों के आधार पर आत्मा और शरीर का संबंध अर्थात जीव और अजीव का सम्बन्ध बन्ध के कारण होता है। पाप कर्म अथवा पुण्य कर्मों के बंध से जीव और अजीव का संबंध होता है। कर्मों का बंध कराने वाला तत्त्व आश्रव होता है। आश्रवों को आने से रोकने के लिए मनुष्य को संवर की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। संवर की साधना परिपुष्ट हो तो आदमी को बंध से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। निर्जरा द्वारा कर्मों का क्षय कर आदमी अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि यहां आना हुआ है। यहां भी धार्मिक-आध्यात्मिक विकास होता रहे। बच्चों में अच्छे संस्कारों का विकास हो। आचार्यश्री के स्वागत में श्री स्वामीनारायण एजुकेशन ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी श्री हरिवल्लभदासजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।

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