धरमपुर में दो आध्यात्मिक धाराओं का अद्भुत मिलन

  • तेरापंथ के देदीप्यमान महासूर्य महाश्रमण का श्रीमद् राजचन्द्र मिशन धरमपुर में मंगल पदार्पण
  • श्रीमद् राजचन्द्र मिशन के पूज्य गुरुदेवश्री राकेशजी ने किया भावभीना अभिनंदन
  • धर्म है सर्वोत्कृष्ट मंगल : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण
  • हृदय परिवर्तन करने वाले महासंत का आगमन बसंत की तरह : पूज्य गुरुदेवश्री राकेशजी
  • आचार्यश्री ने श्रीमद् राजचन्द्र मिशन आश्रम में कराया ध्यान का प्रयोग

17.05.2023, बुधवार, धरमपुर, वलसाड (गुजरात)। जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले, मानवता के कल्याण के लिए निरंतर गतिमान, अखण्ड परिव्राजक, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी बुधवार को वलसाड जिले के धरमपुर नगरी में पधारे तो श्रीमद् राजचन्द्र मिशन धरमपुर के पूज्य गुरुदेवश्री राकेशजी अपने शिष्यों संग आचार्यश्री का भावभीना स्वागत-अभिनंदन किया। इस आध्यात्मिक मिलन में मानों भगवान महावीर की दो धाराएं मिलकर पुनः एकता और सद्भावना की गंगा प्रवाहित कर रही थीं। श्रीमद् राजचन्द्र मिशन के मुख्यालय में आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल शुभागमन अद्भुत दृश्य उत्पन्न करने वाला था। चारों ओर हर्षोल्लास का वातावरण छाया हुआ था। श्रीमद् राजचन्द्र मिशन के अनुयायी आचार्यश्री के आगमन में खुशी से जयघोष करते हुए झूम रहे थे। भव्य स्वागत जुलूस के मध्य गति करते दोनों आम्नायों के धर्मगुरु शोभायमान हो रहे थे।
इसके पूर्व प्रातःकाल की मंगल बेला में अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वांकल प्राथमिक शाला से मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री आज धरमपुर में स्थित श्रीमद् राजचन्द्र मिशन की ओर गतिमान थे। आचार्यश्री के आगमन से आश्रम में एक अलग की माहौल नजर आ रहा था। तेरापंथी श्रद्धालुओं की भांति ही आश्रम के अनुयायी भी मानवता के मसीहा के स्वागत को उत्सुक नजर आ रहे थे। लगभग सात किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री जैसे ही श्रीमद् राजचन्द्र मिशन आश्रम के मुख्य द्वार तक पहुंचे तो आचार्यश्री के स्वागत में स्वयं पूज्य गुरुदेवश्री राकेशजी सहित सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित अनुयायियों ने आचार्यश्री का भव्य स्वागत किया। शुभ चिन्ह गहुली के द्वारा भी आचार्यश्री का स्वागत किया गया। आचार्यश्री ने सभी को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री आश्रम में बने आत्मार्पित निवास में पधारे।
प्रवास कक्ष से कुछ दूरी पर स्थित यज्ञस्थल में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में मंच पर दोनों धर्मगुरु विराजमान हुए। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। मिशन से जुड़े श्रद्धालुओं ने स्वागत गीत पर अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। विडियो के माध्यम से मिशन के कार्य, उद्देश्य व गतिविधियों को दर्शाया गया। आत्मार्पित मौलिकजी ने आचार्यश्री का परिचय प्रस्तुत किया। मुनि कुमारश्रमणजी ने दो आम्नायों के संबंधों पर प्रकाश डाला।
तदुपरान्त श्रीमद् राजचन्द्र मिशन धरमपुर के पूज्य गुरुदेवश्री राकेशजी ने अपने संबोधन में कहा कि आज हमारा अहोभाग्य है कि इस गर्मी के मौसम में परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी मानों किसी बसंत ऋतु की भांति पधारे हैं। आपश्री विश्व जगत के जीवों का कल्याण कर रहे हैं। लोगों के हृदय को परिवर्तित करने वाले आप महान संत हैं। आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की आपश्री अनुपमेय कृति हैं। आपश्री गुरुमुखी होते हुए भी अंतर्ममुखी हैं। आधि, व्याधि और उपाधि से संतप्त मानवों के लिए आपश्री जैसे सत्पुरुषों की दृष्टि और सत्संगति समस्त विकारों से मुक्ति प्रदान करने वाली है। आपश्री से प्रेरणा लेकर सभी अंतर्मुखी बनने का प्रयास करें। आपश्री के वचनामृत की महिमा अनंत है।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनमानस को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि जैन आगम दसवेआलियं के प्रथम अध्ययन के प्रथम श्लोक में धर्म की व्याख्या की गई है। इस श्लोक में धर्म का मानों सार भर दिया गया है। दुनिया में मंगल की कामना की जाती है। आदमी स्वयं के लिए मंगल की कामना करता है और दूसरों के प्रति भी मंगलकामना करता है। मंगल के लिए शुभ मुहूर्त आदि भी देखे जाते हैं तो अनेक पदार्थों का प्रयोग भी मंगल के लिए किया जाता है, किन्तु शास्त्र में बताया गया कि सर्वोत्कृष्ट मंगल धर्म है। प्रतिप्रश्न हो सकता है कि कौन-सा धर्म सर्वोत्कृष्ट मंगल है तो इसका प्रत्युत्तर प्राप्त होता है कि अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म ही सर्वोत्कृष्ट मंगल है। जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।
हिंसा और अहिंसा की भावना आत्मा के भीतर होती है। आत्मा ही हिंसा करा देती है और आत्मा ही अहिंसा की ओर ले जाने वाली होती है। आदमी को अपनी आत्मा को अहिंसात्मक बनाने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में अहिंसा के भाव पुष्ट हों। इन्द्रयों पर संयम हो, कषायों की मंदता हो और जीवन में तपस्या हो तो जीवन मंगलमय हो सकता है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज यहां आना हुआ है और श्री राकेशभाई से मिलना हुआ है। यहां भी साधना और अध्यात्म का विकास होता रहे। दूसरों के कल्याणकारी चिंतन का विकास हो। आध्यात्मिक साधना में आगे बढ़ते रहें। यह काम्य है। आचार्यश्री के मंगलपाठ से मुख्य प्रवचन कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम का संचालन आत्मार्पित श्री मौलिकजी ने किया।
दोपहर लगभग ढाई बजे से साढे तीन बजे तक आचार्यश्री की पावन सन्निधि में श्रीमद् राजचन्द्र मिशन आश्रम से जुड़े श्रद्धालुओं को आचार्यश्री यज्ञस्थल में पधाकर ध्यान का प्रयोग कराया। आचार्यश्री की इस कृपा को प्राप्त कर श्रद्धालु धन्यता की अनुभूति कर रहे थे।

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