मयानगरी की ओर बढ़ते ज्योतिचरण ने भूतसर को किया पावन

– आतप और उमस से वृक्षों ने दी छाया, तो शीतल पवन ने गिराया पारा  
– लगभग 11 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे भूतसर  
– ज्ञान का सार है अहिंसा : अहिंसा के पुजारी आचार्यश्री महाश्रमण  
– सान्ध्यकालीन विहार: वांकल प्राथमिक शाला पहुंचे युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण  
16.05.2023, मंगलवार, भूतसर, वलसाड (गुजरात)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2023 का चतुर्मास के लिए भारत की आर्थिक राजधानी, मायानगरी मुम्बई की ओर गतिमान हैं। इस यात्रा के दौरान गुजरात के अनेक जिले आचार्यश्री की चरणरज से पावन बन रहे हैं। वर्तमान में आचार्यश्री वलसाड जिले के गांवों को पावन बना रहे हैं। वलसाड जिला आम के बागवानी के सुप्रसिद्ध है। आचार्यश्री के विहार मार्ग के दोनों ओर दूर-दूर तक आम के बगीचे दिखाई दे रहे हैं। आम के वृक्षों पर लगे फल सहज ही राहगीरों को आकर्षित कर रहे हैं। फलों से लदी आम की झुकी हुई डालियां लोगों को विनम्र होने की प्रेरणा देने वाले भी बन रहे हैं।
मंगलवार को वलसाड जिला मुख्यालय स्थित सरस्वती इण्टरनेशनल स्कूल से आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए गतिमान हुए। वलसाडवासी अपने आराध्य के प्रति कृतज्ञता अर्पित कर रहे थे और आचार्यश्री से पावन आशीष प्राप्त कर रहे थे। शीतल हवा आतप को कुछ कम कर रही थी, किन्तु सूर्य के किरणों की उपस्थिति में उमस अपना प्रभाव दिखा रही थी। मार्ग के दोनों ओर स्थित वृक्षों की छाया यात्रियों को राहत देने वाले थे, किन्तु प्रकृति की प्रतिकूलता और अनुकूलता से अप्रभावी आचार्यश्री गतिमान थे।
लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री लोहलाइ-भूतसर गांव में स्थित पटेल परिवार के निवास स्थान में पधारे। आचार्यश्री इस परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ज्ञानी आदमी के ज्ञान का लाभ मिलता है। शास्त्रों में ज्ञान का सार अहिंसा को बताया गया है। कहा गया है, जो ज्ञानी है वह हिंसा नहीं करता, वह अहिंसा और समता की साधना करने वाला होता है।
आदमी की आत्मा में ही हिंसा और अहिंसा के भाव होते हैं। जो अप्रमत्त होते हैं, वे अहिंसक होते हैं और जो प्रमत्त वो हिंसक होते हैं। स्वतः अपनी मृत्यु को कोई जीव मरे तो उसका पाप नहीं लगता, किन्तु किसी जीव को कोई संकल्पवश, द्वेष, ईष्या वश मारे तो वह हिंसा और पाप का भागीदार भी बनता है। हिंसा के तीन प्रकार बताए गए हैं-आरम्भजा, प्रतिरक्षात्मिकी और संकल्पजा। जीवन यापन के लिए गृहस्थी के कार्य जैसे खाना बनाना, अनाज, फल आदि का उपयोग, आग आदि आरम्भजा हिंसा होती है, उसे आवश्यक हिंसा भी कहा जा सकता है। कभी ऐसी भी स्थिति आती है जब परिवार, समाज अथवा राष्ट्र की सुरक्षा के लिए भी आदमी को हिंसा करनी पड़ सकती है। वह दूसरे प्रकार की हिंसा होती है, किन्तु संकल्पपूर्वक किसी प्राणी की हत्या निषेध है। आदमी को इस प्रकार की हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त श्री दीपकुमार व श्री बालू भाई ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।
सायंकाल अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी सान्ध्यकालीन विहार को गतिमान हुए। लगभग साढे पांच किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री वांकल गांव में स्थित वांकल प्राथमिक शाला में पधारे। जहां आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास हुआ।

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