आत्म निग्रह से बनी रह सकती है चित्त समाधि : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 

– प्रखर आतप में महातपस्वी महाश्रमण का प्रलम्ब विहार
– 15 कि.मी. की दूरी तय कर आचार्यश्री ने डुंगरी को किया पावन  
– डुंगरीवासियों ने अपने आराध्य का किया भव्य स्वागत-अभिनंदन  
14.05.2023, रविवार, डुंगरी, वलसाड (गुजरात)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जनकल्याण के लिए प्रखर गर्मी व तीव्र आतप के बावजूद लगभग 15 किलोमीटर का प्रलम्ब विहार कर वलसाड जिले के डुंगरी में पधारे तो डुंगरीवासियों ने भव्य स्वागत जुलूस के साथ अपने राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी का भव्य स्वागत किया। स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री डुंगरी में स्थित पूर्वशाला डुंगरी विभाग में पधारे।  रविवार को प्रातःकाल महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने चीखली से मंगल प्रस्थान किया। आज का निर्धारित विहार 15 किलोमीटर था। इस क्षेत्र में तीव्र गर्मी और उमस ने लोगों को बेहाल कर रखा है, किन्तु अखण्ड परिव्राजक के गतिमान चरणों को रोक पाना इस गर्मी के वश में नहीं था। जन-जन को आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री गतिमान थे। अपने आराध्य के आगमन से डुंगरी में निवासित तेरह तेरापंथी परिवार ही नहीं, अन्य सभी धर्म और समाज के लोग भी हर्षित थे। आसमान में चढ़ते सूर्य की तीखी किरणें लोगों को पसीने से नहला रही थीं, किन्तु दृढ़ निश्चयमी महायोगी आचार्यश्री महाश्रमणजी आगे बढ़ते जा रहे थे। विहार के दौरान आचार्यश्री ने नवासरी जिले से गुजरात के एक और नए जिले वलसाड की सीमा में मंगल प्रवेश किया। लगभग 15 किलोमीटर का विहार प्रलम्ब विहार कर आचार्यश्री डुंगरी पहुंचे तो श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
सार्वजनिक हाईस्कूल में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में दुःख बहुत है। जन्म दुःख है, मृत्यु दुःख है, बुढ़ापा और बीमारी भी दुःख है। इसके अलावा भी मनुष्य बाह्य अथवा भीतरी कारणों से भी दुःखी होता रहता है। कभी आर्थिक समस्या, रोटी, कपड़े, मकान की समस्या, स्वास्थ्य की समस्या, कोई कार्य पूर्ण न होने से समस्या आदि अनेक प्रकार की समस्याओं और दुःखों से आदमी दुःखी होता रहता है। पास में धन न हो तो समस्या और पैसा अधिक हो जाए तो भी समस्या। कभी चोरी होने का डर, उसके सुरक्षा की चिंता। अर्थ अनर्थ पैदा करने वाला भी हो सकता है। अर्थ (पैसे) के कारण आदमी चोरी, हिंसा, कपट और अपराध में भी चला जा सकता है। इस प्रकार आदमी दुनिया में कभी शारीरिक, पारिवारिक, मानसिक, भावात्मक दुःखों से डरता रहता है।
शास्त्र में वर्णित आठ कर्मों में प्रथम चार कर्म तो एकांत पाप हैं जो आत्मा को दुःख देते हैं, शेष चार कर्म आदमी के पुण्य और पाप के होते हैं। इनके द्वारा आदमी को पुण्योदय होने पर भौतिक अनुकूलता रूप में सुखानुभूति भी प्राप्त हो सकती है। आदमी को इन सांसारिक दुःखों से मुक्त होने के लिए आत्मा निग्रह की बात बताई गई है। आत्म निग्रह हो जाए तो समस्या आदमी के चित्त समाधि को भंग नहीं कर सकती, वह अप्रभावी रहेगी। आत्म निग्रह के लिए मन, वचन और काय का संयम करने का प्रयास होना चाहिए। आचार्यश्री ने डुंगरीवासियों को आशीष प्रदान करते हुए कहा कि आज यहां आना हुआ है। यहां के लोगों में धार्मिक-आध्यात्मिक चेतना का विकास होता रहे।
डुंगरीवासियों को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी उद्बोधित किया। अपने गांव में अपने आराध्य के आगमन से हर्षित श्रद्धालुओं ने अपनी अभिव्यक्तियां भी दीं। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री मांगीलाल हिरण, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ भटेवरा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ समाज ने स्वागत गीत का संगान किया। ज्ञानशाला-डुंगरी के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति के माध्यम से अपने आराध्य को अपनी अभिवंदना समर्पित की।  अणुविभा की ओर से गुजरात राज्य प्रभारी श्री अर्जुन मेडतवाल, पश्चिमांचल संगठन मंत्री श्रीमती पायल चोरडिया, आचार्य महाश्रमण प्र. व्य. समिति मुंबई के श्री सुभाषजी मेहता, श्री नानालालजी राठौड़, श्री मांगीलालजी हिरण, श्री केसरीमलजी चंडालिया, राजूभाई चोरडिया आदि ने डूंगरी सार्वजनिक स्कूल के ट्रस्टी श्री प्राचार्य महोदय, सरपंच श्री आदि को सम्मानित किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमारजी ने किया।

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