सूरत को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान कर गतिमान हुए ज्योतिचरण

  • 13 कि.मी. का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण पहुंचे सचिन
  • श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य का किया भव्य स्वागत, एल.डी. हाईस्कूल हुआ प्रवास
  • अहंकारमुक्त हो जीवन : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण
  • हर्षित सचिनवासियों ने अपने आराध्य की अभिवंदना में दी विभिन्न प्रस्तुतियां

सूरत (गुजरात)। हीरे की नगरी सूरत को अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा से भावित कर, सूरत में ज्ञान की गंगा बहाकर शुक्रवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी भगवान महावीर युनिवर्सिटि से गतिमान हुए। लगभग पन्द्रहदिवीसीय प्रवास के दौरान अनेक महनीय आयोजन न केवल तेरापंथ की महत्ता को उजागर करने वाले रहे, बल्कि कई अनेक इतिहासों का सृजन करने वाले भी रहे। अक्षय तृतीया महोत्सव के अवसर पर तपस्वियों के पारणे का कीर्तिमान का सृजन हुआ तो आचार्यश्री के जन्मोत्सव और पट्टोत्सव तथा दीक्षा कल्याण महोत्सव के प्रथम समायोजन का गवाह भी सूरत शहर बना।
अपने आराध्य को अपनी आस्थासिक्त प्रणति अर्पित करने के लिए सूरतवासी उपस्थित हो रहे थे। सभी पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री गतिमान हुए। सूर्य की रोशनी के साथ बढ़ता ताप लोगों के पसीने निकाल रहा था, किन्तु समता के साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी अबाध रूप से गतिमान थे।
लोगों पर आशीष बरसाते हुए आचार्यश्री लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर सचिन की सीमा में प्रविष्ट हुए तो सचिनवासियों ने अपने आराध्य का भव्य स्वागत किया। गूंजते जयकारे सचिनवासियों के उत्साह को दर्शा रहे थे। स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री सचिन में स्थित एल.डी. हाईस्कूल में पधारे। जहां स्कूल के विद्यार्थियों व शिक्षकों आदि ने आचार्यश्री का भावभरा अभिनंदन किया।
विद्यालय परिसर में मुख्य प्रवचन कार्यक्रम जो कि आचार्यश्री महाश्रमण 50वां दीक्षा कल्याण महोत्सव के द्वितीय चरण के रूप में आयोजित था, प्रारमभ हुआ। उपस्थित जनता को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उद्बोधित किया।
आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि निरहंकारता मानव जीवन का एक गुण होता है। विनय और निरहंकारता का भाव आदमी को उन्नति की ओर ले जाने वाला होता है। दूसरी ओर अहंकार का भाव आदमी को पतन की ओर ले जाने वाला होता है। लघुता की भावना हो तो आदमी प्रभुता को भी प्राप्त कर सकता है। इसलिए आदमी को घमण्ड से बचने का प्रयास करना चाहिए।
ऐसा कहा गया है कि अहंकार मदिरापान के समान, गौरव नरक के समान और प्रतिष्ठा सुकर के समान। इसलिए आदमी को अहंकार का त्याग कर अपने जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास करना चाहिए। तिथि के अनुसार हमारा दीक्षा कल्याण महोत्सव कल मनाया गया, किन्तु दिनांक के हिसाब से हमारी दीक्षा आज के दिन हुई थी। साधु को अहंकार से बचने और उच्चता को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। साधु को अपने संयम को पुष्ट करने का प्रयास करना चाहिए। पांच आश्रवों को छोड़ने वाले, तीन गुप्तियों से गुप्त और छहकाय के जीवों के प्रति संयम और पांचों इन्द्रियों का निग्रह करने वाले शुद्ध साधु होते हैं। अहंकार से मुक्त हौर संयम से युक्त हो तो साधु जीवन का अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
आचार्यश्री ने कहा कि आज सचिन में आना हुआ है। यहां हमारा दिनांक के हिसाब दीक्षा कल्याण महोत्सव हो गया। यहां की जनता में अच्छी आध्यात्मिक-धार्मिक बनी रहे, मंगलकामना।
कार्यक्रम में तेरापंथी सभा-सचिन के अध्यक्ष श्री सुखलाल खमेसरा, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री पिन्टू मुड़ोत, श्री राजमल काल्या, श्रीमती शशि कोठारी व चन्दनबाला महिला मण्डल की ओर से श्रीमती सीमा सहलोत ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल, तेरापंथ कन्या मण्डल, श्रीमती चांदनी चपलोत व श्री पीयूष ओस्तवाल ने अपने-अपने गीतों का संगान किया। तेरापंथ किशोर मण्डल व ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी-अपनी प्रस्तुति के माध्यम से अपने आराध्य के श्रीचरणों की अभ्यर्थना की।

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