दिल्ली। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की प्रबुद्ध शिष्या साध्वीश्री अणिमाश्री जी के सान्निध्य मे समर्थ शिक्षा समिति द्वारा संचालित बाल मंदिर विद्यालय मे जीवन विज्ञान पर एक संगोष्ठी आयोजित हुई, जिसमे लगभग एक हज़ार विद्यार्थी एवं शिक्षक-शिक्षिकाएँ उपस्थित थे।
साध्वीश्री अणिमाश्री जी ने अपने प्रेरक उद्बोधन मे कहा – हर बालक अपने जीवन मे गुणों का विकास करे। गुणवत्ता का वर्धन होना चाहिए। सिर्फ शिक्षा से गुणवत्ता नहीं बढ़ सकती। गुणवत्ता बढ़ाने के लिए संस्कारों का प्रशिक्षण जरूरी है | आज की शिक्षा डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, सी.ए, इत्यादि तो बना सकती है किन्तु अच्छे इंसान का निर्माण नहीं कर सकती। जीवन विज्ञान एक ऐसी प्रयोगात्मक शिक्षा पद्दती का नाम है जो मानव के भीतर गुणों का विकास कर सकती है। जीवन जीने की कला, जीवन विज्ञान से सीखी जा सकती है।
साध्वीश्री जी ने कहा जैसे हमारे भाव होंगे वैसे हमारे स्राव होंगे, जैसा स्राव होगा वैसा स्वभाव और जैसा स्वभाव वैसा हमारा व्यवहार होगा। हमारा व्यवहार और स्वभाव ही हमारे जीवन को आनंदमयी बना सकता है। जीवन विज्ञान भाव शुद्धि करना सीखाता है। जीवन विज्ञान के प्रयोगों के माध्यम से हम बौद्धिक क्षमता को बढ़ा सकते हैं। संस्कारों के द्वारा हम अपने जीवन का सर्वांगीण विकास करें, ऐसी अपेक्षा है।
साध्वीश्री ने कहा समर्थ शिक्षा समिति के अध्यक्ष भाई सुखराज जी के कारण हमे बच्चों को अपनी बात कहने का अवसर मिला है। आर.एस.एस. द्वारा संचालित इस स्कूल मे जो संस्कारों एवं भारतीय संस्कृति की शिक्षा दी जाती है वह प्रशंसनीय व सराहनीय है। विद्यार्थियों ने बड़े ही सुंदर व सुरीली आवाज़ मे गुरु वंदना, ईश वंदना व सरस्वती वंदना की प्रस्तुति दी | समर्थ शिक्षा समिति के अध्यक्ष श्री सुखराज जी सेठीया ने साध्वी वृंद का परिचय देते हुए स्कूल प्रांगण मे स्वागत किया। प्रधानाध्यापिका श्रीमती बीभा जी ने बहुत ही मधुर शैली मे आभार ज्ञापन किया | श्री रमेश जी ने बहुत ही सुंदर ढंग से बच्चों को जीवन विज्ञान के प्रयोग करवाए।
बालक अपने जीवन मे गुणवत्ता का वर्धन करे – साध्वी अणिमाश्री
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