- पूज्य सन्निधि में भगवई खण्ड- 6 हुआ लोकार्पित
- शाहीबाग प्रवास में उमड़ रहे श्रद्धालु, प्रवचन व सेवा का उठा रहे लाभ
- कई शिक्षाविदों ने भी शांतिदूत के किए दर्शन, प्राप्त किया पावन आशीर्वाद
18.03.2023, शनिवार, शाहीबाग, अहमदाबाद (गुजरात)। शाहीबाग में विराजमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल दर्शन, आशीर्वाद व उनके श्रीमुख से निरंतर प्रवाहित होने वाली ज्ञानगंगा में डुबकी लगाने को श्रद्धा का सैलाब उमड़ रहा है। शहर के मध्य स्थित इस स्थान के आसपास बड़ी संख्या में तेरापंथी परिवारों का निवास है। इसके साथ ही मानव मात्र का कल्याण करने वाले आचार्यश्री के दर्शन और मंगल प्रवचन के श्रवण को अन्य संप्रदायों के लोग भी उमड़ रहे हैं।
शनिवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के लिए आचार्यश्री तेरापंथ भवन से गतिमान हुए तो मार्ग के दोनों ओर श्रद्धालुओं की कतार-सी लगी हुई थी। सभी पर आशीषवृष्टि करते हुए कुछ दूरी पर स्थित जैनं जयतु शासनम् समवसरण के मंच पर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी विराजमान हुए और मंगलपाठ का सम्मुचारण कर आज के मंगल प्रवचन कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। भगवती जोड़ आगम का छठा भाग भगवई खण्ड- 6 को जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों व गुजरात के प्रख्यात साहित्यकार, लेखक श्री कुमारपाल देसाई आदि ने आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया। मुनि योगेशकुमारजी ने इस संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी।
आचार्यश्री की सन्निधि में पहुंचे गुजराती भाषा के साहित्यकार, लेखक श्री कुमारपाल देसाई ने कहा कि आज आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में पहुंचकर स्वयं को सौभाग्यशाली महसूस कर रहा हूं। अहमदाबाद की धरा आपके आगमन से धन्य हो गई। आचार्यश्री तुलसी स्वप्नद्रष्टा थे और उनके सपनों को आचार्यश्री महाप्रज्ञजी और अब आचार्यश्री महाश्रमणजी पूर्ण कर रहे हैं। वहीं इसरों के वैज्ञानिक श्री नरेन्द्र भण्डारी ने कहा कि मैं पूजनीय संत आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन कर आह्लादित हूं।
तदुपरान्त साध्वीवर्याजी व साध्वीप्रमुखाजी ने जनता को अभिप्रेरित किया। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित विराट जनमेदिनी को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि मोक्ष प्राप्ति के प्रज्ञप्त चार मार्गों में प्रथम स्थान ज्ञान को प्राप्त है। ज्ञान का विकास होता है तो आदमी के भीतर दया और आचरण की गुणात्मक वृद्धि हो सकती है और फिर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी सुगम हो सकता है। इसलिए जीवन में ज्ञान का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान प्राप्ति के लिए जैन शासन में 32 बताए गए हैं। जितना आगमों का स्वाध्याय हो सके, ज्ञान का विकास हो सकता है। आगम का पारायण और आगमों का भाष्य मानों सारस्वत साधना है। जैन विश्व भारती आगमों का प्रकाशन आदि का कार्य करती है। आज भगवई के छठे खण्ड का लोकार्पण हुआ है। आज विद्वत और वैज्ञानिक लोगों का वक्तव्य हुआ है। ऐसे ही चर्चा-मीमांसा होती है तो नवनीत प्राप्त हो सकता है। ज्ञान की दृष्टि से आगम के कार्यों में समय लगाने वाले अनुमोदनीय हैं।