भोपाल। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि मानवता के दुख के कारण का बोध कराना और उस दुख को दूर करने का मार्ग दिखाना, पूर्व के मानववाद की विशेषता है, जो आज के युग में और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। धर्म-धम्म की अवधारणा भारतीय चेतना का मूल स्वर रही है।
श्रीमती मुर्मू यहां के कुशाभाऊ ठाकरे हाल में सातवें अंतर्राष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन का उद्घाटन कर रही थी। कार्यक्रम में राज्यपाल मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर के अतिरिक्त लगभग 15 देशों के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि हमारी परंपरा में कहा गया है कि जो सबको धारण करता है, वह धर्म है। धर्म की आधार-शिला पर ही पूरी मानवता टिकी हुई है। राग और द्वेष से मुक्त होकर मैत्री, करूणा और अहिंसा की भावना से व्यक्ति और समाज का विकास करना, पूर्व के मानववाद का प्रमुख संदेश रहा है। नैतिकता पर आधारित व्यक्तिगत आचरण और समाज व्यवस्था पूर्व के मानववाद का ही व्यावहारिक रूप है। नैतिकता पर आधारित इस व्यवस्था को बचाए रखना और मजबूत करना हर व्यक्ति का कर्त्तव्य माना गया है।
उन्होंने कहा कि धर्म-धम्म की हमारी परंपरा में ‘सर्वे भवंतु सुखिन:’ की प्रार्थना हमारे जीवन का हिस्सा रही है। यही पूर्व के मानववाद का सार-तत्व है और आज के युग की सबसे बड़ी जरूरत भी है। यह सम्मेलन मानवता की एक बड़ी जरूरत को पूरा करने की दिशा में सार्थक प्रयास है। यही कामना है कि समस्त विश्व समुदाय पूर्व के मानववाद से लाभान्वित हो।
श्रीमती मुर्मू ने धर्म-धम्म सम्मेलन के लिए राज्य सरकार साँची विश्वविद्यालय और इंडिया फाउंडेशन की सराहना की। उन्होंने कुशाभऊ ठाकरे का स्मरण करते हुए कहा कि इस सभागार को कुशाभाऊ ठाकरे का नाम दिया गया है। जन-सेवा के कार्य में धर्म-धम्म के आदर्शों के अनुरूप नि:स्वार्थ और संपूर्ण समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले श्री ठाकरे का स्मरण सभी को नैतिकता, धर्म और सेवाभाव से जोड़ता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश की परंपरा में समाज व्यवस्था और राजनैतिक कार्य-कलापों में प्राचीन काल से ही धर्म को केन्द्रीय स्थान प्राप्त है। स्वाधीनता के बाद हमने जो लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई उस पर धर्म-धम्म का गहरा प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। हमारे राष्ट्रीय प्रतीकों से यह स्पष्टत: प्रदर्शित होता है। अंतर्ऱाष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन में विभिन्न देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं, जो धर्म-धम्म के विचार की वैश्विक अपील का प्रतीक है।
राज्यपाल श्री पटेल ने कहा है कि हमारे भारतीय दर्शन की मान्यता इस विश्वास में निहित है कि विश्व सबके लिए है। युद्ध की कोई आवश्यकता ही नहीं है। मानवता के कल्याण के लिए शांति, प्रेम और एक-दूसरे के प्रति विश्वास आवश्यक है। राज्यपाल ने कहा कि हमारे देश की सदियों पुरानी परंपरा विश्व शांति और मानव जाति के कल्याण में विश्वास रखती है और उसे बढ़ावा देती है।
उन्होंने कहा कि नैतिक और व्यवहारिक क्षेत्र में बौद्ध दृष्टिकोण भी मानव जाति की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है। समृद्ध समाज, राष्ट्र एवं विश्व निर्माण के लिए भारतीय सांस्कृतिक और सभ्यतागत अंतर्संबंधों की सदियों से चली आ रही चिंतन परम्परा पर बदलते समय और परिप्रेक्ष्य में नई दृष्टि से विचार समय की ज़रूरत है। वैश्विक परिदृश्य में अतिवाद, विस्तारवाद, जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मानवता को बचाने के मार्ग भारतीय ज्ञान एवं ऋषियों के चिन्तन में ही मिलेंगे।
राष्ट्रपति ने अंतर्राष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन का किया उद्घाटन, कहा – यही अवधारणा भारतीय चेतना का मूल स्वर
![](https://surabhisaloni.co.in/wp-content/uploads/2023/03/PresidentMurmu-04-03-1.jpg)
Leave a comment
Leave a comment