- प्रभु पार्श्वनाथ की तरह हम भी बने वीतराग – आचार्य महाश्रमण
- शांतिदूत के प्रथम बार जिरावला पदार्पण से जैन समाज में छाया हर्षोल्लास
- जैनाचार्य प्रबोधचंद सूरी जी से युगप्रधान का आध्यात्मिक मिलन
14.02.2023, मंगलवार, जिरावला पार्श्वनाथ, सिरोही (राजस्थान)। अहिंसा यात्रा द्वारा देश विदेश में नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति का संदेश देने वाले जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ जीरावला पार्श्वनाथ में मंगल पदार्पण हुआ। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ से जुड़ा यह तीर्थ तीर्थस्थलों में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता है। आज आचार्य प्रवर के यहां प्रथम बार पदार्पण से समूचे जैन समाज में विशेष हर्षोल्लास छाया हुआ था। तीर्थंकर के प्रतिनिधि का सानिध्य पाकर पूरा वातावरण आध्यात्मिक रंग में रंगा हुआ था।
मंगलवार प्रातः आचार्य प्रवर ने पहुना ग्राम से मंगल विहार किया। जन-जन को अपने आशीष से कृतार्थ करते हुए ज्योतिचरण गंतव्य की ओर गतिमान हुए। पहाड़ी क्षेत्र और हर ओर दृष्टिगत होती लहलहाती खेती नयनाभिराम प्रतीत हो रही थी। अरोह अवरोह भरे मार्ग पर समता के महासागर आचार्य प्रवर लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर जीरावला पार्श्वनाथ तीर्थ पधारे तो तीर्थ से संबद्ध पदाधिकारियों ने जयघोषाें से वातावरण को गुंजायमान कर दिया। इस दौरान यहां पर मूर्तिपूजक आम्नाय के आचार्य प्रबोधचंद्र सूरी जी से शांतिदूत का आध्यात्मिक मिलन हुआ। इस मौके पर संघवी हंसराज कानजी राजकीय माध्यमिक विद्यालय, जिरावल के विद्यार्थियों ने आचार्यश्री का स्वागत किया एवं गुरुदेव से प्रेरणा प्राप्त कर सभी ने संकल्पत्रयी स्वीकार करते हुए नशा मुक्ति का त्याग ग्रहण किया।
मंगल प्रवचन में उद्बोधन प्रदान करते हुए आचार्यप्रवर ने कहा– लोगस्स व उक्कितणं के पाठ में चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। एक उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकर होते हैं। यह एक नियम है। वर्तमान चौबीसी में भरत क्षैत्र में जो चौबीस तीर्थंकर हुए उनमें प्रथम तीर्थंकर थे भगवान ऋषभ। जिनकी स्तुति में भक्तामर स्तोत्र व तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति में कल्याण मन्दिर स्तोत्र की रचना की गई। जैन मन्दिरों में सर्वाधिक मंदिर भगवान पार्श्वनाथ के पाए जाते है। धरनेंद्र-पद्मावती का भी प्रभु पार्श्व के इतिहास में उल्लेख मिलता है।
गुरुदेव ने आगे कहा कि तीर्थकर अध्यात्म के अधिकृत प्रवक्ता होते है तथा वे आध्यात्म वेत्ता, जगत वेत्ता व सर्व वेत्ता होते हैं। प्रभु पार्श्व के नाम के साथ पुरुषादानीय विशेषण जुड़ा हुआ है। प्रभु तो सिद्धवस्था में है उनको इस जुड़ाव व स्तुति से कोई फर्क नहीं पड़ता, पर स्तुति करने वाले का कल्याण हो जाता है। तीर्थंकर मुझ पर प्रसन्न रहें, मुझे आरोग्य, बोधि व समाधि का वरदान दें तथा सिद्धि प्रदान करें। मांग भी किसी समर्थ से ही की जा सकती है। आज हम प्रभु पार्श्व से जुड़े स्थान पर आये हैं। भगवान पार्श्वनाथ की तरह हम भी वीतराग बनने की भावना रखे कि कभी वीतराग बन जाएँ तो आत्मा का कल्याण हो सकता है।
तदुपरांत आचार्यश्री ने “प्रभु पार्श्व देव चरणों में” गीत का संगान किया। स्वागत–अभिनंदन के क्रम में जिरावला पार्श्वनाथ तीर्थ ट्रस्ट के मंत्री पोपटभाई जैन ने अपने विचार रखे। मध्यान्ह में लगभग 06 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री आदर्श विद्या मंदिर, रेवदर में पधारे।