- उत्साहित श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य का किया भावभरा अभिनंदन
- 1100 फिट लम्बे जैन ध्वज को लेकर कई मीटर तक अभिनंदन में पंक्तिबद्ध थे श्रद्धालु
- सर्द हवाओं में भी महातपस्वी ने 14 किलोमीटर का किया विहार
- अहिंसा की शरण में जाने से प्राप्त हो सकती है शांति : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
22.01.2023, रविवार, कानोड़, बाड़मेर (राजस्थान)। राजस्थान की मरुभूमि पर ज्ञान की गंगा प्रवाहित कर उसे आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी रविवार को अपनी धवल सेना संग बाड़मेर जिले के कानोड़ में पधारे। मानवता के मसीहा के अभिनंदन में मानों पूरा कानोड़ व उसके आसपास के क्षेत्रों की जनता उमड़ आई। कानोड़वासियों ने आचार्यश्री के अभिनंदन में 1100 फिर लम्बा जैन ध्वज को लेकर पंक्तिबद्ध रूप में उपस्थित थे। श्रद्धालुओं के साथ उपस्थित सैंकड़ों विद्यार्थी भी सोत्साह जयघोष करते हुए आचार्यश्री के स्वागत में भागीदार बन रहे थे। उपस्थित जनता पर आशीषवृष्टि करते हुए कानोड़ स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे।
इसके पूर्व रविवार को प्रातःकाल आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सवाऊ पदम सिंह से आचार्यश्री ने मंगल प्रस्थान किया। राजस्थान के इस क्षेत्र में सर्दी के मौसम में चलने वाली तेज हवा लोगों को ठिठुरने पर मजबूर कर रही थी, किन्तु जनकल्याण करने के लिए महातपस्वी इन सर्द हवाओं की परवाह किए बिना गतिमान हुए। अपने आराध्य की आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत श्रद्धालु भी साथ चल पड़े। मार्ग के दोनों ओर दूर-दूर तक रेत के टिले इस मरुभूमि में अपनी विशेष उपस्थिति को दर्शा रहे थे। कहीं-कहीं किसानों द्वारा अथक मेहनत कर बनाई गई समतल भूमि पर खेती का कार्य भी किया जा रहा था। मार्ग में आने वाले ग्रामीणों और किसानों पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री निरंतर गतिमान थे। लगभग 14 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री कानोड़ में पधारे।
विद्यालय परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं व विद्यार्थियों को आचार्यश्री ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा और मैत्री की अपनी शक्ति होती है। यदि प्राणी को शांति चाहिए तो उसे अहिंसा की शरण में आना होता है। अहिंसा परम धर्म और शांति प्रदाता तत्त्व है। इसलिए सभी प्राणियों के प्रति मानव का मैत्री भाव रखने का प्रयास करना चाहिए।
हिंसा को दुःख का जनक कहा गया है। जहां हिंसा होती है, वहां दुःख और अशांति बनी रहती है। आदमी को अपने भीतर अहिंसा और मैत्री के भाव का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। वैर रूपी दाग को मैत्री रूपी जल से धोने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के आह्वान पर उपस्थित कानोड़वासियों व विद्यार्थियों से सहर्ष सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार किया।
आचार्यश्री के स्वागत में कनोड़ की जनता की ओर से श्री किशोर सिंह, श्री जिनेश्वर तातेड़, श्रीमती धाणीदेवी तातेड़ व श्री नैनमल कोठारी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्कूल की छात्राओं ने स्वागत गीत का संगान किया। तातेड़ परिवार की महिलाओं ने भी अपने आराध्य के अभिनंदन में गीत का संगान किया। महासभा के उपाध्यक्ष श्री विजयराज मेहता ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।