- धवल सेना संग शांतिदूत का पारलू में भव्य स्वागत
- आचार्यप्रवर ने गत वर्ष के सिंहावलोकन की प्रेरणा
31.12.2022, शनिवार, पारलू, बाड़मेर (राजस्थान)। अपने पावन प्रवचनों से अध्यात्म ज्ञान की सरिता बहाने वाले जैन धर्म के प्रभावक आचार्य युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ सिवांची मालाणी क्षेत्र में प्रवर्धमान है। आज प्रातः आचार्यप्रवर ने जेठंतरी ग्राम से मंगल विहार किया। एक और सर्द हवाएं जहां लोगों को अपने घरों में ही दुबकने को मजबूर कर देती है ऐसे में जनकल्याण के लिए निरंतर पदयात्रा करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण बाड़मेर जिले में गतिमान है। मार्ग में कई स्थानों में स्थानीय ग्रामवासियों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए आचार्य श्री जैसे ही पारलू ग्राम के निकट पहुंचे तो पारलू वासी आपने आराध्य का स्वागत करने हेतु आगवानी में उपस्थित थे। लगभग एक दशक बाद आचार्य श्री के इस क्षेत्र में पदार्पण से श्रद्धालुओं में अनूठा हर्षोल्लास दृष्टि गोचर हो रहा था। स्थान-स्थान पर जनसमूह में खड़े पारलू वासी जय जयकारों से अपने गुरु की अभिवंदना कर रहे थे। लगभग 06 किलोमीटर का विहार कर आचार्य प्रवर वर्ष 2022 के अंतिम दिन का प्रवास करने हेतु स्थानीय ओसवाल भवन में पधारे।
धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा हमारा जीवन दो तत्वों से मिलकर बना है, शरीर और आत्मा। शरीर और आत्मा दोनों भिन्न है। शरीर जहां अस्थाई होता है वही हमारी आत्मा अजर अमर होती है। आत्मा को कोई मार नहीं सकता, काट नहीं सकता। आत्मा के साथ कर्मों का बंधन होता है वह आगे भी साथ चलता जाता है इसलिए व्यक्ति को प्रगाढ़ राग–द्वेष से बचना चाहिए। कर्म बंधन हमारी आत्मा को मलिन करता है। आत्मा को सुखमय बनाने के लिए जरूरी है की व्यक्ति बुरे कर्मों के बंधनों से बचे।
शांतिदूत ने एक दृष्टांत द्वारा प्रेरणा देते हुए आगे कहा कि वर्ष 2022 संपन्नता पर है वर्ष 2023 का शुभारंभ होने वाला है। इस मौके पर हम वर्ष भर का सिंहावलोकन करे, आत्मालोचन करे। व्यक्ति से चिंतन करे की वर्षभर में मेने ऐसा कोई कार्य तो नहीं किया जिससे राग-द्वेष प्रखर हुआ हो या कोई गलत कार्य तो नहीं किया। जहां ममत्व भाव होता है वहा फिर समस्या, दुख भी उत्पन्न हो जाते है। हमारे भीतर हम समता भाव का विकास करने का प्रयास करे। जैन धर्म में समता की साधना का महत्वपूर्ण उपक्रम है सामायिक। व्यक्ति जितना समय निकाल सके सामायिक करने का प्रयास करे। और नहीं तो कम से कम सप्ताह में एक दिन शनिवार को शाम सात से आठ सामायिक हो जाए तो भी समता की साधना का एक अच्छा क्रम बन सकता है। इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा ने भी सारगर्भित वक्तव्य प्रदान किया।
कार्यक्रम में तदुपरांत अपनी जन्मभूमि पर गुरुदेव का स्वागत करते हुए मुनि विनम्र कुमार जी ने अपने विचारों की प्रस्तुति दी। राजस्थान सरकार के पूर्व मंत्री श्री अमराराम चौधरी, तेरापंथ सभाध्यक्ष श्री रमेश बागरेचा, श्री हर्ष बागरेचा, श्री पूर्व बालड़ पुष्पराज भवानी, जवेरीलाल भवानी, नरेंद्र सुराना, वर्षा चोपड़ा, भाविका चोपड़ा ने भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ समाज, महिला मंडल, कन्या मंडल ने सामुहिक गीत का संगान किया। चोपड़ा परिवार की बहनों ने भी गीतिका द्वारा आराध्य का स्वागत किया।