- विनाशकारी मनोवृत्ति से बाहर निकलने की जरूरत: डॉ. अनिल काकोडकर
मुंबई। हमें कष्टकारी और विनाशकारी मनोवृत्ति (सिंड्रोम) से बाहर निकलने की आज बेहद जरूरत है। सतत और सकारात्मक विकास के लिए परमाणु ऊर्जा और परमाणु कचरे के उपयोग को समझने की बड़ी आवश्यकता है। यह बात होमी भाभा नेशनल इंस्टीट्यूट के चांसलर पद्म विभूषण डॉ. अनिल काकोडकर ने एचएसएनसी यूनिवर्सिटी, मुंबई द्वारा केसी कॉलेज में आयोजित ‘बेसिक साइंसेज फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ (आईएसबीएसएसडी) विषयक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में कही। डॉ. काकोडकर ने परमाणु ऊर्जा और अनुसंधान पर बल देते हुए कहा कि आम जन के लिए अनुसंधान महत्वपूर्ण है। लेकिन अधिकांश शोध पत्रों के अनुवाद न होने से इन तक आज भी एक बड़े समुदाय की पहुंच नहीं है। यदि इनका अनुवाद उपलब्ध होता तो एक विशाल समुदाय लाभान्वित होता।
एचएसएनसी विवि की कुलपति प्रो. (डॉ.) हेमलता बागला ने कहा की हमारी विचार प्रक्रियाओं में स्थिरता ( सस्टेनेबिलिटी) को शामिल करने के लिए हमें ऊपर से नीचे की दृष्टिकोण के बजाय नीचे से ऊपर के दृष्टिकोण को रखने की आवश्यकता है। वर्तमान समय युवा पीढ़ी का है, जो परिवर्तन को आगे बढ़ाने का काम करेंगे। एचएसएनसी विश्वविद्यालय द्वारा इस बात पर विशेष जोर दिया जा रहा है। यह समारोह यूनेस्को के सस्टेनेबिलिटी एजेंडे को प्रतिफलित करता है, जो कि बुनियादी विज्ञान के लिए विकास की पहल पर जोर देता है। उन्होंने कहा कि एक शैक्षणिक संस्थान के रूप में एचएसएनसी विश्वविद्यालय बुनियादी विज्ञान, अनुसंधान और विकास की दिशा में काम करने में कोई कसर नहीं रखेगा, जिसके लिए संस्थान प्रयासरत है।
एचएसएनसी यूनिवर्सिटी के प्रोवोस्ट डॉ. निरंजन हीरानंदानी ने आधुनिकीकरण, विकास और स्थिरता को विशेष रूप से मानव जीवन और स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखने की बात कही। उन्होंने भारत में रह रहे लोगों के बुनियादी मानव जीवन को ऊपर उठाने के महत्व पर जोर दिया। आईसीटी के वाइस चांसलर डॉ. अनिरुद्ध पंडित ने सचेतन विकास पर जोर देते हुए स्थिरता की स्थिति एवं इस पर आधारित प्रगति और विकास की शुद्धता पर बात की। उन्होंने कहा कि दुनिया को एक क्रांतिकारी उन्मुखीकरण की आवश्यकता है, जिसमें प्रकृति के साथ समन्वय करते हुए मनुष्य विकास सीख सके। डार्विन के प्रपौत्र डॉ. फेलिक्स पाडेल ने स्थिरता के सामाजिक एवं मानवशास्त्रीय पहलुओं पर प्रकाश डाला। डॉ. पडेल ने सतत विकास के विचार को डार्विन के सिद्धांत से भी जोड़कर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि डार्विन सतत विकास के समर्थक थे और उन्होंने दिखाया कि कैसे प्रकृति मनुष्य के करीब है। इस मौके पर इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन के सीनियर एसोसिएट प्रोफेसर संजीत नांबियार ने कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए सतत विकास के मूल्य पर बात की। डीएई इंडिया के पब्लिक अवेयरनेस डिवीजन हेड डॉ. राजेश वत्स ने विज्ञान की शक्ति और अनुसंधान के भविष्य पर बात की। उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रयोगशाला से बाहर वास्तविक दुनिया में ले जाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
फ्लोरिडा विश्वविद्यालय में मृदा सूक्ष्म जीव विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. एंडी ओग्राम ने मिट्टी की अद्भुत दुनिया और सूक्ष्म जीवों के साथ इसके सहजीवी संबंध के बारे में बात की, जो पौधों के जीवन को समृद्ध करते हैं और बदले में मानव को स्वास्थ्य संवर्धन की ओर ले जाते हैं। उन्होंने सेहतमंद, खुशहाल और पोषण से भरे मानव जीवन के लिए उर्वरक मिट्टी के महत्व पर जोर दिया।
नेशनल काउंसिल ऑफ साइंस कम्युनिकेटर के अध्यक्ष और एचएसएनसी विश्वविद्यालय के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. ए. पी. जयरामन ने संगोष्ठी की समापन करते हुए कहा कि संधारणीयता (भविष्य के लिए प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट किए बिना मौजूद रहने और विकसित करने की प्रक्रिया) के प्रति युवा पीढ़ी के विचार को विकसित करना बेहद जरूरी है और यह सम्मेलन वास्तव में इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है। उन्होंने कहा कि संधारणीयता पृथ्वी और मानव जाति के अस्तित्व की एकमात्र कुंजी है। समारोह में विज्ञान क्षेत्र के मशहूर शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों की उपस्थिति ने इस संगोष्ठी की शोभा में चार चांद लगा दिए। कार्यक्रम के दौरान एचएसएनसी यूनिवर्सिटी के विभिन्न फैकल्टी के डीन, सम्बंधित कॉलेजों के प्रिंसिपल और प्राध्यापक भी मौजूद रहे।