- तीनों दिन समाधिस्थल पर आचार्यश्री ने किया ध्यान, भिक्षु महाप्रयाण स्थल पर भी पधारे आचार्यश्री
- त्रिदिवसीय प्रवास के अंतिम दिन आचार्यश्री ने सिरियारी गांववासियों पर बरसाई कृपा
- यथार्थ के प्रति श्रद्धा और अनाग्रह का भाव रखने का हो प्रयास : राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमण
09.12.2022, शुक्रवार, सिरियारी, पाली (राजस्थान)। आचार्य भिक्षु समाधिस्थल, सिरियारी में त्रिदिवसीय पावन प्रवास के साथ ही दीक्षा समारोह के लिए विराजमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, आचार्य भिक्षु के परंपर पट्टधर, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को अपने पदरज से सिरियारी गांव को पावन बना दिया। प्रातःकाल की मंगल बेला में अपने आराध्य, तेरापंथ के आद्य आचार्य, महामना भिक्षु की समाधिस्थल पर आचार्यश्री पधारे और भूमि पर विराजमान होकर ध्यानस्थ हुए। प्रवास के तीसरे दिन भी आचार्यश्री का यह क्रम अनवरत था। ध्यान सम्पन्न कर आचार्यश्री सिरियारी गांव को पावन बनाने के लिए गांव में भी पधारे। गांव स्थित पक्की हाट जिसे महामना आचार्य भिक्षु का महाप्रयाण स्थल भी कहा जाता है। आचार्यश्री ने वहां भी कुछ क्षण आसीन होकर ध्यान लगाया। इस क्रम में ग्रामीण जनता को भी आचार्यश्री के दर्शन और मंगल आशीष प्राप्त हो गया। आचार्यश्री गांव के अनेक घरों में भी पधारे। जन-जन को शुभाशीष से आच्छादित करते हुए आचार्यश्री पुनः प्रवास स्थल में पधारे।
भिक्षु आराध्यम् सभागार में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को अपने वर्तमान के साथ भविष्य पर भी यथौचित्य ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। काल के तीन प्रकार बताए गए हैं- अतीत, वर्तमान और भविष्य। इन तीनों में सारा काल समाहित हो जाता है। अतीत में अनंत काल व्यतीत हो गया है और अनागत में भी अनंत काल पड़ा है, परन्तु सबसे छोटा काल वर्तमान होता है। अतीत बहुत विशाल है और भविष्य भी अनंत है। जिस प्रकार आकाश अनंत है, उसी प्रकार समय भी अनंत है। वर्तमान काल अत्यंत स्वल्प होता है, इसलिए आदमी को वर्तमान के साथ-साथ भविष्य को भी अच्छा बनाने पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। अतीत से प्रेरणा ली जा सकती है।
हमारे लिए परम पूज्य आचार्यश्री भिक्षु प्रेरणा के स्रोत हो सकते हैं। वे अतीत के महापुरुष, व्यक्तित्व हैं या यों कहें कि हमारे परम पूजनीय दसों आचार्य अब अतीत के हैं। अतीत से भी प्रेरणा ली जा सकती है। यह आचार्य भिक्षु से जुड़ा हुआ स्थान जहां मानों भिक्षुमय वातावरण बना हुआ है। हम भिक्षु स्वामी से प्रेरणा ले सकते हैं। वे हमारे धर्मसंघ के आद्य अनुशास्ता हैं। उनका कितना-कितना साहित्य है। उनके साहित्य सिद्धांतपरक और आख्यानपरक भी हैं। वो यथार्थ के प्रति श्रद्धा, अनाग्रह रखने वाले तत्त्ववेत्ता थे। आदमी को भी यथार्थ के आकाश में उड़ान भरना है तो यथार्थ के प्रति श्रद्धा, अनाग्रह रखने का प्रयास रखने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि इस भिक्षु दरबार में मानों वर्धमान महोत्सव का-सा माहौल बन गया है। हमें भी कई वर्षों बाद सात-सात रत्नाधिक संतों को वंदन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। कार्यक्रम में साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने ‘बाबा भिक्षु स्वामी की शुभ स्तवना…’ गीत का संगान किया।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में 30 नवम्बर को दिवंगत हुए मुनि अनिकेतकुमारजी की स्मृतिसभा का भी आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने उनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करते हुए उनकी आत्मा के प्रति मध्यस्थ भावों को अभिव्यक्त किया तथा उनकी आत्मा के कल्याण के लिए चार लोगस्स का ध्यान किया तो आचार्यश्री के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने भी चार लोगस्स का ध्यान किया। इस संदर्भ मंे साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी, मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, मुनि अनिकेतकुमारजी की संसारपक्षीया पुत्री साध्वी सिद्धार्थप्रभाजी, पुत्र मुनि कौशलकुमारजी, अग्रणी संत मुनि रणजीतकुमारजी व मुनि कुमारश्रमणजी ने दिवगंत आत्मा के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। श्री रमेशचन्द बोहरा ने भी अपनी उनके संदर्भ में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।